सीजेआई यौन उत्पीड़न मामला: न्यायिक प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल


rise of populist forces in democracy poses threat to judiciary: cji ranjan gogoi

 

सीजेआई रंजन गोगोई को यौन आरोप मामले में क्लीन चिट मिल गई है. जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली आंतरिक जांच कमिटी ने आरोपों को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया. लेकिन कोर्ट और उससे बाहर इस फैसले पर सवाल हो रहे हैं.

इस बीच कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों के समूहों ने इस फैसले को लेकर विरोध जताया है. खबरों के मुताबिक ये लोग सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट परिसर के बाहर धरने पर बैठने की तैयारी में हैं.

दि हिंदू अखबार में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे का एक लेख छपा है, जिसमें इस मुद्दे पर हुई पूरी कार्रवाई को लेकर गंभीर चिंताएं जाहिर की गई हैं.

लेख के मुताबिक आरोप लगाने वाली महिला के साथ जिस तरह शुरुआत से व्यवहार किया गया उस वजह से पूरी न्यायिक प्रक्रिया सवालों के घेरे में है. सुप्रीम कोर्ट की इस पूर्व कर्मचारी महिला ने कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर सीजेआई पर आरोप लगाए थे और न्याय की मांग की थी.

इस पत्र में जैसा कि उसने कहा कि उसके और उसके परिवार का ‘चीफ जस्टिस के इशारों’ पर लगातार उत्पीड़न किया गया. पत्र के मुताबिक ये घटना 11 अक्तूबर 2018 को हुई, जिसके बाद 22 अक्तूबर को उसका ट्रांसफर सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग सेंटर में कर दिया गया. फिर 16 नवंबर को उसका विभाग बदल दिया गया.

19 नवंबर को उस पर कोड़ ऑफ कंडक्ट को ना मानने का आरोप लगा और उससे सफाई मांगी गई. इसके बाद 22 नवंबर को उस महिला का पुस्तकालय विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया. 26 नवंबर को उसकी सफाई को स्वीकार ना करने का ज्ञापन दिया गया. इसके बाद अगले ही दिन यानी 27 नवंबर को उसे बर्खास्त कर दिया गया.

18 दिसंबर को उसे बताया गया कि उस पर लगे आरोप सही साबित हुए हैं. इसके बाद 21 दिसंबर को उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं.

इसके अलावा महिला के इसी हलफनामे के मुताबिक उसके परिवार को भी लगातार प्रताड़ित किया गया. उसके पति और भाई जो कि दिल्ली पुलिस में थे. इस साजिश का शिकार हुए. पत्र के मुताबिक महिला के पति का ट्रांसफर किया गया इसके बाद उसके पति और भाई को टेलीफोन पर बर्खास्तगी का फरमान सुनाया गया.

खबरों के मुताबिक महिला के इन परिजनों के खिलाफ पर सीजेआई के ऑफिस में अनचाही फोन कॉल करने का आरोप लगाया गया. और डीसीपी स्तर की जांच बिठाई गई.

पत्र के मुताबिक 14 जनवरी को आरोप लगाने वाली महिला के विकलांग देवर को जूनियर कोर्ट अटेंडेंट के पद से हटा दिया गया. जिसे खुद सीजेआई की ओर से अस्थाई तौर पर नियुक्त किया गया था.

तीन मार्च 2018 को तिलग मार्ग पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज की गई. इसे नवीन कुमार नाम के एक व्यक्ति ने दायर किया. इसमें आरोप लगाया गया कि शिकायकर्ता महिला ने जून 2017 में उस व्यक्ति को कोर्ट में नौकरी दिलाने के नाम पर रिश्वत ली थी. शिकायत में कहा गया कि इसके लिए उससे 10 लाख रुपये की मांग की गई, जिसमें से 50 हजार एडवांस ले लिए गए.

इस एफआईआर के आधार पर महिला और उसके पति को राजस्थान स्थित उनके गांव से गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें हाथ बांधकर लाया गया और अमानवीय व्यवहार किया गया. एक दिन की पुलिस रिमांड के बाद उसे 12 मार्च को जमानत पर रिहा कर दिया गया.

दवे ने इस लेख में कहा है कि इस दौरान महिला और उसके परिजनों के साथ जैसा व्यवहार किया गया वो ना सिर्फ अनैतिक था बल्कि पूरी तरह से असंवैधानिक और गैरकानूनी भी था. इस दौरान हर कदम पर उनके मूल अधिकारों का हनन किया गया.

सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान जज जस्टिस चंद्रचूड़ और उनके सहयोगी आर नरीमन की चिंताओं के बारे में मीडिया में लगातार खबरें आती रही हैं. अब आंतरिक कमिटी के इस फैसले के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह ने खुलकर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं.

इंडियन एक्सप्रेस ने जस्टिस एपी शाह से इसी मुद्दे पर बातचीत के कुछ अंश छापे हैं. जस्टिस एपी शाह कहते हैं कि आरोप सामने आने के बाद जिस तरह से कोर्ट की बैठक हुई और इन आरोपों को सीजेआई समेत अन्य जजों ने साजिश बताया.

महिला का आपराधिक बैकग्राउंड बताकर आरोपों को खारिज करने का प्रयास किया गया. दूसरे जजों ने बिना किसी जांच के इसे ब्लैकमेलिंग करार दे दिया. इन सबके बाद ही जाहिर हो गया था कि इस शिकायत का अंत ऐसा ही होना है.

जस्टिस एपी शाह कहते हैं कि आंतरिक जांच समिति के तीन में से दो जज पहले दिन की बैठक में शामिल थे और इन दोनों ने उस दिन पारित आदेश पर हस्ताक्षर भी किए थे. वे कहते हैं कि इस आतंरिक जांच की रिपोर्ट पर सिर्फ हस्ताक्षर होने बाकी थे, फैसला तो पहली बैठक के बाद ही हो चुका था.


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