भारत-पाक सीमा पर शांति के पथ को रौशन करती सैकड़ों मोमबत्तियां


dr Saiyada hamid blog on agaz e dosti

 

भारत और पाकिस्तान की सरहद पर 14 अगस्त और 15 अगस्त के बीच की मध्य रात्रि को सैकड़ों महिलाएं और पुरुष मोमबत्ती लेकर जमा हुए और शांति की अपील की. ये वो घड़ी है जब पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मना चुका था और भारत अपना स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा था.

ये लगातार 24वां साल था जब लोग वहां मोमबत्तियां लेकर इकट्ठा हुए थे. इस साल दोनों देशों का माहौल अपने सबसे खराब स्थिति में है. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने जहां कठोर शब्दों में इसकी निंदा की है वहीं, भारत ने भी उसी की भाषा में इसका जवाब दिया है. यदि महात्मा गांधी के शब्दों में कहा जाए तो पूरा विश्व अंधेरे में है.

पिछले पांच अगस्त से हम सभी इसी आशंका में थे कि क्या ये सफर पूरा होगा या इसे बीच में ही रोक दिया जाएगा. दोनों तरफ के शांति कार्यकर्ता जो बाब-ए-आजादी पर एकत्र होकर मोमबत्तियां जलाने की योजना बना रहे थे और भारतीय अट्टारी की तरफ मोमबत्तियां ठीक उसी समय जलाने वाले थे. शांति कार्यकर्ता अपनी-अपनी सरकारों की तरफ से रेड अलर्ट जारी किए जाने से सशंकित थे.

यहां तक कि जब मोहनी गिरि की संस्था गिल्ड ऑफ सर्विस से झण्डा दिखाकर हमने यात्रा का शुभारंभ किया उस समय भी आशा से अधिक उत्साह था, कम-से-कम मेरे दिल में तो था ही.

13 अगस्त की सुबह अमन दोस्ती बस 45 यात्रियों को लेकर रवाना हुई. बाकी लोगों को पानीपत में शामिल होना था जहां राम मोहन राय पिछले कई सालों से इसका प्रबंधन करते आए हैं. दो बस और एक इनोवा पर सवार होकर 78 यात्री आशा और अमन की यात्रा पर रवाना हो गए.

मुझे बताया गया कि साल 2000 में महिला शांति कार्यकर्ताओं की बस जिसमें 43 महिलाएं सवार थीं निर्मला देशपांडे और मोहिनी गिरि के नेतृत्व में लाहौर की यात्रा की थी. ये उस समय की बात है जब करगिल युद्ध के कारण दोनों देशों का माहौल बहुत खराब था. हमारे गीत की पंक्ति वही थी जो विनोबा भावे की पदयात्रा में गाया गया था.

आगाज-ए-दोस्ती के बैनर तले अमन-दोस्ती बस में देश के सभी क्षेत्रों से आए हुए लोग सवार थे. इनमें महाराष्ट्र से आए 93 साल के स्वतंत्रता सेनानी हारू ताई से लेकर सात साल से भुवनेश जो दीपक कथुरीया के बेटे हैं, शामिल थे.

महिला, पुरुष, युवा जो कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि जगहों से आए थे, ये लोग 20-20 घंटे के सफर तय करके पहुंचे थे क्योंकि रास्ते में कई जगह ठहराव भी था.

इसका मुख्य कारण यह था कि इस यात्रा के रास्ते में भी इसके उद्देश्य और विचार को फैलाया जाए तथा ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाए. मीडिया के उन्माद के बावजूद सारी शंकाएं निर्मूल साबित हुईं. रास्ते में जगह-जगह यात्रियों का फूल की मालाओं, मिठाईयों, ठंडे पानी की बोतलों और खाद्य सामग्रियों से लोगों ने स्वागत किया.

उन्होंने कॉर्नर मीटिंग तथा नुक्कड़ नाटकों का भी आयोजन किया. सभी इस शांति की यात्रा से बहुत ही खुश तथा उत्साहित थे. वे नारे लगा रहे थे, “गोली नहीं बोली, युद्ध नहीं बुद्ध, जंग नहीं अमन.”

अमृतसर खुले दिल से और बाहें फैलाकर उनका स्वागत करने के लिए तैयार था. नाटशाला जो वहां का सांस्कृतिक केन्द्र है एक बार फिर अपना दरवाजा खोल दिया. हॉल पूरी तरह से अमृतसर, लुधियाना, जलंधर और पंजाब के दूसरे हिस्से से आए लोगों से भरा हुआ था.

