सरकारी बेरुखी का शिकार सीआरपीएफ


CRPF officer first responders under insurgent situations but do they get their rights

  पुलवामा हमले में शहीद बबूल संतरा का घर.

कोलकाता से करीब 40 किमी दूर हावड़ा जिले के बउरीया गांव में आज सबकी आंखें नम हैं. गांव का आज एक बेटा तिरंगे में वापस आया है.  

14 फरवरी को पुलवामा हमले में मारे गए सीआरपीएफ के जवान शहीद बबूल संतरा का शव उनके घर के आंगन में रखा गया है, जहां लगातार रोने की आवाजे सुनाई दे रही हैं. उनके सामने कुछ मोब्बतियां जल रही हैं और लोग एक-एक कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि उन्हें अर्पित कर रहे हैं.

सीआरपीएफ को अपनी जिंदगी के 19 साल देने वाले संतरा शहीद हो गए हैं. हमले में मारे गए अन्य 39 जवानों के घर भी आज कुछ ऐसा ही माहौल है.

दुश्मनों से लड़ते हुए और विपरित परिस्थितियों में काम करना सीआरपीएफ की पहचान है, पर इन सबके लिए क्या सीआरपीएफ के सैनिकों को सरकार से उनका अधिकार मिलता है?

सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों से लेकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सक्रिय है. चुनावों में अतिरिक्त सेना बल की जरुरत हो या दंगा प्रभावित इलाकों में सुरक्षा और शांति बनाए रखना हो, सीआरपीएफ हर जगह मुस्तैद है.

पूर्व सीआरपीएफ महानिदेशक प्रणय सहाय बताते हैं कि, “तनावपूर्ण परिस्थियों में सबसे पहले प्रतिक्रिया करना सीआरपीएफ का काम है.”

बल के पूर्व निदेशक से लेकर सैनिकों का यह मानना है कि उन्हें वो सभी उचित सुविधाएं और सम्मान नहीं मिलता है जिसके वो हकदार हैं.

बल के जवानों को आर्मी की तुलना में न तो उच्चस्तरीय ट्रेनिंग मिलती है और न ही उचित सैलरी और सुविधाएं.

बल के अधिकारी बताते हैं कि “जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ आर्मी के साथ सीआरपीएफ भी काम करता है. लेकिन बल को आर्मी के तुलना कम सैलरी और सुविधाएं मिलती है. इसके अलावा सीआरपीएफ को आर्मी जैसी उच्चस्तरीय ट्रेनिंग का भी लाभ नहीं मिलता.”

कन्फेडरेशन ऑफ एक्स-पैरामिलिट्री वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव रणबीर सिंह बताते हैं कि “एक ही पोस्ट और समान अनुभव के आर्मी जवान को सीआरपीएफ के जवान की तुलना में डेढ़ गुना ज्यादा सैलरी मिलती है. सैलरी के साथ ही ये अंतर पेंशन में भी देखने को मिलता है.”

नाम न बताने की शर्त पर एक पूर्व निदेशक ने रॉयटर को बताया कि, “हम एक ही जगह लगभग एक समान परिस्थितियों में काम करते हैं, लेकिन साफ तौर पर हमें यह लगता है कि हमें उनके (आर्मी) समान नहीं समझा जाता है.”

अलग-अलग सुरक्षा बलों के बारे में उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि, “हम एक शरीर की तरह है, पर क्योंकि आपके लिए आपका दिल ज्यादा जरूरी है तो इसके लिए आप शरीर के दूसरे हिस्सों को तो नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं न.”

बल में सैनिकों की परेशानियों के बारे में वो बताते हैं कि खराब और तनावपूर्ण परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करते हुए परिवार से दूर रहना सैनिकों में तनाव को बढ़ता है.

उन्होंने बताया कि आर्मी की तुलना में सीआरपीएफ के ज्यादा सैनिक आत्महत्या करते हैं.

प्रणय सहाय ने बताया कि सैनिकों को मुहैया कराए जाने वाले घरों की समस्या भी बड़ी है. वो कहते हैं कि बल के केवल 13 से 14 प्रतिशत सैनिकों के लिए सरकारी क्वाटर की सुविधा उपलब्ध है. जिन्हें सरकारी क्वाटर नहीं मिलता है, वो निजी मकानों में रहते हैं.

इन परिस्थितियों में काम करने वाले जवानों के आधारभूत अधिकारों पर सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है. ऐसे में शहीद होने के बाद उन्हें कुछ मुआवजा राशि दे देना पूरी तरह नाकाफी है, जब उन्हें जीवित रहते हुए उन्हें उनके अधिकारों से महरूम रखा जाता है.


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