मनरेगा के तहत बढ़ी मजदूरी को मुद्रास्फीति सूचकांक से जोड़कर ग्रामीणों की आय बढ़ाएगी सरकार


decreasing rural demand and slowdown in the rural economy the government plans to inject more money in mgnrega scheme

 

केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना में ज्यादा रकम खर्च करने की योजना बना रही है. ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों में घट रही मांग और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुस्ती के मद्देनजर हो रहा है. इस योजना के तहत ग्रामीणों की आय को मुद्रास्फीति सूचकांक से जोड़ा जाएगा जिसे सालाना तौर पर संशोधित किया जाएगा.

सरकार को उम्मीद है कि इससे मजदूरों की आय बढ़ेगी. नतीजतन ग्रामीणों की खरीदने की क्षमता बढ़ेगी और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग फिर से बढ़ने लगेगी.

सरकार से इस कदम पर कुछ अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि क्या मजदूरी दरों को बेहतर मुद्रास्फीति सूचकांक से जोड़ना पर्याप्त होगा. वो भी तब जब मनरेगा योजना के तहत काम करने वालों को बाजार मूल्यों की तुलना में बहुत कम भुगतान किया जाता है.

मनरेगा के तहत एक कर्मचारी का राष्ट्रीय औसत आय 178.44 रुपये प्रति दिन है. इस साल की शुरुआत में श्रम मंत्रालय के एक पैनल ने सुझाव दिया था कि मजदूरों की न्यूनतम आय 375 रुपये प्रति दिन होनी चाहिए.

सितंबर के पहले हफ्ते में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और श्रम ब्यूरो ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को सूचित किया था कि उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आर) और खेतिहर मजदूरों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई- एएल) को अपडेट करने का काम शुरू कर दिया है.

ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने वर्तमान अर्थव्यवस्था का हवाला देते हुए कहा, “यह काफी समय से लंबित मांग रही है. लेकिन अब ये मामला और अधिक मजबूत हो गया है. यह मांग पक्ष के हस्तक्षेपों में से एक है जिसके लिए अब सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था के परिदृश्य को देखते हुए कदम उठाने जा रही है.”

अधिकारी ने बताया, “सीपीआई- एएल के खपत की सीमा को पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से अपडेट नहीं किया गया है. इसी दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में खपत के तरीकों में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है.”

सीपीआई- एएल के खपत में खाने-पीने की चीजों का हिस्सा दो-तिहाई होता है. लेकिन आज ग्रामीण कर्मचारी अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन पर खर्च करते हैं और छोटा हिस्सा सब्सिडी वाले खाने-पीने की चीजों पर करते हैं.

अधिकारी ने कहा, “सरकार अब सूचकांक को सालाना अपडेट करने के लिए राजी हो गई है. किसी भी राज्य में जो सूचकांक सबसे अधिक होगा उससे मनरेगा मजदूरी को जोड़ दिया जाएगा. इसके बाद अपडेट किए हुए मुद्रस्फिति सूचकांक के तहत बढ़ी हुई मजदूरी की वजह से योजना पर सरकारी खर्च 10 फीसदी अधिक बढ़ जाएगा.”

मजदूरी दर में संशोधन के बारे में आमतौर पर वित्त वर्ष के शुरुआत में अधिसूचित किया जाता है. लेकिन मंत्रालय चालू वर्ष में ही बढ़े हुए मजदूरी को लागू करने के की कोशिश कर रही है. मंत्रालय का यह कदम लगातार बरकार मंदी से निपटने के तौर पर उठाया गया है.

भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष ने कहा, “मनरेगा के तहत अगर सरकार पैसे खर्च करती है तो ग्रामीण मजदूरी बढ़ेगी जिससे उपभोक्ताओं की खरीदारी करने की क्षमता बढ़ेगी.” कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मांग पैदा करने के लिए यह कदम पर्याप्त है भी या नहीं.

आंबेडकर यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाली शिक्षिका दीपा सिंहा ने कहा, “बेशक किसी भी तरह की मजदूरी में बढ़ोतरी का स्वागत है. लेकिन मनरेगा में मजदूरी का आधार मूल्य ही इतना कम है जिसे अभी मुद्रास्फिति से जोड़ना पर्याप्त नहीं होगा.”

हाल ही में किए गए श्रम बल सर्वेक्षण के मुताबिक 2017-18 में पुरुषों के लिए मनरेगा की मजदूरी की तुलना में बाजार की मजदूरी 74 फीसदी अधिक थी. वहीं महिलाओं के लिए इन दोनों में 21 फीसदी का फर्क था.

दीपा सिंह ने कहा, “सरकार को सबसे पहले मजदूरी बढ़ानी चाहिए. इसके साथ ही बेहतर मुद्रास्फीति सूचकांक सुनिश्चित करना चाहिए वरना इसका फायदा काफी कम होगा.”

मौजूदा मजदूरी के साथ भी योजना के तहत काम की मांग बढ़ रही है, जिसके कारण राशि की कमी हो रही है. मनरेगा को 60,000 करोड़ का बजटीय आवंटन प्राप्त हुआ है जिसमें से 75 फीसदी से अधिक केंद्र साल की आधी अवधि से पहले ही जारी कर चुका है. पिछले हफ्ते ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से 15,000 करोड़ से 20,000 करोड़ के अतिरिक्त अनुपूरक अनुदान के लिए कहा है.

कई राज्यों में सूखे और बाढ़ के कारण साल के शुरुआत में काम की मांग में वृद्धि हुई थी. और रबी मौसम के खत्म होते ही आर्थिक मंदी के मद्देनजर काम की मांग फिर से बढ़ सकती है.


Big News