इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरा, लेकिन पढ़ाई की गुणवत्ता घटी
साल 2005 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू होने के बाद स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में तो सुधार हुआ है, लेकिन उनकी शैक्षणिक स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है. एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) के मुताबिक, स्कूल से बाहर रहने वाले कुल बच्चों की संख्या में तो कमी आई है, लेकिन उनके लर्निंग आउटकम में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है.
असर ने पूरे देश के 3 से 16 साल के 5,46,527 छात्र-छात्राओं के बीच लर्निंग आउटकम को लेकर सर्वे किया था. इस सर्वे में यह बात सामने आई है कि वर्ग पांच में पढ़ने वाले केवल 51 फीसदी छात्र वर्ग दो की किताब पढ़ पाते हैं. जबकि आठ साल पहले यह आंकड़ा 56 फीसदी था. सर्वे के मुताबिक, गणित में भी छात्रों का प्रदर्शन घटा है. साल 2008 में 37 फीसदी छात्र गणित का भाग कर पाते थे. वहीं साल 2018 में केवल 28 फीसदी छात्र यह काम कर पाते हैं.
लर्निंग आउटकम का आंकलन मुख्य रूप से गणित और भाषा में दक्षता के आधार पर किया जाता है.
हालांकि सर्वे का निष्कर्ष है कि अब केवल 2.8 फीसदी बच्चे ही स्कूल से बाहर हैं. यह पहली बार है जब यह आंकड़ा तीन फीसदी से कम रहा है. बीते सालों में स्कूलों में अनामांकित छात्राओं की संख्या भी गिरी है. साल 2010 में यह छह फीसदी थी जबकि साल 2018 में यह घटकर 4 फीसदी रह गई है. साल 2010 में नौ बड़े राज्यों में पांच फीसदी से अधिक लड़कियां स्कूल से बाहर थीं. साल 2018 में ऐसे राज्यों की संख्या घटकर पांच रह गई है.
असर की रिपोर्ट के मुताबिक, आरटीई की वजह से राज्यों में संरचना के स्तर पर असमानता में कमी आई है. जिसकी वजह से स्कूलों में नामांकन बढ़ा है.
तुलनात्मक रूप से राज्यों की शैक्षणिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. केरल अब भी अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में है. जबकि झारखंड की स्थिति बदतर बनी हुई है. केरल के 51 फीसदी वर्ग पांच के छात्र वर्ग तीन की पाठ्य पुस्तक पढ़ पाते हैं. वहीं झारखंड के केवल 34 फीसदी छात्र ही इस कैटगरी में आते हैं.
हिमाचल प्रदेश में कक्षा पांच के 56.6% छात्र गणित का भाग कर पाते हैं. वहीं मेघालय के केवल 7.2% पांचवी के छात्र गणित का भाग करना जानते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक ‘अपेक्षाकृत सक्षम अभिभावक’ अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना ज्यादा पसंद करते हैं.
सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के लर्निंग आउटकम का अंतर बढ़ रहा है. साल 2008 में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वर्ग पांच के 53 फीसदी छात्र कक्षा दो की किताब पढ़ पाते थे. वहीं, प्राइवेट स्कूलों में इसी मानक कुल छात्रों की संख्या 68 फीसदी थी. साल 2018 में यह अंतर 15 फीसदी से बढ़कर 21 फीसदी हो गई.
प्राइवेट स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या भी लगातार बढ़ी है. साल 2006 में यह 18.7 फीसदी से बढ़कर साल 2014 में 30.8 फीसदी हो गई. वहीं, साल 2018 में यह 30.9 फीसदी बना हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक उम्र के हिसाब से छात्रों के वर्ग के निर्धारण की वजह से केवल कक्षा के टॉपर छात्रों को ही ज्यादा फायदा हो रहा है.
जानकारों के मुताबिक, इसके लिए छात्रों को उनके कौशल के हिसाब से समूहों में बांटकर पढ़ाया जाना चाहिए. लेकिन शिक्षकों में कौशल की कमी और कक्षा में छात्रों की बड़ी संख्या की वजह से इसे लागू कर पाना मुश्किल होता है.
आरटीई में प्राइमरी स्कूलों के लिए छात्र और शिक्षक का अनुपात 30:1 रखने का प्रावधान है. साल 2010 की तुलना में यह अनुपात 38.9 फीसदी से बढ़कर 76.2 फीसदी हो गया है. हलांकि कई राज्यों में यह काफी कम है. उदाहरण के लिए बिहार में छात्र और शिक्षक के मानक अनुपात को केवल 19.7 फीसदी है. यह 2010 में 8.8 फीसदी था.
इंफ्रास्ट्रक्चर के मानकों में सुधार आया है. साल 2018 में 66.4 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बन चुका है. 2010 में केवल 32.9 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की सुविधा थी. असर की रिपोर्ट के मुताबिक, मिड-डे-मील की वजह से स्कूली छात्रों में कुपोषण कम करने में मदद मिली है.
हालांकि अलग-अलग राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर के मानकों में भारी अंतर देखने को मिलता है.
इनपुट : इंडिया स्पेंड से