परियोजनाओं में देरी से खर्च में 3.2 लाख करोड़ का इजाफा


delay in government schemes cost overruns

 

केंद्र सरकार की योजनाओं में देरी के चलते करीब साढ़े तीन सौ परियोजनाओं की लागत में 3.2 लाख करोड़ से ज्यादा का इजाफा हो चुका है. ये बात एक सरकारी रिपोर्ट में सामने आई है.

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये योजनाएं 150 करोड़ या उससे अधिक की लागत वाली हैं. मंत्रालय इस तरह की बुनियादी संरचना वाली परियोजनाओं की निगरानी करता है.

मंत्रालय ने नवंबर 2018 के लिये जारी इस रिपोर्ट में कहा, ‘‘1,443 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 18,30,362.48 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 21,51,136.69 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है. मूल लागत में 3,20,774.21 करोड़ रुपये यानी 17.53 फीसदी की वृद्धि हुई है.’’

रिपोर्ट के अनुसार इन परियोजनाओं पर नवंबर 2018 तक 7,97,496.44 करोड़ रुपये खर्च हुए. यह कुल अनुमानित लागत का 37.07 फीसदी है.

मंत्रालय ने कहा कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की समयसीमा के अनुसार देखा जाए तो विलंबित परियोजनाओं की संख्या कम है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विलंबित 360 परियोजनाओं में से 106 में एक महीने से 12 महीने की देरी हुई है. इनके अलावा 60 परियोजनाओं में 13 से 24 महीने की, 93 परियोजनाओं में 25 से 60 महीने की तथा 101 परियोजनाओं में 61 महीने या इससे अधिक की देरी हुई है.

कुल 360 परियोजनाओं में औसतन 44.43 महीने की देरी हुई है.

देरी की मुख्य वजहें भूमि अधिग्रहण, वन मंजूरी तथा उपकरणों की आपूर्ति को बताया गया है.

इसके अलावा धन, भूगर्भीय अवरोध, भू-उत्खनन परिस्थितियां, असैन्य कार्यों की धीमी गति, श्रमिकों की कमी, ठेकेदारों द्वारा अपर्याप्त कार्य, नक्सलवाद, अदालती मामले, करार की दिक्कतें, कानून एवं व्यवस्था आदि को भी देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.


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