महाराजगंज लोक सभा क्षेत्र: राष्ट्रवाद, जातीय समीकरण और ‘न्याय’ का त्रिकोणीय संघर्ष
नेपाल की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के बेहद पिछड़े जिले महाराजगंज में लोकसभा चुनाव के मुद्दे भी देश के दूसरे इलाकों से अलहदा नहीं हैं. यहां भी राष्ट्रवाद और जातीय समीकरणों की खूब चर्चा है, हालांकि पूर्व पत्रकार सुप्रिया श्रीनते कांग्रेस की ‘न्यूनतम आय योजना’ (न्याय) का जमकर प्रचार-प्रसार करते हुए मुकाबले को त्रिकोणीय बनाती दिख रही हैं.
गोरखपुर के पड़ोस की इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार एवं वर्तमान सांसद पंकज चौधरी राष्ट्रवाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता के सहारे एक बार फिर से जनता के बीच हैं तो सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी कुंवर अखिलेश सिंह जातीय समीकरण की बुनियाद पर जीत का दम भर रहे हैं.
महाराजगंज के पूर्व सांसद हर्षवर्धन की पुत्री और टीवी पत्रकारिता का नामी चेहरा रह चुकीं सुप्रिया कांग्रेस के टिकट पर पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं.
बीजेपी के जिला अध्यक्ष अरुण शुक्ला का कहना है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रवाद अहम मुद्दे हैं, लेकिन पार्टी पिछले पांच साल में हुए विकास कार्यों को भी जनता के बीच उठा रही है.
अरुण शुक्ला ने कहा, ” यह सच है कि राष्ट्रवाद मुद्दा है और लोग मोदी जी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट कर रहे हैं. इसके साथ ही बीजेपी सांसद ने पिछले पांच वर्षों में बहुत काम किया है. जनता उसे जानती है.”
कांग्रेस उम्मीदवार सुप्रिया श्रीनते का पूरा चुनाव प्रचार ‘न्याय’ पर केंद्रित है क्योंकि इस इलाके में गरीबी बहुत है.
उन्होंने कहा, ”जनता जानती है कि कांग्रेस जो कहती है वो करती है. इसलिए लोग न्याय पर भी भरोसा कर रहे हैं. ”
पूर्व पत्रकार ने कहा, ”मैं पत्रकारिता का करियर छोड़कर यहां आई हूँ ताकि अपने पिता के कामों को आगे बढ़ा सकूं. अब महाराजगंज समझ गया है कि सिर्फ विकास की राजनीति ही उन्हें आगे ले जा सकती है.”
सपा के जिला अध्यक्ष राजेश यादव का दावा है कि जातीय गणित पूरी तरह से गठबंधन के पक्ष में है.
उन्होंने कहा, ”हमारे साथ गठबंधन के कोर वोट के साथ दूसरी जातियों का भी वोट है. इसलिए बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार लड़ाई से पहले ही बाहर हो चुके हैं.”
स्थानीय पत्रकार एमके सिंह का कहना है, ”इस सीट पर बीजेपी को राष्ट्रवाद और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का सहारा है तो गठबंधन जातीय समीकरण साधने में लगा है. कांग्रेस की उम्मीदवार के पुरजोर प्रचार अभियान से मुकाबला अब त्रिकोणीय बनता दिख रहा है.”
महराजगंज में पेशे से वकील प्रवीण कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ”मेरा मानना है यहां भी मोदी एक बड़ा फैक्टर हैं. दूसरी तरफ आप जातीय समीकरण को नकार नहीं सकते. कांग्रेस पहले मुकाबले से पूरी तरह बाहर थी, हालांकि अब उसकी स्थिति पहले से बेहतर दिखाई दे रही है.”
पिछली बार के चुनाव में पंकज चौधरी को कुल 4,71,542 वोट हासिल हुए तो बसपा के काशीनाथ को 2,31,084 वोट मिले. इस तरह से चौधरी ने यह चुनावी जंग 2,40,458 मतों के अंतर से जीती.
इस सीट पर 1990 के बाद बीजेपी ने लगातार अपनी पकड़ बनाए रखी है. चौधरी ने 1991, 1996 और 1998 में चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई थी. इसके बाद वह 2004 और 2014 में चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
महाराजगंज संसदीय सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र -फरेंदा, नौतनवां, सिसवा, महाराजगंज और पनियारा आते हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो इन पांच विधानसभा सीटों में से चार पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि नौतनवां विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय अमनमणि त्रिपाठी विधायक हैं.