यमुना रिवर फ्रंट और नमामि गंगे की हकीकत


condition of yamuna in delhi

 

यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों पर दिल्ली सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं. हालांकि इनका कोई बेहतर असर दिल्ली के अंदर नहीं दिख रहा है. आज के वक्त में दिल्ली के अंदर बह रही यमुना एक नदी के रूप में महज एक बड़ा नाला है, जिसके पास लोग जाना तक पसंद नहीं करते हैं.

इस तस्वीर में यमुना नदी के पानी में दिख रहा सफेद झाग यह दर्शाता है कि नदी में अब ऑक्सीजन की मात्रा बिल्कुल ही खत्म हो चुकी है. जरा सोचिए, बिना ऑक्सीजन के कोई प्राणी कितने देर तक जीवित रह सकता है? पिछले चार-पांच सालों में यमुना नदी की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो चुकी है. यमुना जहां से दिल्ली में प्रवेश करती है, वहां से उसके पानी में ऑक्सीजन की मात्रा तकरीबन शून्य पहुंच जाती है.

कालिंदी कुंज इलाके में यमुना नदी की भयावह स्थिति साफ देखी जा सकती है. इसके नजदीक जाते ही बहुत ज्यादा दुर्गन्ध आने लगती है. यहां पर आकर मोदी सरकार की नमामि गंगे योजना और दिल्ली सरकार (आप) की 200 करोड़ रुपये की लागत से चलने वाली महत्वकांक्षी योजना ‘यमुना रिवर फ्रंट’ की हकीकत देखी जा सकती है.

कालिंदी कुंज के नजदीक जेजे कॉलोनी में रहकर यमुना नदी की सफाई करने वाली दो महिलाएं बीना और शाहजहां कहती हैं,”केजरीवाल और मोदी सरकार के कोई भी सफाई कर्मचारी यहां पर सफाई करने नहीं आते हैं. जब कोई मेमसाहब ( सांसद या विधायक) यमुना नदी देखने आती हैं, तो सरकारी अधिकारी आकर हमसे सफाई कराते हैं और जब मेमसाहब चली जाती हैं, उसके बाद सफाई कराने कोई नहीं आता है.”

बीना ने बताया कि इस जगह पर दिन भर में तकरीबन 200 से ज्यादा लोग आकर कूड़ा-कचरा यमुना नदी में डाल जाते हैं. उन्हीं में से कभी कोई हमें 50 या 100 रुपये दे देता है और वही हमारी कमाई होती है. बीना ने आगे कहा,”जब यहां पर कोई आयोजन किया जाता है तो उस वक्त जोर-शोर से सफाई होती है लेकिन आयोजन खत्म होते ही यमुना नदी की स्थिति जस की तस ही रह जाती है.

दिल्ली सचिवालय से 15 मिनट पैदल चलने पर आईटीओ के नजदीक छठ घाट है. कालिंदी कुंज की तुलना में यहां यमुना नदी की स्थिति उतनी भयावह नहीं है, लेकिन हर तरफ कूड़े-कचरे का ढेर नजर आता है.

फोटो में दिख रहे आदमी का नाम रामू है. इन्हें एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने यमुना नदी को साफ करने के लिए पांच हजार रुपये प्रति माह का वादा कर नौकरी पर रखा है. रामू का काम यमुना नदी से प्लास्टिक और ऐसी चीजों को निकालना है जो पानी में घुल नहीं सकतीं.

रामू कहते हैं कि कुछ लोग यहां रोज आकर घर का कूड़ा-कचरा फेंककर चले जाते हैं, जिन्हें रोक पाना हमारे लिए मुश्किल है और इस वजह से घाटों को कभी भी पूरे तरीके से साफ नहीं किया जा सकता है.

जब उनसे पूछा गया कि क्या सफाई कर्मचारी यहां आकर यमुना नदी को साफ करते हैं तो उन्होंने कहा,“कोई भी सफाई कर्मचारी यहां पर सफाई करने नहीं आता है.”

उन्होंने आगे कहा कि सरकारी कागज के मुताबिक यहां पर दस लोगों को यमुना नदी पर बने घाटों की सफाई के लिए काम पर रखा गया है, लेकिन हकीकत में आपको यहां पर कोई नजर नहीं आएगा.

छठ घाट से थोड़ी दूर चलने पर मेरी नजर एक नांव पर पड़ी. यह नांव खासतौर पर यमुना नदी को साफ करने के लिए मोदी सरकार की महत्वकांक्षी योजना ‘नमामि गंगे’ के तहत लाई गई थीं. वहां मैंने सफाई करने वाले गोताखोर ‘सोनू’ से बात की.

सोनू ने बताया कि यमुना नदी को साफ करने वाली यह नाव छठ घाट के दोनों तरफ महीनों से ऐसे ही खड़ी है, शायद ना चलने की वजह से यह नाव खराब भी हो चुकी है.

सोनू ने बताया कि घाट की सफाई करने के लिए कुछ गैर-सरकारी संगठन कभी-कभी शनिवार या रविवार को आकर यमुना नदी की सफाई करते हैं.

सोनू ने आगे कहा “यहां से तकरीबन 15 मिनट की दूरी पर दिल्ली सचिवालय है, लेकिन कुछ समारोह को छोड़कर कोई भी सरकारी मंत्री या अधिकारी यहां पर कभी नजर नहीं आते. कभी-कभी दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी यहां पर आते हैं.

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिबयूनल) ने दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के राज्य सराकारों को यमुना नदी के नवीनीकरण और प्रदूषण नियंत्रण पर स्वीकृति रिपोर्ट (हलफनामा) जमा करने का निर्देश दिया था.

एन.जी.टी. ने यह भी निर्देश दिया था कि अगर राज्य सरकारें हलफनामे पेश करने में असफल हुईं तो उनके ऊपर जुर्माना लगाया जाएगा.

एन.जी.टी. अध्यक्ष न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में बनी पीठ ने कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा हलफनामा पेश कर यह बताया जाए कि यमुना के नवीकरण के लिए कितने कदम उठाए गए हैं और अगर ऐसा नहीं है तो उसमें देरी के क्या कारण हैं?

साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि इस मामले में आगे कौन से कदम उठाए जाने वाले हैं और उन्हें पूरा होने में कितना वक्त लगेगा, इसका भी ब्यौरा दिया जाए.

27 जुलाई 2019 को एनजीटी द्वारा बनाई गई मॉनीटरिंग कमेटी ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली जल बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी कमेटी गठित करने के बाद भी अब तक कोई फायदा नहीं दिखाई दे रहा है. यहां तक की इस योजना पर काम कर रहे इंजीनियरों ने भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई है.

13 जनवरी 2105 के फैसले में एनजीटी ने दिल्ली जल बोर्ड को कहा था कि 32 विकेंद्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का गठन करे, लेकिन चार साल बीत जाने के बाद अब तक एक भी ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लान’ का निर्माण नहीं हो पाया है.

दरअसल, पूरे दिल्ली में यमुना नदी की स्थिति ऐसी ही भयावह है, जहां नदी के नाम पर सिर्फ दूषित पानी बह रहा है. यमुना नदी के किनारे रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर इस प्रदूषित पानी का सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है.

रिसर्च के मुताबिक, यमुना का पानी ना तो किसी प्रकार के घरेलू उपयोग और ना ही खेती करने लायक है. विशेषज्ञों के मुताबिक, देश की सबसे दूषित नदी यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए ना तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकारों की ओर से कोई रुचि दिखाई दे रही है.


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