कितना खुश रहते हैं जिंदगी के 40 बसंत देख चुके लोग!


do the people of middle age happier then older

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कभी सोचा है कि 40 के पार व्यक्ति की जिंदगी कैसी होती होगी? एक पुरानी कहावत है कि सालों की कठिन मेहनत के बाद समय आता है जब अच्छा वेतन और कम तनाव होता है, बच्चे खुद के पैरों पर खड़े हो रहे होते हैं और भाग्यवश अच्छे स्वास्थ्य का कुछ समय बाकी रहा होता है.

इकॉनॉमिस्ट मैग्जीन ने इस बारे में एक शोध से निकले कुछ तथ्य प्रकाशित किए हैं. ये रिपोर्ट 158 देशों के लोगों से लिए गए सैंपल पर आधारित है. इसमें शून्य से दस के पैमाने पर लोगों की उनके जीवन के प्रति संतुष्टि को दर्शाया गया है.

इस रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक लोग अपनी किशोर अवस्था और बीसवें दशक की शुरुआत में अपेक्षाकृत अधिक खुश रहते हैं. 15 से 19 की उम्र के लोग संतुष्टि के पैमाने पर 5.35 के स्कोर पर रहे. इसके बाद की उम्र में आते-आते वे थोड़ा बहुत तनाव के शिकार होते हैं.

इसके बाद 35-39 की उम्र में पहुंचते ही उनकी खुशी में तेज गिरावट होती है. इस उम्र के लोगों को इस पैमाने पर 5.09 अंक मिले. लेकिन एक बार जब लोग 40 की उम्र को छूते हैं तो उनकी खुशी काफूर हो जाती है.

लेकिन इस शोध में एक बात चौंकाने वाली है कि जब लोग 70 की उम्र में पहुंच जाते हैं तो उनकी खुशी में फिर से इजाफा होता है. संतुष्टि के पैमाने पर इस उम्र के लोगों का स्कोर 5.58 रहा. ये किशोर अवस्था से भी बेहतर है.

इस रिपोर्ट से एक बात साफ हो रही है कि लोगों के जीवन में संतुष्टि अंग्रेजी के ‘यू’ अक्षर की भांति चलती है. मतलब ये कि अपने जीवन की शुरुआत में लोग अधिक खुश हो हैं फिर ये खुशी तनाव में बदल जाती है, बाद में वे फिर संतुष्टि की ओर लौट आते हैं.

लेकिन ये रुझान पूरी दुनिया में एक जैसे नहीं है. भारत के मामले में तो ये और भी चौंकाने वाला है. यहां ये अंग्रेजी का ‘यू’ उल्टा हो जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पुरुषों में उम्र के बीचोबीच लोग अपेक्षाकृत संतुष्ट होते हैं, लेकिन उम्र के बढ़ने के साथ लोग तनाव से घिर जाते हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय दुनिया में सबसे अधिक तनावग्रस्त होते हैं. बीते एक दशक में भारतीयों की जीवन के प्रति संतुष्टि 1.2 अंक और नीचे गिर गई है.

भारत के लोग जब अपने जीवन के 70वें बसंत में पहुंच जाते हैं, तो वे दुनिया के सबसे दुखी लोगों में से एक होते हैं. इस समय संतुष्टि के पैमाने पर इनका स्कोर 3.6 तक गिर जाता है.

जीवन में संतुष्टि के इस तरह ऊपर-नीचे होने के बारे में कोई निश्चित निष्कर्ष अभी तक नहीं मिल सका है, लेकिन समाजशास्त्री दशकों से इस ‘यू’ पैटर्न पर चर्चा कर रहे हैं.


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