कोटा : सपनों का लांच पैड या अंधी दौड़ की स्याह सुरंग
प्रतीकात्मक छवि
राजस्थान का कोटा शहर इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी के लिए पूरे देश में जाना जाता है. देश के लगभग हर कोने से छात्र यहां इन प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं.
लेकिन राजस्थान का ये खूबसूरत शहर बीते कुछ सालों से किन्हीं दूसरी वजहों से चर्चा का केंद्र बना हुआ है. हम यहां अंग्रेजी अखबार द हिंदू में एक छपी रिपोर्ट की चर्चा करेंगे.
इस रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती प्रतियोगिता और अन्य सामाजिक-आर्थिक दबावों के चलते यहां आने वाले छात्र लगातार अवसाद का शिकार हो रहे हैं. अपने सपनों का पीछा कर रहे ये छात्र कई बार इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकाते हैं.
ऐसे ही एक छात्र दीपक दधीच ने बीते हफ्ते अपने कोचिंग सेंटर में आत्महत्या कर ली. दीपक राजस्थान के बूंदी जिले के रहने वाले थे. उनकी मौत के बाद उनका परिवार सदमे में है.
दीपक ने ऐसा कदम क्यों उठाया, इस बात को लेकर उनके पास कोई जवाब नहीं है. दीपक के चाचा चंद्र प्रकाश कहते हैं कि उनके परिवार के पास खेती का व्यवसाय है, दीपक अगर सफल ना हो पाता तो उसके पास खेती करने का विकल्प मौजूद था.
दीपक कोई अपवाद नहीं
इस तरह का कदम उठाने वालों में दीपक इकलौता नहीं है. सालों से यह लगातार हो रहा है. बीते हफ्ते ही दीपक के अलावा दो अन्य छात्रों ने भी मौत को गले लगा लिया. जितेश गुप्ता जिनकी उम्र 17 साल थी, बिहार के सिवान जिले से यहां कोचिंग करने आए थे.
एक अन्य छात्रा दीक्षा सिंह, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले से यहां नीट परीक्षा की तैयारी के लिए आईं थी. इन तीनों छात्रों ने तो चार दिन के भीतर आत्महत्या कर ली. इनके साथ ही इस साल आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़कर 19 जा पहुंची.
इस साल पिछले साल की अपेक्षा आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या दो गुने से ज्यादा पर जा पहुंची है. बीते 2017 में सात छात्रों ने ऐसा कदम उठाया, जबकि 2016 में 17 छात्रों और 2015 में 16 छात्रों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया था.
कोटा में करीब डेढ़ लाख छात्र देश के दूर-दराज इलाकों, खासकर छोटे शहरों और कस्बों से पढ़ने के लिए आते हैं. यहां करीब 100 निजी कोचिंग संस्थान हैं जो इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं.
इनमें से ज्यादातर छात्र 11वीं कक्षा में यहां आते हैं और दो साल के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं. ये देश के चोटी के संस्थानों में प्रवेश पाने की जद्दोजहद में कमरतोड़ मेहनत करते हैं.
आईआईटी मुख्य प्रवेश परीक्षा आगामी जनवरी में होनी निर्धारित है, ऐसे में दिसंबर के महीने में छात्रों पर दबाव बढ़ जाता है. अब इसी महीने ये तीन आत्महत्याएं दिखाती हैं कि दबाव किस हद तक पहुंच चुका है.
अवसाद की कई वजहें
मनोचिकित्सक कोटा के छात्रों के इस व्यवहार का लगातार अध्ययन कर रहे हैं. उनके मुताबिक कड़ी शिक्षा पद्धति, घरवालों की ओर से पड़ने वाला दबाव और अन्य तरह के दबावों के चलते ये छात्र अवसाद में चले जाते हैं.
यहां चलने वाली कोचिंग में पढ़ने के लिए भारी फीस और बाकी खर्चों के लिए परिवारों को काफी खर्च करना पड़ता है. यह खर्च डेढ़ लाख से लेकर 5 लाख रुपये तक होता है. अधिकतर मौकों पर इस फीस को भरने के लिए परिवार बड़ी कठिनाई से गुजरते हैं.
कई बार कर्ज लेना पड़ता है. कई बार लोग घर की कीमती चीजें या जमीन को गिरवी भी रखते हैं. छात्रों पर इन सबका भारी दबाव होता है.इनमें से बहुत से छात्र अपनी खराब शुरुआती पढ़ाई के चलते कठिन पढ़ाई की सामना नहीं कर पाते हैं.
इस कारण परीक्षा में असफल होने का डर इन्हें अवसाद की ओर घसीट ले जाता है.
प्रशासनिक कोशिशें
ऐसी बात भी नहीं है कि प्रशासन लगातार बढ़ती इन घटनाओं को लेकर पूरी तरह से अनजान है. प्रशासन की ओर से भी समय-समय पर कोशिशें होती रही हैं कि बच्चों को ऐसे कदम उठाने से रोका जाए.
इसी तरह के एक प्रयास में स्थानीय जिला प्रशासन ने कोचिंग संस्थानों को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे. इनमें कोचिंग के लिए पढ़ाने के अतिरिक्त अन्य तरह की गतिविधियों, छात्रों को हफ्ते में कम से कम एक छुट्टी, छात्र और अभिभावकों की मीटिंग और नियमित काउंसलिंग जैसे कुछ नियमों को अनिवार्य कर दिया गया था.
अब पिछले हफ्ते हुई इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने 2016 की नियमावली को फिर से जोर देकर लागू कराने की कोशिशें शुरू कर दी है. इसी कड़ी में बीते गुरुवार को जिलाधिकारी मुक्तानंद अग्रवाल ने एक बैठक बुलाई थी.
उन्होंने कहा कि सरकारी विभाग सक्रिय तौर पर काम करेंगे. हम पूरी कोशिश करेंगे कि छात्र आत्मघाती कदम ना उठाएं.
कोटा छात्रावास संगठन ने अभी पिछले साल ही एक विशेष तरह की स्प्रिंग डिवाइस का प्रयोग शुरू किया था. इन्हें छत के पंखों के साथ फिट कर दिया जाता है. इनमें सेंसर लगे रहते हैं जो छात्रों को आत्महत्या करने से रोकने में सहायक होते हैं.
अब इस संगठन ने एक बार फिर से इसे अनिवार्य करने की मांग उठाई है. संगठन के अध्यक्ष मनीष जैन ने बताया कि जो छात्रावास इन मशीनों को नहीं लगायेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.