खुद दागदार रहा है सीवीसी केवी चौधरी का रिकार्ड


CVC K.V Chaudhri record tainted

 

मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के वी चौधरी पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने को लेकर उठे विवाद के चलते सुर्ख़ियों में हैं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे, हालांकि खुद उनका दामन भी इस मामले में दागदार रहा है. दि टेलीग्राफ के मुताबिक़, रिश्वत लेने के एक मामले में वे स्वयं आरोपी रहे हैं और इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई है.

खबर के मुताबिक, कामन कॉज (Common Cause) एनजीओ ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाते हुए उनकी नियुक्ति को रद्द करने संबंधी एक याचिका दायर की थी. हालांकि इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

इससे पहले भी साल 2011 में तत्कालीन सीवीसी रहे पी जे थामस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. हालांकि उनकी नियुक्ति को कोर्ट ने इस आरोप के आधार पर रद्द कर दिया था.

चौधरी 1978 बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं. उन्हें सबसे पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) का प्रमुख नियुक्त किया था. इस पद से सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें जून 2015 में मुख्य सतर्कता आयुक्त नियुक्त किया गया.

जिस मामले में कामन कॉज एनजीओ ने चौधरी पर आरोप लगाया था, उस मामले की सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण भी एनजीओ की ओर कोर्ट में पेश हुए थे. उन्होंने कहा था कि चौधरी का नाम भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे पूर्व सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के घर मिली डायरी में मिला था, इसलिए सीवीसी के पर पर उनकी नियुक्ति नहीं होनी चाहिए. उनका आरोप यह भी था कि सीबीडीटी के आयकर विभाग में होते हुए उन्होंने नीरा राडिया टेप मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की थी.

कामन कॉज ने कोर्ट में इस आधार पर भी चौधरी की नियुक्ति को चुनौती दी थी कि उनकी नियुक्ति संस्थानिक विश्वसनीयता के मानकों के अनुकूल नहीं है. सरकार को ऐसे किसी भी व्यक्ति को सीवीसी नहीं बनाना चाहिए, जिसका रिकार्ड दागदार हो. एनजीओ की दलील थी कि इसी आधार पर कोर्ट ने पी जे थामस की नियुक्ति को भी रद्द किया था.

दि टेलिग्राफ ने एक नौकरशाह के हवाले से यह भी लिखा है कि चौधरी गैर-भारतीय प्रशासनिक सेवा की पृष्ठभूमि से आने वाले पहले अधिकारी हैं जिन्हें सरकार ने सीवीसी के पद पर नियुक्त किया. वैसे इस पद पर सामान्यतः भारतीय प्रशासनिक सेवाओं से सेवानिवृत्त किसी नौकरशाह को नियुक्त किया जाता है. माना जाता है कि इसकी वजह उनकी एक केंद्रीय मंत्री से करीबी है.

चौधरी की नियुक्ति से पहले वरिष्ठ वकील रामजेठ मलानी और प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनको इस पद पर नहीं नियुक्त करने का आग्रह भी किया था.


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