हिन्द पाक दोस्ती मंच ने इस कार्यक्रम को दुनिया के सबसे बड़े शांति के प्रतीक गुरु नानक देव जी को समर्पित किया है. गुरु नानक देव जी का 550वां जन्म दिन के उपलक्ष्य में पूरे विश्व भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. कुलदीप नैयर ने अपनी आखरी सांस तक हिन्द पाक दोस्ती मंच को सींचा था.

कुलदीप नैयर के ‘शांति के विद्यार्थी’ सतनाम मानक और रमेश यादव अपने मजबूत हाथों से इन मोमबत्तियों को साधे रखा है तथा विपरीत हवाओं में भी इसे बुझने से बचाया है.

यहां सांसद कुमार केतकर, द वायर के एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन, मछुआरों के लिए काम करने वाले जतिन देसाई, दार्शनिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन, भगत सिंह के परिवार के प्रोफेसर जगमोहन, इतिहासकार रवि नितेश ने भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर तथा गुरु नानक देवजी के दर्शन पर अपने विचार रखे.

प्रोफेसर गोगवानी ने गुरु नानक देव जी को हिन्दुओ का गुरु और मुसलमानों का पीर कहकर संबोधित किया. हर एक के वक्तव्य में कश्मीर का जिक्र बार-बार आया. सतनाम मानक ने जनतंत्र को जीवित रखने की अपील की तथा उन्होंने कहा कि पंजाब बलिदान की धरती है जो इस लड़ाई को लड़ेगी.
कमला भसीन ने जेंडर के दृष्टिकोण से अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि जो दीवार दिलों को तथा लोगों को बांटती है, महिलाएं उस दीवार में दरार डालती हैं.

कार्यक्रम में लगे बैनर पर सात संस्थाओं के नाम अंकित थे. मंच से वक्ताओं ने दिल से अपनी बात कही. श्रोता उनकी बातों को बिना किसी व्यावधान के लगातार चार घंटों तक सुनते रहे.

जब प्रस्ताव को सतनाम मानक ने साफ तथा स्पष्ट शब्दों में पढ़ा तो इसी बीच श्रोताओं ने अपील की कि उसमें कश्मीरी महिलाओं के बारे में जिस तरह से आपत्तिजनक बयानबाजी की जा रही हैं खास कर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के द्वारा इसकी भी निंदा की जाए.

कुल 17 संस्थाएं अमन दोस्ती यात्रा के आयोजक थे. मेरे लिए जो आश्चर्य का विषय था वो SAFMA नामक संस्था जिसका नेतृत्व इम्तियाज आलम कर रहे थे. यह एक मीडिया आर्गेनाइजेशन है. वे लाहौर से आए थे.  इस कार्यक्रम की शुरुआत कुलदीप और इम्तियाज ने मिलकर 24 साल पहले दोनों तरफ के आधिकारिक कार्यक्रम से अलग हटकर की थी. लेकिन आज के माहौल में SAFMA का आगे-आगे देखना एक सुखद अहसास है.

शाम को सूफी संगीत का आयोजन किया गया जो मुख्यत: पंजाबी में था. शुरुआत नुसरत फतेह अली खां के ‘अल्लाह हू’ से हुई और समापन ‘तू उठ के मोमबत्तियां जला दे’ से हुई. दोनों गीतों को सन्नी सलीम एण्ड ब्रदर्स ने गाया.

कुलदीप का जज्बा महफिल में महसूस किया जा सकता था. बहुत सारी आंखे नम थी.

तभी एक युवक पंजाबी में एक नज्म जालियांवाला बाग के 100 साल पूरे होने पर गाने आया. उसकी आवाज में उस घटना के दर्द को महसूस किया जा सकता था.

मैने पूछा कौन हैं ये?

जावाब मिला- याकूब गिल.

तब मुझे याद आया कि ये तो हजरत याकूब का हमनाम हैं. वह युवा हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना था.

जीरो लाइन से कुछ दूरी पर खड़े होकर 100 लोगों ने हाथ में मोमबत्तियां लिए जो शांति की मोमबत्तियां थीं और कॉमरेड जो गेट के दोनों तरफ खड़े थे.  पांच नदियों की भूमि पर मैं इन लोगों के बीच खड़ी थी. मुझे महसूस हुआ कि मैं अपने लोगों के बीच हूं. अखंड पंजाब भी मेरा वतन है. कई दिनों के बाद मैं सुरक्षित तथा आशांवित महसूस कर रही हूं.

डॉक्टर सैयदा हमीद (लेखिका, ट्रस्टी समृद्ध भारत फाउण्डेशन)

रेयाज अहमद (फेलो, मुस्लिम वीमेंस फोरम)


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