उम्मीद की रोशनी
विराट कोहली ने काबिल-ए-तारीफ़ मिसाल पेश की. जिस दौर में (खासकर अपने देश में) खेल और युद्ध भावना के बीच फर्क लगातार धुंधला होता जा रहा है, उन्होंने उत्कृष्ट खेल भावना का परिचय दिया. इंग्लैंड में चल रहे विश्व कप टूर्नामेंट के दौरान ऑस्ट्रेलिया से भारत के मैच के दौरान भारतीय दर्शक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी स्टीव स्मिथ की हूटिंग करने लगे, तो कोहली उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की. उलटे दर्शकों से स्मिथ के लिए ताली बजाने को कहा. बाद में प्रेस कांफ्रेंस में कोहली ने भारतीय दर्शकों की तरफ से अफ़सोस जताया.
कोहली की ये टिप्पणी गौरतलब है- “यहां बहुत से भारतीय फैन हैं. मैं नहीं चाहता था कि वे खराब मिसाल पेश करें. स्मिथ ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि उन्हें हूट किया जाए.”
ओवल मैदान में भारतीय क्रिकेट फैन्स की भरमार थी. लेकिन वहां उनके व्यवहार से उनके वास्तविक क्रिकेट प्रेमी होने पर सवाल उठे. कुछ भारतीयों को ही यह बुरा लगा कि ये दर्शक खेल की खूबसूरती और शानदार प्रदर्शन को सराहने के बजाय एकतरफा प्रतिक्रिया दे रहे थे. मसलन, ग्लेन मैक्सवेल ने जब जसप्रीत बुमराह की गेंद पर बेहतरीन चौका मारा, तो उन दीर्घाओं में खामोशी छा गई, जहां भारतीय दर्शक बैठे थे. जबकि किसी वास्तविक क्रिकेट प्रेमी के लिए उन शॉट्स पर मोहित ना होना मुश्किल ही था.
ये सवाल वाजिब है कि ऐसे दर्शक क्रिकेट देखने जाते हैं या फिर उन्हें सिर्फ भारत की जीत से मतलब है? अपने देश की विजय चाहना स्वाभाविक है. यह कुदरती इच्छा है. लेकिन खेल की खासियत ही यह है कि वह इनसान को संकीर्ण सीमाओं से उठाकर मानव प्रतिभा और कौशल के उच्चतर सौंदर्य का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता है. यह अफसोसनाक है कि अपने देश में मेनस्ट्रीम मीडिया और जनमत को प्रभावित करने वाले अनेक लोग खेल और युद्ध का फर्क मिटा देने पर आमादा हैं. इसका असर आम लोगों पर हो रहा हो, तो ये कोई हैरत की बात नहीं है.
भारत के विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी के ग्लव्स पर एक सैन्य इकाई के प्रतीक चिह्न को लेकर हुआ विवाद देश में बन रहे विवेकहीन माहौल की ही मिसाल है. वरना, किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के मौके पर आयोजक संस्था के किसी नियम को लेकर देश में उन्माद पैदा करने की कोशिशों को किसी रूप में सही नहीं कहा जा सकता. मगर ऐसा ही करने की कोशिश की गई.
बहरहाल, विवेक की जुबान बोलने वाली हस्तियां धारा के विरुद्ध जाकर अपनी बात कहने का साहस दिखा रही हैं और यह संतोष की बात है. विराट कोहली ने रविवार को लंदन स्थित ओवल मैदान में ऐसा किया. और ऐसा ही कोहली के ग्लव्स से जुड़े विवाद में सुनील गावसकर ने किया था. दरअसल, गावसकर और कोहली जैसी शख्सियतों का हस्तक्षेप इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी बात सुनी जाती है. मीडिया का जो बड़ा हिस्सा वैसे अलग भूमिका निभा रहा होता है, वह भी उनकी बातों को दिखाने या छापने के लिए मजबूर होता है. आज के माहौल में ऐसी बातें अंधकार के बीच उम्मीद की रोशनी जैसी महसूस होती हैं.