राजनीतिक एजेंडा तय करने को आगे आए नागरिक संगठन


civil society ready political agenda for upcoming loksabha election

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लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही पार्टियों ने अपने-अपने चुनावी वादे करने शुरू कर दिए हैं. पार्टियां चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्र में लोकलुभावन वादे करती हैं. जिससे असली जनसरोकार के मुद्दे कहीं छिप जाते हैं और राजनीतिक एजेंडा शिफ्ट हो जाता है.

अब कुछ नागरिक संस्थाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिलकर आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जरूरी मुद्दों को लेकर एक दस्तावेज तैयार किया है. इनका मानना है कि ये आगामी लोकसभा चुनाव में राजनीतिक एजेंडा तय करेगा.

इस दस्तावेज में कुछ प्रमुख मुद्दों को जगह दी गई है. इनमें न्यायिक और चुनाव सुधार, व्यक्तिगत आजादी को नुकसान पहुंचाने वाले कानूनों को खत्म करना, मीडिया की आजादी के लिए कानून बनाना, फसल की ऊंची कीमत और कर्जमाफी, सभी के लिए पेंशन योजना, ग्रामीण रोजगार योजना का विस्तार, नागरिक शिक्षा और स्वास्थ्य तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है.

यूबीआई या बेसिक इनकम पर देश में काफी समय से बहस चल रही है, लेकिन इस दस्तावेज में देश के लिए इस विचार को पूरी तरह से नकार दिया गया है.

इस दस्तावेज को जारी करने वाले समूह ने सभी राजनीतिक दलों को इस पर बहस करने के लिए आमंत्रित किया है. इसके लिए आगामी शुक्रवार का समय तय किया गया है. कुछ राजनीतिक दल इस पर बहस करने के लिए तैयार भी हो गए हैं. इनमें कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, एनसीपी शामिल हैं.

इसके लिए हुई बैठक की अध्यक्षता दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह कर रहे थे. जस्टिस शाह ने कहा, “हम आने वाले आम चुनाव को एक अवसर के रूप में देखते हैं. जहां हम अपने गणतंत्र के मूल्यों और विरासत को वापस पा सकते हैं या कम से कम इसे खत्म करने की कोशिशों को जवाब दे सकते हैं.”

उन्होंने कहा कि आज कानून, संस्थानों और नीतियों में तत्काल सुधार की जरूरत है.

जस्टिस शाह के अलावा इस बैठक में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, स्वराज इंडिया से योगेंद्र यादव, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और जयति घोष, सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व नौकरशाह हर्ष मंदर, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी शामिल रहे.


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