डॉक्टरों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं मोहल्ला क्लिनिक


delhi's mohalla clinics are suffering from shortage of doctors and employees

 

दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके के ब्लॉक संख्या-7 में चल रहे मोहल्ला क्लिनिक के अंदर दर्जनों मरीज बड़े कौतूहल से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. इंतजार कर रहे मरीजों की उम्र 10 साल से लेकर 70 साल तक है. बारी-बारी से मरीज डॉक्टर के पास जाकर अपनी बीमारी के बारे में बता रहे हैं.

पिछले 12 साल से डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहीं 60 वर्षीय मुन्नी देवी ने डॉक्टर से इलाज कराने के बाद बाहर आकर बताया, “डॉक्टर ने मुझे दो तरीके की दवाई 10 दिनों के लिए दी है. मैं मोहल्ला क्लिनिक में आने से पहले मालवीय नगर में स्थित एक सरकारी अस्पताल में डायबिटीज का इलाज कराती थी लेकिन उम्र की वजह से दूर आना-जाने में काफी परेशानी होती है, इसलिए अब मैं अपना इलाज घर के नजदीक इसी मोहल्ला क्लिनिक में कराती हूं. यहां पर भी डॉक्टर मुझे वही दवाएं दे रहे हैं जो मुझे दूसरी जगहों पर मिलती थीं.”

मुन्नी देवी ने आगे कहा, “शुरुआत में मुझे जब पता चला कि मुझे डायबिटीज है तो मैंने पिछले कुछ सालों में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाना शुरू किया, लेकिन वहां की फीस बहुत ज्यादा थी. जिसके बाद मेरे भांजे ने बताया कि मोहल्ला क्लीनिक में मेरी बीमारी की इलाज मुफ्त में हो जाएगा. इसके बाद मैं पिछले पांच महीनों से यहां आकर अपना इलाज करा रही हूं.”

करीब 10 मिनट से अपनी बारी का इंतजार कर रहे दक्षिणपुरी इलाके में रहने वाले रम्मानंद अपनी तीन साल की पोती को साथ लेकर डॉक्टर के कमरे में दाखिल होते हैं. रम्मानंद कमरे से बाहर निकलकर सामने बने दवाई के काउंटर पर जाकर दवाएं ले रहे हैं. काउंटर पर मौजूद महिला कर्मचारी भवानी देवी रम्मानंद को बताती हैं कि कौन सी दवाई कब लेनी है. रम्मानंद ने बताया कि उनकी पोती को पिछले दो दिनों से बुखार है, जिसका इलाज कराने के लिए वे यहां आए हैं.

रम्मानंद ने कहा, “डॉक्टर साहब और यहां पर काम कर रहे कर्मचारी बहुत अच्छे हैं और बड़े ध्यान से मरीजों की बातों को सुनते हैं. हमारे परिवार के सभी व्यक्ति छोटे-मोटे इलाज के लिए इसी मोहल्ला क्लीनिक पर इलाज कराने आते हैं. यहां पर सभी तरह की जांच भी हो जाती हैं.”

जब मरीजों की भीड़ थोड़ी कम हुई तो मैं डॉ. उदय सिंह से मिलने पहुंचा. मैनें जब उनसे पूछा कि आज कितने मरीज इलाज कराने आए हैं तो उन्होंने बतााया कि आज के दिन तकरीबन 70 मरीजों का इलाज हो चुका है. लेकिन औसतन मरीजों की संख्या 90 से लेकर 100 तक पहुंच जाती है. डॉक्टर उदय आगे कहते हैं कि जब मौसम बदलने की वजह से बीमारियां बढ़ती हैं, तो मरीजों की संख्या 120 से लेकर 150 तक पहुंच जाती है. उन्होंने आगे कहा कि हमारी कोशिश रहती है कि जो भी मरीज अपना इलाज कराने यहां आए वो पूरी तरह से ठीक होकर ही जाए.

