पढ़ने के बावजूद क्यों काम नहीं कर पा रही महिलाएं ?
देश में महिला साक्षरता दर बढ़ने के बावजूद कामगार महिलाओं की संख्या नहीं बढ़ी है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है जिसमें सामाजिक-आर्थिक कारणों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन (आईसीआरआईईआर) की ओर से प्रकाशित सुरभि घई के अध्ययन में महिला कामगारों पर कुछ अहम बातें सामने आई हैं.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, “साक्षरता दर बढ़ने के बावजूद कामगार महिलाओं की संख्या में इसलिए बढ़ोतरी नहीं हुई क्योंकि महिलाएं आज डिग्री ले रही हैं ताकि उनकी अच्छे घर में शादी हो सके. घर वाले उन्हें पढ़ने की इजाजत दे देते हैं लेकिन जब बात बाहर जा कर काम करने की आती है तब उन्हें घर की इज्जत के बारे में याद दिलाया जाता है.”
क्या कहते हैं आंकड़े
अध्ययन में दिए गए श्रम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2011-2012 और 2015-2016 के बीच शिक्षा और आयु वर्ग के सभी स्तरों पर महिलाओं के श्रम-बल में बढ़ोतरी हुई है. 30 साल या उससे ज्यादा आयु वर्ग की महिलाओं में ग्रेजुएट या इससे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिलाओं की संख्या बढ़ी है जो श्रम बल से बाहर हैं . ऐसी महिलाओं का संख्या 62.7 फीसदी से बढ़कर 65.2 फीसदी हो गई है. इसके साथ ही उन महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है जो अशिक्षित हैं और श्रम बल से बाहर हैं. इन महिलाओं की संख्या 67.6 फीसदी से बढ़कर 70.1 फीसदी हो गई है.
इस आधार पर पढ़ी-लिखी महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद काम करने वाली महिलाओं की संख्या घटी है. आंकडे़ बताते हैं कि कक्षा 10वीं से लेकर ग्रेजुएशन तक अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले लड़कों और लड़कियों की संख्या लगभग एक समान है. लेकिन काम करने वाले पुरुषों और महिलाओं की संख्या में एक बड़ा अंतर पाया गया है.
इसके पीछे चार प्रमुख कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है. लड़कियों को शादी के लिए तैयार करना, सामाजिक मानसिकता, शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षित महिलाओं की बुरी स्थिति.
सामाजिक मानसिकता के चलते एक परिवार अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ता है कि वो आगे चलकर आत्मनिर्भर हो सके और अच्छे रुपये कमा सके. बल्कि उसे उतना ही पढ़ाया जाता है जितना शादी करने के लिए जरूरी है.
व्यवहारिक कोशिशों से आएगा बदलाव
साल 2011-12 में कुल आबादी में 60 फीसदी तलाक और पतियों द्वारा छोड़ी गई महिलाओं में केवल 0.4 फीसदी ही हैं, जो नौकरी कर रही थीं. आज महिलाओं की कुल 50.5 फीसदी आबादी में केवल 32.5 फीसदी ही काम कर रही हैं. आज शिक्षित और विकसित समाज की ओर बढ़ने के बाद भी हममें से बहुत से लोग हैं जो इस वाक्य में विश्वास रखते हैं कि अच्छे घर की महिलाएं बाहर जा कर काम नहीं करती हैं.
अध्ययन में कामगार महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए व्यवहारिक बदलावों पर जोर दिया गया है. सरकार को समाज में महिलाओं के काम करने के लिए सही माहौल, स्त्री-पुरुष असमानता खत्म करना और कामगार महिलाओं को लेकर समाज की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करना चाहिए.