दरकार थी मल्टीनेशनल कंपनियों पर सर्जिकल स्ट्राइक की


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अपने कार्यकाल में मोदी सरकार जनविरोधी मल्टीनेशनल दवा कंपनी पर सर्जिकल स्ट्राइक करने से चूक गई है. जरूरत है कि टीबी मरीजों के हित में विदेशी दवा के महंगे दाम पर एक सर्जिकल स्ट्राइक करनी थी जैसा यूपीए सरकार के दौर में कैंसर के मरीजों के लिए किया गया था.

यूपीए-2 की सरकार ने किडनी और लीवर कैंसर की दवा Nexavar पर कम्पल्सरी साइसेंस जारी करके इसके दाम को 2 लाख 80 हजार रुपये से कम करके नौ हजार रुपये प्रतिमाह का कर दिया था. यदि मोदी सरकार चाहती तो दवा प्रतिरोधक टीबी की दवा Bedaquiline पर भी देशहित में सरकार कम्पलसरी लाइसेंस जारी करके इसके दाम को कम करवा सकती थी. जिससे भारतीय और दुनियाभर के टीबी के मरीजों को लाभ होता.

भारत को ‘फॉर्मेसी ऑफ वर्ल्ड’ कहा जाता है. भारत से दुनिया के कई गरीब, छोटे तथा विकासशील देशों को जीवनरक्षक और आवश्यक दवाओं का निर्यात किया जाता है. भारत से हर साल करीब एक लाख करोड़ रुपयों का दवा निर्यात किया जाता है.

यूपीए-2 सरकार के दौर में विदेशी दवा कंपनी बायर कॉर्पोरेशन किडनी और लीवर के कैंसर में लगने वाली दवा Nexavar के एक माह की खुराक को भारतीय मरीजों के लिए दो लाख 80 रुपये प्रतिमाह की दर से उपलब्ध करवाती थी. इस दवा पर इसी बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी को पेटेंट अधिकार (या कहे कि एकाधिकार) मिला हुआ था. इस कारण से कैंसर के मरीजों को मजबूरी में अत्यंत महंगी दवा को ही खरीदना पड़ता था.

कैंसर के मरीजों को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिये यूपीए-2 सरकार के दौर में 9 मार्च, 2012 को इस दवा पर कम्पल्सरी लाइसेंस जारी करके इसके जेनेरिक वर्जन को बनाने का अधिकार एक भारतीय दवा कंपनी नेटको को दे दिया गया था. नेटको ने इस दवा के एक माह की खुराक मात्र 9 हजार रुपये प्रतिमाह की दर से उपलब्ध करवा दिया था.

हमारें देश में हर साल टीबी से करीब चार लाख 23 हजार जाने चली जाती हैं. देश में हर साल करीब 28 लाख टीबी के मामले सामने आते हैं. भारत में करीब 1 लाख 47 हजार टीबी के मरीजों को दवा प्रतिरोधक टीबी है. अर्थात् इन मरीजों पर टीबी की परंपरागत दवाएं isoniazid और rifampicin काम नहीं करती हैं. इन मरीजों को ही विदेशी दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के एकाधिकार वाली दवा Bedaquiline की जरूरत है जिसे Sirturo के ब्रांडनेम से बेचा जाता है. वैसे जिन मरीजों को दवा प्रतिरोधक टीबी होता है उन्हें एमिकेसीन का इंजेक्शन भी दिया जा सकता है या फ्लोरोक्वीन्स दिया जा सकता है लेकिन इससे मरीज बहरा हो जाता है और उसकी किडनी भी खराब हो सकती है. इसके अलावा मात्र 55 फीसदी मरीजों को ही इन दवाओं से फायदा पहुंचता है. इसीलिए विश्व-स्वास्थ्य-संगठन ने Bedaquiline को अपनी आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल कर लिया है.

Bedaquiline पर जॉनसन एंड जॉनसन दवा कंपनी का एकाधिकार होने के कारण दुनियाभर में नवंबर 2018 तक मात्र 28 हजार 700 सौ मरीजों को ही यह दवा मिल पाई जिनमें से 70 फीसदी दक्षिण अफ्रीका से हैं जबकि दुनियाभर में साल 2017 में दवा प्रतिरोधक टीबी के 5 लाख 58 हजार मामलें सामने आए थे. जाहिर है कि दवा पर पेटेंट कानून के तहत किसी एक दवा कंपनी का एकाधिकार अब मानव सभ्यता पर भारी पड़ रहा है. हालांकि, भारतीय पेटेंट कानून तथा ट्रिप्स समझौते के तहत स्थानीय सरकार को इसका अधिकार मिला हुआ है कि वे लोकहित में किसी दवा पर कम्पल्सरी लाइसेंस जारी करके उसके एकाधिकार को तोड़ सकते हैं.

अब सवाल किया जाना चाहिए कि देश के करीब 1 लाख 47 हजार टीबी मरीजों के हित में जिन्हें दवा प्रतिरोधक टीबी है पर भी प्रचंड बहुमत वाली एनडीए की सरकार ने कम्पल्सरी लाइसेंस जारी करने का साहस नहीं किया. जबकि साल 2018 के पहले तिमाही में ही सिविल सोसाइटी ग्रुप्स ने प्रधानमंत्री मोदी जी से अपील की थी कि टीबी की दवा bedaquiline और delamanid पर कम्पल्सरी लाइसेंस जारी कर दिया जाये (bedaquiline व्यस्को तथा delamanid बच्चों को दी जाती हैं). जाहिर है कि सरकार की प्राथमिकता में टीबीमुक्त भारत तो था लेकिन इसे ज़मीनी हक़ीक़त बनाने के लिए जिस कम्पल्सरी लाइसेंस को जारी की जरूरत थी उसे नहीं किया गया.

