एनआरसी सूची से बाहर हुए लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करे सरकार: सीपीएम


Ensure Justice for Excluded said cpm

 

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने सरकार से एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर हुए लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की मांग की है. सीपीएम के पोलित ब्यूरो ने 19 लाख छह हजार लोगों के सूची से बाहर होने पर सवाल खड़ा किया है.

सीपीएम की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि “इतनी बड़ी संख्या में लोगों का सूची से बाहर होना सवाल खड़े करता है कि इसमें भारतीय नागरिकों की भी बड़ी संख्या हो सकती है. ऐसे में ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी भारतीय नागरिकों को सूची में शामिल किया जाए.”

बयान के मुताबिक “नियमानुसार अपील स्वीकार करने से पहले न्यायाधिकरण उस पर विचार करेगा. सीपीएम मांग करता है कि अपील को न्यायिक व्यवस्था के तहत स्वीकार किया जाए. न्यायाधिकरण इसके लिए उचित नहीं है.”

पार्टी की तीसरी मांग है कि विदेशी घोषित किए गए नागरिकों को हिरासत केंद्रों में भेजने की प्रक्रिया को रोका जाए क्योंकि ये आधारभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है. प्रेस नोट में कहा गया है कि “सीपीएम देश के अन्य हिस्सों में एनआरसी लाने का विरोध करता है.”

इसके अलावा पार्टी ने देश में 10 बैंकों का विलय करके चार नए बैंक बनाने के सरकार के फैसला का विरोध किया है.

पार्टी की ओर से जारी एक अन्य प्रेस नोट में कहा गया है कि “सरकार का ये कदम करोड़ों भारतीयों के वित्तीय बहिष्कार को बढ़ावा देगा”. साथ ही कहा कि सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का निजीकरण करने के उद्देश्य से ये कदम उठाया गया है.

“सरकार की ओर से तर्क दिया गया है कि विलय से बड़े बैंक सामने आएंगे. हालांकि सरकार की नीति विनिवेश को बढ़ावा देना है और इन बैंकों में सरकारी शेयरों को कम करके 50 फीसदी से नीचे लाना है.”

नोट के मुताबिक “इस कदम से सरकार सार्वजनिक बैंकों की बढ़ रही परेशानियों पर भी पर्दा डालना चाहती है. बीते पांच साल में बैंकों का एनपीए चार गुना बढ़ गया है. वियल से एनपीए में कमी नहीं आने वाली है.”

नोट में कहा गया है कि “बैंकों के राष्ट्रीकरण को इस साल 50 साल हो गए हैं. लोगों के हितों में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैकों को मजबूत करने की जगह मोदी सरकार उन्हें लगातार कमजोर कर रही है. कर्मचारी संगठनों, बैंक कर्मचारियों और सभी लोकतांत्रिक ताकतों को इसे कमजोर करने की जरूरती है.”


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