सबरीमला: मंदिर बोर्ड ने सभी महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया
केरल के सबरीमला मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख बदलते हुए मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया है. देवस्वओम बोर्ड ने कहा कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के कोर्ट के फैसले का समर्थन करता है.
जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बोर्ड से पूछा कि क्या त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड के स्टैंण्ड में कोई बदलाव आया है? आपने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पहले आपत्ति जताई थी. अब आप सबरीमला फैसले के समर्थन में हैं.
इसके जवाब में बोर्ड ने कहा, “हां. हमने आपना विचार बदल दिया है. इसको लेकर हमने अपना आवेदन दिया है.”
इससे पहले देवस्वओम बोर्ड परंपरा का हवाला देते हुए महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ था.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा,”यह उचित समय है कि किसी वर्ग विशेष के साथ उसकी शारीरिक अवस्था की वजह से पक्षपात नहीं किया जाए.”
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटाने का निर्देश दिया था.
सबरीमला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहा है. परंपराओं के मुताबिक यहां मासिक धर्म वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.
द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 25 (1) सभी व्यक्तियों को धर्म का पालन करने का समान अधिकार देता है.
त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड में राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं.
बोर्ड ने इससे पहले इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका का जबर्दस्त विरोध करते हुए कहा था कि सबरीमला मंदिर में भगवान अयप्पा का विशेष धार्मिक स्वरूप है. और संविधान के तहत इसे संरक्षण प्राप्त है.
द्विवेदी ने कहा कि शारीरिक अवस्था की वजह से किसी भी महिला को अलग नहीं किया जा सकता है. समानता हमारे संविधान का प्रमुख आधार है. उन्होंने कहा कि जनता को सम्मान के साथ शीर्ष अदालत का निर्णय स्वीकार करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट 28 सितंबर, 2018 के संविधान पीठ के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. संविधान पीठ ने 4:1 से बहुमत के आधार पर अपने फैसले में कहा था कि आयु वर्ग के आधार पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित करना उनके साथ लैंगिक आधार पर भेदभाव करना है.