यहां पर इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि Bedaquiline के मॉल्यूकल पर जॉनसन एंड जॉनसन की सहयोगी कंपनी जैनसीन फॉर्मास्युटिकल्स को भारत में साल 2023 तक पेटेंट अधिकार मिला हुआ है. उसके बावजूद इस दवा कंपनी ने इसके सॉल्ट पर और 4 साल के लिए पेटेंट अधिकार देने के लिए आवेदन दिया हुआ है. हाल ही में इसके खिलाफ मुंबई की नंदिता वेनकेटेशन और दक्षिण अफ्रीका की फ्यूमेज़ा टिसली ने मुंबई पेटेंट ऑफिस में चुनौती दी है.

दवा कंपनी चाहती है कि इस दवा पर उन्हें साल 2027 तक का पेटेंट अधिकार मिल जाए. पहल सरकार को करनी थी लेकिन इसके लिए दो ऐसे मरीज सामने आए हैं जिन्होंने खुद दवा प्रतिरोधक टीबी का सामना किया है तथा एमीकेसीन के इंजेक्शन के कारण बहरे हो गए हैं.

फॉर्माबिज की खबरों के अनुसार मार्च 2019 से भारत में bedaquiline और delamanid पर तीन सालों के लिए नई स्टडी चेन्नई के National Institute for Research in Tuberculosis (NIRT) में शुरू होने वाली है जिसके तहत इसे भारतीय मरीजों को देकर उसके प्रभाव व दुश्प्रभाव का अध्ययन किया जाने वाला है.

उम्मीद की जा रही है कि साल 2021 तक यह ट्रायल्स पूरा हो जाएगा. शुरुआत में यह 20 मरीजों पर ही किया जाएगा. इसके लिए जैनसीन फॉर्मास्युटिक्लस ही दवा भारत सरकार को उपलब्ध करवाएगी. इस दवा के छह माह की खुराक को विदेशों में तीन हजार डॉलर से लेकर 30 हजार डॉलर तक में दिया जाता है जबकि भारत में इसे 400 डॉलर में दिया जाएगा.

फिलहाल दवा कंपनी की गरज है इसीलिए क्लीनकल ट्रायल्स के लिए इसे मुफ्त में दिया जाएगा लेकिन जब इसकी अनुमति मिल जाएगी तो इसे 400 डॉलर में बाजार में उतार दिया जाएगा. भारतीय रुपयों में यह करीब 28 हजार रुपयों का होगा यदि दाम न बढ़ाया जाए तब.

दरअसल, विदेशी बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी की नज़र भारत के विशाल बाजार पर है. Bedaquiline पर क्लीनकल ट्रायल्स के पूरा हो जाने के बाद जब भारत में इसे खुले बाजार में बेचने की अनुमति मिल जाएगी तब के लिए दवा कंपनी तैयारी कर रही है.

आइए वर्तमान में उपलब्ध आकड़ों के आधार पर इसकी गणना करके देख ले कि आखिरकार bedaquiline का बाजार कितने रुपयों का हो सकता है. इसके अनुसार यदि एक लाख 47 हजार मरीजों को यह दवा 28 हजार रुपयों में भी दे दिया जाता है तो मात्र छह माह में इसकी बिक्री होगी चार अरब 11 करोड़ 60 लाख रुपयों का.

जाहिर है कि विदेशी मल्टीनेशनल दवा कंपनी बायर कॉर्पोरेशन इसके लिए पुरजोर कोशिश में लगी हुई है कि इस बाजार पर उसका ही एकाधिकार बना रहे.

उम्मीद की जा रही है कि साल 2021 तक इस पर क्लीनकल ट्रायल्स पूरा हो जाएगा और उसके बाद इसे बाजार में उतारने की अनुमति मिल जाएगी यदि नहीं भी मिलेगी तो सरकारी कार्यक्रम के तहत इसे सरकार खुद खरीदकर मुफ्त में मरीजों को उपलब्ध करवाएगी. हालांकि, उस हाल में भी भारतीय करदाताओं से प्राप्त पैसे को ही सरकार खर्च करेगी. इसीलिए बायर कॉर्पोरेशन ने पहले से ही इसके पेटेंट अधिकार को 2023 से बढ़ाकर 2027 तक करने का दावा किया हुआ है.

जैनसीन फॉर्मास्युटिकल्स ने 20 जनवरी 2005 को bedaquiline के Molecules के लिए पेटेंट अधिकार मांगा था जो उसे साल 2023 तक दिया गया है. उसके बाद इस कंपनी ने 29 जून 2009 को इसके सॉल्ट के लिए अलग से पेटेंट अधिकार के लिए आवेदन किया है जो मिल जाने पर 2027 तक कंपनी को पेटेंट का एकाधिकार मिल जाएगा.

खैर, अब चुनाव की घोषणा हो चुकी है इसलिए मल्टीनेशनल दवा कंपनी पर सर्जिकल स्ट्राइक तो होने से रही. इस सर्जिकल स्ट्राइक के लिए टीबी के मरीजों, उनके परिजनों, सिविल सोसइटी ग्रुप्स तथा जनता को नई सरकार बनने तक का इंतजार करना होगा. हालांकि, नई सरकार कैसी होगी इसका सारा दारोमदार भी जनता पर ही निर्भर करता है.


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