राजनीतिक असहमतियों से समाज में बढ़ा बंटवारा: रिपोर्ट


crossing divides in our society due to different views

 

वैचारिक असहमति की वजह से समाज में खांचे तैयार हो रहे हैं. लोग विचारों की किलेबंदी में इस तरह व्यस्त हैं कि उनके बीच बातचीत का दायरा सिकुड़ता जा रहा है. आबादी के बीच फासला इस कदर बढ़ता जा रहा है कि रोजमर्रा में दोस्ती और बात खास नस्ल और धर्म तक सिमट कर रह गई है. बीबीसी के लिए इप्सोस की ओर से किए गए एक वैश्विक सर्वे में इस तरह के तथ्य सामने आए हैं.

इप्सोस ने दुनिया भर के 27 देशों में 20 हजार लोगों पर यह जानने के लिए अध्ययन किया कि क्या राजनीतिक असहमति की वजह से हम बंटते जा रहे हैं? क्या यह किसी भी मुल्क को चलने के लिए नुकसानदेह या फिर फायदेमंद हो सकता है?

राजनीतिक विचार को लेकर बंटता हुआ समाज वैश्विक स्तर पर देखने को मिल रहा है. इप्सोस के सर्वे में भी समाज का बंटता हुआ चेहरा सामने उभरता है. इस सर्वे के दौरान 80 फीसदी से ज्यादा लोगों ने स्वीकारा कि राजनीतिक असहमति की वजह से सामाजिक बंटवारा हुआ है. 41 फीसदी ने यह माना इस बंटवारे की वजह से समाज जोखिम की हद तक पहुंच गया है जो आज से 20 साल पहले तक नहीं था.

समाज में बंटवारा इस सोच को लेकर भी है कि सामने वाले की राजनीतिक असहमति देश निर्माण के लिए सही है या नहीं. सर्वें में राष्ट्र के भविष्य जैसे मसलों पर भी लोगों की राय सामने आई हैं. वैश्विक स्तर पर करीब 28 फीसदी लोग यह मानते है कि उनके विपरीत विचार रखने वालों को देश के भविष्य की फिक्र नहीं है. भारत के संदर्भ में 43 फीसदी लोग ऐसी सोच रखते हैं.

समाज में बढ़ते जा रहे इस बंटवारे को लेकर 54 फीसदी लोगों ने यह भी माना कि इसमें सोशल मीडिया का बड़ा हाथ है. इससे पहले ऐसा नहीं था. हालांकि 11 फीसदी ने इससे असहमति दर्ज की है.

इस अध्ययन में दिलचस्प तरीके से यह तथ्य सामने आया कि करीब 35 फीसदी लोग अपने से अलग विचार वालों के साथ हफ्ते में एक दफा बातचीत कर पाते हैं, हालांकि भारत में ऐसे लोग 56 फीसदी तक हैं. 20 फीसदी के करीब ऐसे लोग हैं जो महीनें में एक बार ही ऐसा करते हैं. वहीं 10 फीसदी आबादी अपने से अलग सोच रखने वालों से कभी बात नहीं करती हैं.

सर्वे के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 40 फीसदी लोगों ने यह माना है कि उनकी दोस्ती अपने तरह के विचार और आस्था रखने वालों तक सीमित है. इसमें 42 फीसदी लोग पर्यावरण, 38 फीसदी धर्म और प्रवासन जैसे मसलों और 37 फीसदी नारीवाद जैसे मामलों पर समान विचार की वजह से दोस्ती की ओर बढ़ते हैं.

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 56 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे भी हैं जो दोस्ती करने के लिए खास नस्ल की तलाश में रहते हैं. 46 फीसदी लोग इसके लिए अपने हमउम्र का चयन करते हैं.


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