रिपोर्टर डायरी: खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पा रही है कांग्रेस


congress is gaining back its esteem

 

कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के बीच महाराष्ट्र में गठित होने वाली संयुक्त संभावित सरकार बनने में भले ही थोड़ा समय बाकी है, लेकिन, सरकार गठन होने के बीच ऑल इंडिया अल्पसंख्यक विभाग के एक बड़े पदाधिकारी ने कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नए तरीके से यह कहते हुए परिभाषित किया है कि कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चरित्र कि इससे बड़ी परिभाषा और क्या हो सकती है कि हमारे साथ एक तरफ शिवसेना है और दूसरी तरफ केरल में मुस्लिम लीग.

अल्पसंख्यक विभाग के नेता ऑफ दि रिकॉर्ड बात कह रहे थे. इसलिए नाम नहीं लिखा जा सकता. लेकिन, जिस तरह केरल की मुस्लिम लीग को पार्टी के नेता ने शिवसेना से तुलना कर परिभाषित किया है, वह अपने आप में पार्टी दफ्तर में चर्चा का विषय बन गया है. कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की नई परिभाषा और इसके नए पहलू सामने आने के बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने लगे हाथ यहां तक कहना शुरू कर दिया कि हिंदू विरोधी भाव की जो अवधारणा कांग्रेस की बनी थी वह कांग्रेस-शिव सेना के साथ आने के बाद बहुत हद तक सुधर जाएगी.

हालंकि, कुछ नेताओं का यह भी कहना है कि ये चर्चा का विषय है. आने वाले समय में कांग्रेस को इस प्रयोग से नुकसान होगा या फिर फायदा ये तो वक्त तय करेगा लेकिन मौजूदा हालात में इसके अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प भी नहीं था. सब जानते हैं कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है कांग्रेस के साथ कैसे व्यवहार कर रही है. इसलिए, विचारधारा के नाम पर केवल पिटते रहने को भी समाज में अच्छा नहीं माना जाता.

वहीं, नई सरकार बनने के बाद यह अवधारणा भी टूटेगी कि कांग्रेस ने भाजपा के सामने घुटने टेक दिए हैं. हरियाणा में अच्छे प्रदर्शन के बाद महाराष्ट्र में यदि सरकार बनती है तो पार्टी काडर को माबूती मिलेगी और कार्यकर्ताओं में विश्वाश बढ़ेगा. लोगों को पता चलेगा कि कांग्रेस में अभी भी दम है, जो काफी समय से मोदी सरकार के आने के बाद टूटा हुआ था.

कांग्रेस दफ्तर में महाराष्ट्र के नए प्रयोग सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है. लेकिन, चर्चा से किसी को कोई भी परहेज नहीं है. जितने मुंह उतनी बातें. कहा यहां तक जा रहा है कि सोनिया गांधी के केंद्रीय रोल में पुनः आने के बाद कांग्रेस में चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि मैडम, मैडम ही हैं. राहुल बाबा होते तो अभी तक सोच विचार में ही समय बीत जाता. राहुल को अपने राजनीतिक सलाहकार ठीक करने होंगे या फिर सोनिया जी की टीम के साथ तालमेल कर आगे बढ़ना होगा. तभी जाकर हालात सुधर सकते हैं क्योंकि आगे उन्हीं को संभालना है.


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