दो दृष्टिकोणों का मुकाबला


rahul asks s jayshankar to teach pm some diplomacy

 

लंबे समय बाद चुनाव घोषणापत्र गंभीर चर्चा का विषय बने हैं. हालांकि बड़ी पार्टियों के बीच सबसे पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र आया, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के घोषणापत्र की हुई. विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस की बड़ी हैसियत को देखते हुए यह लाजिमी ही था.

लेकिन वजह सिर्फ इतनी नहीं है. इसका एक कारण यह भी है कि कांग्रेस का मेनिफेस्टो इस बार ताजा हवा के एक झोंके की तरह आया. पार्टी ने इसके जरिए 2014 में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद बने चरम राष्ट्रवादी माहौल के दबाव से निकलने का संकेत दिया. 1980 के दशक के मध्य से वह जिस वैचारिक भंवर में फंसी नजर आती थी, उससे उबरने का संदेश भी उसने दिया. यह एक साहसी कदम है.

वरना, आज के माहौल में राजद्रोह की धारा खत्म करने और सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून की समीक्षा करने का वादा और बहुसंख्यक समुदाय को तुष्ट करने वाले मुद्दों की चर्चा ना करना कोई आसान काम नहीं है. बल्कि आम लालच तो यह होता कि ऐसे मुद्दों पर सत्ताधारी दल से होड़ की जाए, जिन पर भड़काऊ बातें कहकर वोट बटोरे जा सकते हों. चूंकि कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया, इसलिए देश के बहुत बड़े जागरूक जनमत का ध्यान उसने खींचा. दरअसल, अपने ताजा घोषणापत्र के साथ कांग्रेस अपनी नेहरूवादी जड़ों की तरफ लौटती दिखी है. हालांकि उसने समाजवाद शब्द का इस्तेमाल इस दस्तावेज में नहीं किया है, लेकिन वेलफेयर स्टेट (कल्याणकारी राज्य) की धारणा को पुनर्जीवित करने का इरादा जरूर जताया है.

कांग्रेस की न्यूनतम आय योजना (न्याय) बहुचर्चित हुई है. इस योजना की जब पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चर्चा की, उसके बाद मशहूर फ्रेंच अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने स्वीकार किया था कि वे इसे तैयार करने में कांग्रेस पार्टी की मदद कर रहे हैं. पिकेटी ने तब कहा था कि उनका मकसद आईडेंटीटी पॉलिटिक्स की जगह क्लास पॉलिटिक्स को भारतीय राजनीति में केंद्रीय स्थल पर लाना है. मोटे तौर पर और बिना इस बात को कहे अपने घोषणापत्र के साथ कांग्रेस इस रास्ते पर चलती दिखती है. कांग्रेस मध्यमार्गी पार्टी है. उससे स्पष्ट क्लास पॉलिटिक्स की आशा नहीं की जा सकती. लेकिन कल्याणकारी शासन की तरफ वह जरूर लौट सकती है, जहां से 1991 के बाद वह हट गई थी.

फिर दूसरा मुद्दा यह है कि भारत की ठोस सामाजिक स्थितियों के बीच आईडेंटीटी पॉलिटिक्स की भी एक हद तक प्रासंगिकता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. इस बिंदु पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के घोषणापत्रों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. सपा ने अपने घोषणापत्र के कवर पेज पर डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का यह कथन छापा है कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई एक धोखा है, जब तक जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ लड़ाई ना हो. वैसे सपा ने अपने घोषणापत्र में बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी का भी जिक्र किया है.

आरजेडी ने आरक्षण और जातीय शोषण से जुड़े मसलों पर अपने वादों को केंद्रित किया है. सीपीएम ने न्यूनतम मजदूरी, वृद्धावस्था पेंशन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य बजट आदि पर ख़ास जोर देते हुए स्पष्ट शब्दों में निजीकरण रोकने और अति-धनवान लोगों तथा कॉरपोरेट सेक्टर पर टैक्स बढ़ाने का मुद्दा उठाया है.

बहरहाल, अगर कांग्रेस, सीपीएम और सपा-आरजेडी जैसी पार्टियों के घोषणापत्रों को एक साथ समग्र रूप से देखा जाए तो उनमें उस भारतीय राष्ट्र का एजेंडा दिखता है, जो स्वतंत्रता आंदोलन से निकला और जिसकी अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई. इन सभी दलों ने कहा है कि मौजूदा सरकार, सत्ताधारी दल और उसके सहमना संगठनों से भारतीय संविधान खतरे में है. संविधान और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और उसके आगे कल्याणकारी राज्य को मजबूत करने का इरादा इन तमाम घोषणापत्रों का कॉमन फैक्टर (साझा पहलू) है.

उनके बरक्स भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र को रखें तो उसमें एक अलग तरह के भारत की कल्पना नज़र आती है. उसमें बहुलता को नकार कर एकरूपता, नागरिक अधिकारों की कीमत पर राज्य को शक्तिशाली बनाने, हिंदू बहुसंख्यकवाद को तरजीह देने और नागरिकता को धार्मिक पहचान के आधार पर परिभाषित करने की बातें साफ-साफ शामिल दिखती हैं. साफ तौर पर भारत की यह कल्पना वह नहीं है, जिस पर हमारा संविधान आधारित है.

आम चुनाव-2019 में घोषणापत्र फिर से चर्चा का विषय बने हैं, तो इसीलिए कि नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारतीय राष्ट्र की पहचान को लेकर विवाद तेज होता गया है. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी हिंदू राष्ट्र की कल्पना की तरफ बढ़ती दिखी है, जिससे धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक गणराज्य की धारणा के लिए अभूतपूर्व चुनौती पैदा हुई है. ताजा घोषणापत्रों ने इस द्वंद्व या संघर्ष-क्षेत्र को साफ-साफ सामने रखा है. उम्मीद की जा सकती है कि इससे लोगों को अपने मतदान का फैसला करने में मदद मिलेगी.


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