मोहल्ला क्लिनिक में इलाज के लिए मौजूद मशीनों के बारे में उन्होंने कहा, “बड़े-बड़े अस्पतालों में ऐसी मशीनों की कमी है, जो हमारे पास यहां मौजूद है. जब मैंने डॉ. उदय से पूछा कि कई बार लोगों की शिकायत रहती है कि कई तरह की बीमारियों के लिए एक ही प्रकार की दवाएं दी जाती हैं, तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि यह मुमकिन ही नहीं है.

जब मैंने उनसे पूछा कि मोहल्ला क्लिनिक को चलाने में सबसे बड़ी परेशानी क्या आ रही है तो उन्होंने धीरे से कहा कि सब कुछ तो ठीक है, लेकिन यहां स्टाफ की कमी है, जिसकी वजह से हमे कभी-कभी बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा कि कभी जब मरीजों की भीड़ ज्यादा हो जाती है तो मुझे ही इलाज भी करना पड़ता है और तमाम तरह की जांच भी करनी पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि हमें चार लोगों यानी एक डॉक्टर और तीन कर्मचारियों की जरूरत हमेशा होती है लेकिन अभी सिर्फ 2 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं, अगर स्टाफ की संख्या बढ़ जाए तो सारी परेशानी खत्म हो जाएगी.

इसके बाद मरीजों के खून जांच करने वाले मोहम्मद अजमद कहते हैं कि यहां खून के सैंपल की रिपोर्ट एक दिन के अंदर ही मिल जाती है. उन्होंने भी स्टाफ की कमी की शिकायत करते हुए कहा कि यहां पर ब्लड और दूसरी जांचों के लिए कम से कम दो कर्मचारियों की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि ज्यादा कर्मचारी ना होने की वजह से मुझे ही अकेले सारे काम करने पड़ते हैं. अजमद आगे कहते हैं कि यहां पर वैसे भी जांच होती हैं जो प्राइवेट अस्पतालों में नहीं होतीं. उन्होंने बताया कि इन मशीनों का सबसे ज्यादा फायदा गरीबों को मिल रहा है जो प्राइवेट अस्पताल के खर्चे नहीं उठा पाते हैं, हम किसी भी प्रकार के सरकारी अस्पताल से रेफर मरीजों का चेकअप करते हैं.

डॉ. उदय के अलावा यहां दो कर्मचारी कार्यरत हैं. एक हैं मोहम्मद अहमद जो मरीजों का चेकअप करते हैं, दूसरी हैं 56 वर्षीय भवानी देवी जो मरीजों को प्राथमिक चिकित्सा देने के साथ दूसरे काम भी करती हैं.
जब मैं इस मोहल्ला क्लीनिक से दोपहर डेढ़ बजे बाहर निकल रहा था तो उस वक्त भी 10 से ज्यादा मरीज अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे.

वहां से निकलकर मैं दक्षिणपुरी इलाके के ही ब्लॉक नं-5 में चल रहे मोहल्ला क्लिनिक पहुंचा तो बाहर से शांत दिखने वाले मोहल्ला क्लिनिक के अंदर तकरीबन 15 मरीज इलाज कराने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. मरीजों की भीड़ के बीच से 40 वर्षीय रेणु डायबिटीज का इलाज कराने के बाद बाहर आकर दवाई लेने लगीं. रेणु ने बातचीत के दौरान बताया कि यह मोहल्ला क्लिनिक मेरे घर से बहुत नजदीक है इसलिए यहां आकर इलाज कराती हूं, यहां के डाक्टर काफी बेहतर तरीके से इलाज करते हैं.

