वन कानून को लेकर क्या राहुल गांधी ने गलत बयान दिया?


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भारतीय वन कानून में परिवर्तन के प्रस्ताव को लेकर दिए गए बयान पर राहुल गांधी को चुनाव आयोग ने नोटिस भेजा है. चुनाव आयोग ने इस मामले में राहुल गांधी से 48 घंटे के भीतर जवाब मांगा है.

चुनाव आयोग ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने मध्य प्रदेश के शहडोल में 23 अप्रैल को एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक बयान दिया था, जिससे राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए दिशानिर्देश के लिए आदर्श आचार संहिता के भाग (1) के अनुच्छेद (2) के तहत आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है.

मध्य प्रदेश में बीजेपी नेता ओम पाठक और नीरज की शिकायत पर चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को नोटिस भेजा है.

राहुल ने अपने भाषण में कहा था, “अब नरेंद्र मोदी ने एक कानून बनाया है. जनजातियों के लिए एक कानून बनाया गया है, जिसमें एक पंक्ति लिखी हुई है. अब जनजातियों पर हमले किए जाएंगे, आपकी जमीन ली जाएगी. आपका वन लिया जाएगा, आपका पानी छीना जाएगा.”

राहुल गांधी के इस बयान पर चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस तो भेज दिया है लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से भारतीय वन कानून में संशोधन को लेकर जो ड्राफ्ट पेश किया गया है, उसमें सच में आदिवासियों को गोली मारने की बात है. हालांकि केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन को लेकर केवल प्रस्ताव पेश किया है, कानून में अभी संशोधन हुआ नहीं है.

वहीं राहुल गांधी ने अपने बयान में कानून बन जाने की बात कही है. शायद इसलिए ही चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भेजा है.

असल में 1927 के वन कानून में परिवर्तन के प्रस्ताव को लेकर केंद्र सरकार ने एक ड्राफ्ट तैयार किया है. इस ड्राफ्ट को सात जून तक विभिन्न राज्य सरकारों के समक्ष सलाह मशविरे के लिए पेश किया जाना है. इस ड्राफ्ट में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि वन अधिकारियों के पास वनों की ग्राम सभाओं के फैसले पर वीटो करने का अधिकार होगा.

इसके साथ ही इस ड्राफ्ट में वन अधिकार एक्ट (2006) को भी कमजोर करने का प्रस्ताव है. मतलब वन अधिकार एक्ट(2006) के तहत जिन आदिवासियों को विरासत के तौर पर वनों और वन संपदा के ऊपर संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है, वो अब पूरी तरह से वन अधिकारियों के खाते में चला जाएगा.

वन अधिकारी अगर चाहेंगे तो ही आदिवासियों को उनका ये अधिकार देंगे. वहीं केंद्र ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि राज्यों के वन मामलों में केंद्र सीधे तौर पर दखल दे सकेगा.

इस प्रस्ताव के तहत पहले के कई जमानती अपराधों को गैर-जमानती बना दिया गया है. कई अपराधों में खुद को बेकसूर साबित करने की जिम्मेदारी अब आरोपी पर होगी. जब तक आरोपी खुद को बेकसूर साबित नहीं कर देगा, तब तक उसे अपराधी ही माना जाएगा.

वहीं इस ड्राफ्ट में वन अधिकारियों को असीमित शक्तियां देने का जो प्रस्ताव है वो अफस्पा के बराबर है.

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ड्यूटी के दौरान अगर अधिकारी पर किसी अपराध का आरोप लगता है तो उसे बिना जांच के ना तो गिरफ्तार किया जा सकता है और ना ही बर्खास्त किया जा सकता है. जांच करने के लिए राज्य सरकार उच्च कमेटी को नोटिफिकेशन भेजेगी. यहां तक राज्य सरकार के पास अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए आदेश देने का सीधा अधिकार नहीं होगा. ऐसा करने के लिए राज्य सरकार को पहले एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का निर्माण करना होगा.


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