अंग्रेजी का प्रभाव बरक़रार लेकिन कम हो रही बोलने वालों की संख्या


only twelve states primarily speaks hindi

 

भारत में अंग्रेजी निर्विवाद रूप से प्रभुत्व वर्ग की भाषा है, लेकिन देश में अंग्रेजी बोलने वालों से जुड़े नए डेमोग्राफिक आंकड़ों से पता चलता है कि अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या सिकुड़ रही है.

2011 के जनगणना के अनुसार देश में 2,56,000 लोगों की मातृभाषा अंग्रेजी है. 8.3 करोड़ लोगों के लिए यह दूसरी जानने वाली भाषा है और 4.6 करोड़ लोगों के लिए यह तीसरी जानने वाली भाषा है.  इस तरह देश में अंग्रेजी हिंदी के बाद बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है.

इसके विपरीत 52.8 करोड़ लोग हिंदी को अपनी पहली भाषा के रूप में बोलते हैं. भारत में हिंदी पहली और दूसरी भाषा के रूप में बोली जाने वाली भाषाओं के मामले में सबसे आगे है. वहीं अंग्रेजी को पहली भाषा के रूप में बोली जाने वाली भाषा के रूप में 44वां स्थान हासिल है.

यह एक मात्र ऐसी भाषा भी है जिसे ज्यादातर लोग दूसरी भाषा के रूप में बोलते हैं. इससे कार्यस्थलों पर इसके बढ़ते प्रभाव के बारे में पता चलता है.

हालांकि इस साल की शुरुआत में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की देख-रेख में लोक फाउंडेशन और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए सर्वे से कुछ अन्य ट्रेंड भी पता चलते हैं. सर्वे में महज 6 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा है कि वे अंग्रेजी बोल सकते हैं. यह संख्या 2011 के जनगणना से कम है.

हालांकि मातृभाषा, दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में 2011 के जनगणना में 10 फीसदी से ज्यादा भारतीयों ने माना था कि वे कुछ अंग्रेजी बोल सकते हैं.

लोक फाउंडेशन के सर्वे केअनुसार अंग्रेजी गांव की तुलना में शहरों में ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. ग्रामीणों में से केवल 3 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे अंग्रेजी बोल सकते है. वहीं 12 फीसदी शहरियों का कहना है कि वो अंग्रेजी बोल सकते हैं. आर्थिक पृष्ठभूमि भी इस ट्रेंड को प्रभावित करती है. 2 फीसदी गरीबों की तुलना में 41 फीसदी अमीर लोग अंग्रेजी बोलते हैं.

शिक्षा का स्तर भी अंग्रेजी बोलने या नहीं बोलने को प्रभावित करता है. सर्वे के अनुसार, एक तिहाई ग्रेजुएट अंग्रेजी बोल सकते हैं. अंग्रेजी बोलने के मामले में धर्म और जाति भी अहम किरदार निभाती है. 6 फीसदी हिन्दुओं और 4 फीसदी मुसलामानों की तुलना में 15 फीसदी से ज्यादा ईसाई अंग्रेजी बोल सकते हैं.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तुलना में उच्च जाति के व्यक्ति तीन गुना ज्यादा अंग्रेजी बोल सकते हैं. अंग्रेजी जानने के लैंगिक आयाम भी हैं. ज्यादा अनुपात में पुरुषों ने कहा है कि वे अंग्रेजी बोल सकते हैं.

बुढ़े लोगों की तुलना में ज्यादातर युवा लोग अंग्रेजी बोलते हैं. आम धारणा है कि दक्षिण भारत के ज्यादातर लोग अंग्रेजी को दो भाषाओं के बीच कड़ी के रूप में बोलते हैं, लेकिन, उत्तर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में लोग दक्षिण राज्य के मुकाबले ज्यादा अंग्रेजी बोलते हैं.

अंग्रेजी बोलने की संभावना राज्यों के समृद्ध होने से भी जुड़ी है, जैसे दिल्ली और हरियाणा. साथ ही ईसाई धर्म की उपस्थिति भी अहम वजह है, जैसे- गोवा और मेघालय. अंग्रेजी बोलने के मामले में असम एक अपवाद है. यहां कम आमदनी और ईसाई धर्म की सीमित उपस्थिति के बावजूद अंग्रेजी बोलने वालों का अनुपात काफी ज्यादा है.

लोक फाउंडेशन के सर्वे में यह बात सामने आई है कि 37.5 फीसदी लोग दो भाषाएं जानते हैं. यह 2011 के जनगणना की तुलना में काफी ज्यादा है. तब यह आंकड़ा महज 20 फीसदी था. सर्वे के मुताबिक, तीन भाषाओं को जानने वाले लोग 11 फीसदी से ज्यादा थे.

2011 के जनगणना के अनुसार, दक्षिणी राज्यों में उत्तरी राज्यों की तुलना में ज्यादा द्विभाषी होने की संभावना कमजोर होती है.


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