उफ़, ये चालाकी!


editorial on interim budget

 

अफ़सोस की बात है कि यह वित्त मंत्री पीयूष गोयल (अंतरिम) बजट भाषण था. अगर इस दस्तावेज को वे अपनी पार्टी के चुनाव घोषणापत्र के रूप में पढ़ते, तो उस पर किसी को एतराज नहीं होता. मगर बजट भाषण में ऐसी घोषणाएं जिन्हें लागू करने की जिम्मेदारी मौजूदा सरकार नहीं उठाएगी, संसदीय और संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन मानी जाएगी.

वर्तमान लोक सभा का कार्यकाल अब चार महीने बचा है. ऐसे में यह सरकार पूरे वित्त वर्ष के लिए बजट को पास नहीं करा सकती. ऐसे में सरकार से अपेक्षित यह था कि वह चार महीना का खर्च चलाने के लिए महज लेखानुदान पारित कराती. मगर उसने अंतरिम बजट के नाम पर पूर्ण बजट जैसे एलान किए. सरकार का कार्यकाल चार महीने बचा है, लेकिन वित्त मंत्री ने घोषणाएं पूरे साल के लिए कर दी. इतना ही नहीं, दस साल के लिए इस सरकार के ‘दृष्टिकोण’ का उल्लेख भी कर दिया.

तो नरेंद्र मोदी सरकार ने इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ा कर पांच लाख रुपये करने का एलान किया है. लेकिन इस पर अमल नई सरकार बनने पर पूर्ण बजट पेश होने के बाद ही हो पाएगा. वेतन-भोगी कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन 40,000 से बढ़ा कर 50,000 रुपये कर दिया गया है. बैंक और पोस्ट ऑफिस बचत पर मिलने वाले ब्याज पर कर की सीमा बढ़ा दी गई है. ऐसी कई और घोषणाएं गोयल ने की. लेकिन साफ है कि इन सबको लागू करने का दायित्व अगली सरकार पर होगा. क्या इसे चालाकी नहीं कहा जाएगा? क्या इससे यह जाहिर नहीं होता कि वित्त मंत्री ने बजट भाषण का इस्तेमाल अपनी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार के मुद्दे (या वादे) गढ़ने के मकसद से किया?

दरअसल, छोटे और सीमांत किसानों को हर साल छह हजार रुपये देने की घोषणा का भी सच यह है कि इसकी दो तिहाई रकम देना या ना देना अगली सरकार पर निर्भर करेगा. अगर विपक्षी पार्टियों ने किसानों से इससे अलग या कोई बेहतर वादा किया और वे सत्ता में आईं, तो साफ है कि वो अपने वादे लागू नहीं करेंगी. बहरहाल, यह साफ है कि मोदी सरकार ने अगली सरकार के कंधों पर पड़ने वाले बोझ का सियासी लाभ बटोरने की कोशिश की है.

इसके अलावा पीयूष गोयल ने इस मौके का लाभ एनडीए सरकार की कथित उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने के लिए किया. लेकिन वे यह नहीं छिपा पाए कि सरकार राजकोषीय घाटे के अपने लक्ष्य पर खरी नहीं उतरी. इसे 3.3 प्रतिशत होना था. लेकिन खुद बजट भाषण में माना गया है कि यह 3.4 प्रतिशत पर रहेगी. कई अन्य आंकड़े भी चिंता पैदा करने वाले हैं. और ये वो आंकड़े हैं, जो सरकार ने अभी बताए हैं. अंततः असली सूरत क्या उभरेगी अभी इस बारे में कुछ साफ नहीं कहा जा सकता.

आर्थिक क्षेत्र में इस सरकार ने एक बड़ी समस्या यह खड़ी की है कि इसने आंकड़ों को संदिग्ध बना दिया है. अपनी अच्छी छवि दिखाने के लिए आंकड़े गढ़ने की इसने खतरनाक शुरुआत की है. बजट कुल मिलाकर आंकड़ों का दस्तावेज होता है. मगर यह सरकार सिर्फ उन आंकड़ों का जिक्र करती है, जो उसके पक्ष में होते हैं. जहां आंकड़े खिलाफ जाएं, वहां वह अपने ढंग से आंकड़े गढ़ने में जुट जाती है. जीडीपी वृद्धि दर, बैक सीरिज से लेकर रोजगार के बारे में एनएसएसओ के आंकड़ों तक मामले में ऐसा देखने को मिला है.

ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सरकार ने अपने तथ्यों और ‘वैकल्पिक तथ्यों’ से जो कथानक बुना है, उससे वह अपने समर्थक तबकों को जरूर गोलबंद रख पाएगी. लेकिन जो लोग इस सरकार की आर्थिक नीतियों से पीड़ित हैं, उन पर इस कहानी का कोई असर नहीं होगा. ‘अंतरिम बजट’ ऐसे लोगों के जख्मों पर कोई मरहम लगाने या उनमें कोई उम्मीद जगाने में पूरी तरह नाकाम साबित होगा.


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