उसके बाद मैं वहां के डॉक्टर विनय से बातचीत करने के लिए उनके कमरे में दाखिल हुआ. उसके बाद मैंने उनसे पूछा कि मोहल्ला क्लीनिक को चलाने में कोई परेशानी हो रही है? डॉक्टर विनय ने कहा, “आप देख ही सकते हैं कि यहां सब कुछ ठीक चल रहा है बस कर्मचारियों की कमी की वजह से हमें परेशानियों का सामना करना पड़ा है. मैंने कई बार बैठक के दौरान हमारे सीनियर डॉक्टर अधिकारियों से कहा कि हमारे मोहल्ला क्लिनिक में कर्मचारियों की जरूरत है.” ब्लाक-5 के मोहल्ला क्लिनिक में भी डॉक्टर विनय के अलावा दो कर्मचारी कार्यरत हैं.

इसके बाद जब मैंने दिल्ली स्वास्थ्य विभाग में जाकर यह जानने की कोशिश की कि आखिर क्यों डॉक्टरों और कर्मचारियों की कमी है तो उनका कहना है कि हम समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जुलाई 2019 से हम उन मोहल्ला क्लिनिकों की खोज कर रहे हैं, जहां हर दिन डेढ़ सौ से ज्यादा मरीज इलाज कराने आते हैं. इस तरह के जितने भी मोहल्ला क्लिनिक होंगे उन सभी में इलाज के समय को 6 घंटे से दुगुना कर 12 घंटे करने वाले हैं. फिलहाल, इस समय मोहल्ला क्लिनिक में इलाज कराने का समय सुबह आठ बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक है.

मोहल्ला क्लिनिक को लेकर आम आदमी पार्टी के वादे और हकीकत

मोहल्ला क्लिनिक को पहली बार 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा स्थापित किया गया था. दरअसल आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार दिल्ली में बनती है तो 900 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले जाऐंगे.

आम आदमी पार्टी ने सरकार बनने के एक साल बाद यानी 2016 में मोहल्ला क्लिनिक को बनाने की संख्या 900 से बढ़ाकर 1000 कर दी थी.

अरविंद केजरीवाल सरकार के ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ मोहल्ला क्लिनिक की कड़वी हकीकत यह है कि अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के साढ़े चार साल के बाद भी सिर्फ 191 क्लिनिक ही बन पाए हैं. दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि अभी तक 55 लाख लोग मोहल्ला क्लिनिक में आकर इलाज करा चुके हैं, हर दिन लगभग 90 लोग एक क्लिनिक में आते हैं. मगर हकीकत यह है कि एक दिन में मोहल्ला क्लीनिक के अंदर 100 से 120 लोग अपना इलाज कराने आते हैं.

मोहल्ला क्लिनिक की संख्या में कमी के कारण

साल 2017 में दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने आम आदमी पार्टी की महत्वकांक्षी परियोजना पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद दिल्ली सरकार और दिल्ली के एलजी के बीच गहमागहमी काफी बढ़ गई थी. 4 जुलाई 2018 तक दिल्ली मंत्रीमंडल को हर मंजूरी लेने के लिए उप-राज्यपाल का दरवाजा खटखटाना पड़ा, लेकिन 4 जुलाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसला में कहा कि दिल्ली मंत्रीमंडल के पास खुद फैसले लेने का अधिकार है.

लेकिन केजरीवाल सरकार के लिए परेशानी यहीं पर खत्म नहीं हुई. इसके बाद सबसे बड़ी परेशानी बनकर सामने आई डीडीए यानी दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरटी. डीडीए और जमीन के दूसरे मालिकों ने मोहल्ला क्लिनिक बनाने के लिए सरकार को जमीन देने से मना कर दिया.

आम आदमी पार्टी सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक मोहल्ला क्लिनिक को बेहतर तरीके से चलाने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि डॉक्टरों और अधिकारियों की संख्या में इजाफा किया जाए. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय में डॉक्टरों की कमी की वजह से दिल्ली के अंदर चल रहे बहुत सारे मोहल्ला क्लिनिकों में ताला लग चुका है.

मोहल्ला क्लीनिकों की हालत देखकर “शहबाज ख्वाज” का एक शेर याद आता है-

“सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है, अब आसमान तलक रास्ता बनाना है.”


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