क्या वीवीपैट-ईवीएम मिलान मुद्दे पर EC ने अपने प्रेस नोट में हकीकत छिपाई?


the VVPAT slip wil prevail: EC

 

द टेलीग्राफ को दिए गए एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने यह आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने वीवीपैट पर्चियों का  ईवीएम का मिलान करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया है.

सिब्बल का आरोप है कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (आईएसआई) के जिस अध्ययन को आधार बनाकर अपनी दलील दी, वह अध्ययन औपचारिक रूप से आईएसआई ने किया ही नहीं है.

वहीं द टेलीग्राफ की ही एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनाव आयोग ने वीवीपैट पर्चियों के  ईवीएम से मिलान के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब के बारे में जो प्रेस नोट जारी किया, उसमें जान-बूझकर ऐसा दिखाने की कोशिश की गई कि आयोग का जवाब आईएसआई के अध्ययन  पर आधारित है.  इस प्रेस नोट का शीर्षक ‘वीवीपैट के सैम्पल साइज पर भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की रिपोर्ट’ था.

प्रेस नोट में कहीं भी यह उल्लेख नहीं था कि अध्ययन आईएसआई के दिल्ली केंद्र के अध्यक्ष अभय भट्ट की देख-रेख में किया गया है और  इसके बारे में कोलकाता स्थित आईएसआई मुख्यालय को कोई सूचना नहीं दी गई है.

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यह अध्ययन भट्ट की देखरेख में सी-सीएआईआर (C-CAIR) के सदस्यों द्वारा किया गया. यह  आईएसआई का एक आंतरिक तंत्र है जो शैक्षणिक और रिसर्च आदि से जुड़े काम करता है.

प्रक्रिया के अनुसार, किसी भी अकादमिक अध्ययन पर कोलकाता मुख्यालय से मोहर लगे बिना उसे आईएसआई के अध्ययन के रूप में पेश नहीं किया जा सकता.

द टेलीग्राफ में दिए गए आईएसआई अध्यक्ष संघमित्रा बंदोपाध्याय के बयान से भी साफ है कि अध्ययन के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी.

उन्होंने कहा, ” सी-सीएआईआर आईएसआई की संवैधानिक संस्था नहीं है. दिल्ली केंद्र के अध्यक्ष संस्थान के अध्यक्ष के प्रति जवाबदेह होते हैं. वो आगे कहती हैं कि इस मामले में अभय भट्ट ने “अपनी समझ के अनुसार खुद फैसला लिया.”

संघमित्रा आगे कहती हैं कि अभय भट्ट और लंबे समय से उनके सहयोगी रहे प्रोफेसर राजीव करंदीकर ने अपने अध्ययन अनुसार चुनाव आयोग को यह रिपोर्ट पेश की.

ऐसे में चुनाव आयोग के इस दावे पर सवाल खड़े होते हैं कि उसने आईएसआई के अध्ययन के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया.


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