यूरोपियन संसद: कैसे होता है चुनाव और किस तरह काम करती है ये संसद?


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इस समय यूरोपीय यूनियन के देश ईयू संसद के लिए अपने प्रतिनिधि चुन रहे हैं. इसी क्रम में नीदरलैंड में हुए चुनाव में डच लेबर पार्टी जीत दर्ज करने में सफल रही है. इस दौरान लेबर पार्टी को कुल 10 फीसदी वोट मिले.

वहीं कंजरवेटिव वीवीडी पार्टी दूसरे स्थान पर रही. नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रुट्टे इसी पार्टी से आते हैं. जबकि तीसरे स्थान पर थियरी बॉडेट की पार्टी यूरोसेप्टिक फोरम फॉर डेमोक्रेसी रही.

क्यों होते हैं ये चुनाव?

यूरोपीय यूनियन के कार्यों को संचालित करने के लिए ईयू संसद का गठन इन्हीं चुनावों के माध्यम से किया जाता है. ईयू के 28 सदस्य देशों के 51.2 करोड़ लोग इस संसद के लिए सदस्यों को चुनते हैं.

इस संसद में कुल 705 सदस्य होते हैं. जिनका कार्यकाल पांच साल का होता है. पहले इस संसद में कुल 751 सदस्य थे, लेकिन ब्रेग्जिट के बाद इनकी संख्या घटकर 705 रह जाएगी.

ब्रेग्जिट के बाद सीटों का बंटवारा नए सिरे से किया जाएगा. इनमें फ्रांस और स्पेन को सबसे ज्यादा फायदा होगा. दोनों देशों को पांच-पांच अतिरिक्त सीटें मिलेंगी.

किस तरह चुने जाते हैं सदस्य?

पूरे यूरोपीय यूनियन में सदस्यों के चुनाव के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ये सब प्रतिनिधित्व प्रणाली पर आधारित होते हैं. इनमें पार्टियों को उनके वोट शेयर के आधार पर सीटें दी जाती हैं.

इस तरीके से चुने गए सदस्य अपने देश या क्षेत्र का ईयू में प्रतिनिधित्व करते हैं. इस दौरान वे पांच साल तक स्ट्रॉसबर्ग और ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय संसद की सेवा में रहते हैं.

किसको कितनी भागीदारी?

ईयू संसद के लिए सबसे पहले 1979 में चुनाव हुआ था. तब से अब तक आठ बार ये चुनाव हो चुके हैं. ये नौवां मौका है जब ये चुनाव हो रहे हैं.

इसमें प्रत्येक देश को उसकी जनसंख्या के आधार पर सीटें दी जाती हैं. उदाहरण के लिए ईयू देशों में जर्मनी की जनसंख्या सबसे अधिक है और उसे 96 सीटें मिली हुई हैं. वहीं सबसे छोटे देश माल्टा को सिर्फ छह सीटें दी गई हैं. हालांकि ब्रेग्जिट के बाद ये आंकड़े बदलने वाले हैं.

क्या करती है ये संसद?

ये सांसद मिलकर ईयू के लिए कानून बनाते हैं और देशों के प्रमुखों के साथ मिलकर बजट का निर्धारण करते हैं.

इस संसद की सबसे खास बात ये है कि इसके सदस्य, देशों के हिसाब से नहीं बैठते बल्कि विचारधारा के आधार पर बैठते हैं. मतलब ये कि किसी एक देश के सभी सदस्य जरूरी नहीं है कि एक साथ बैठें. उदाहरण के लिए लेबर पार्टी के सदस्य चाहे वे यूके के हों या नीदरलैंड के एक साथ बैठते हैं.

ये सदस्य यूरोपियन कमीशन के प्रमुख को चुनने में सहायक होते हैं. इस दौरान सबसे बड़ा समूह कमीशन के मुखिया को चुनने में सफल होता है.

पिछली बार यूरोपियन पीपुल्स पार्टी अपने उम्मीदवार जीन क्लाउडे जंकर को कमीशन का प्रमुख बनाने में सफल रही थी.

इस बार कैसी हो सकती है संसद?

इस समय यूरोपीय देशों में ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है जो यूरोपीय यूनियन के प्रति विरोधी विचार रखते हैं. इसका सीधा प्रभाव यूरोपीय संसद में देखा जा सकता है. इस बार यूरोपीय यूनियन से अलगाव की भावना रखने वाले सदस्य जिन्हें ‘यूरोसेप्टिक’ कहा जाता है, की संख्या में इजाफा हो सकता है.

ब्रेग्जिट और यूरोसेप्टिक विचारों के चलते संसद की संरचना प्रभावित होगी, इसका सीधा प्रभाव निर्णय प्रक्रिया पर पड़ेगा. जानकारों के मुताबिक इस बार संसद को निर्णय लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.


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