माहवारी दिवस: मेरी नहीं अकेली, माहवारी हर लड़की की सहेली


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मासिक धर्म यानी पीरियड्स कोई अपराध नहीं, बल्कि सामान्य प्रक्रिया है. भारत में अब भी माहवारी और महिलाओं की सेहत से जुड़े विषयों पर खुलकर बात नहीं की जाती है. कई महिलाओं को माहवारी के दिनों में होने वाले भेदभाव का सामना करना पड़ता है. समाज की वर्जनाओं को तोड़ने और खासकर ग्रामीण और कामकाजी महिलाओं को इसके प्रति जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है.

28 मई को पूरी दुनिया में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. साल 2014 में जर्मनी के वॉश यूनाइटेड नाम की एक एनजीओ ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी. इसका मुख्य उद्देश्य लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने के लिए जागरूक करना है. तारीख 28 इसलिए चुनी गई, क्योंकि आमतौर पर महिलाओं का मासिक धर्म 28 दिनों के भीतर आता है.

एक आंकड़े के अनुसार आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जा पाती हैं. महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा महिलाएं मासिक धर्म को अपराध मानती हैं.

मासिक धर्म में साफ-सफाई नहीं होने के कारण कई महिलाओं की जान भी चली जाती है. मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता नहीं रखने पर बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन होने की संभावना बनी रहती है. इसी पहल को आगे बढ़ाते हुए माहवारी दिवस के मौके पर दिल्ली स्थित एनजीओ ‘सेंटर फॉर एडवोकेसी रिसर्च’ ने माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर एक आयोजन किया. जहां पर एनजीओ में ट्रेनिंग प्राप्त कर चुकी महिलाओं ने अन्य महिलाओं से अपने अनुभव शेयर किए और इससे निपटने की जानकारी दी.

इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी तोड़ने और समाज तथा सरकार का ध्यान इस ओर केंद्रित करना इसका मुख्य उद्देश्य था. इस एनजीओ में कई महिलाएं, लड़कियां और लड़के जुड़े हुए हैं, जो पूर्वी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली में काम करते हैं. एनजीओ से जुड़े लोग बस्तियों और स्कूलों में जाकर महिलाओं और लड़कियों में माहवारी के प्रति जागरूकता फैलाते हैं. कार्यक्रम के दौरान महिलाओं को किस तरह मासिक धर्म के समय साफ-सफाई और खुद को स्वस्थ रखना है इसकी जानकारी दी गई.

‘ब्रेकिंग द साइलेंस अराउंड रेड’ कार्यक्रम में शामिल महिलाओं और लड़कियों ने माहवारी प्रबंधन व इसके निपटान पर अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें इस विषय पर अपने घर में बात करने में शर्म आती थी. यहां तक कि वह अपनी मां से भी इस बारे में खुलकर नहीं कह पाती थीं. मगर इस संस्था की शिक्षिकाओं ने उनके मन से ये भ्रम तोड़ने और इस पर बात करने की छूट दी. संस्था से कई लड़के भी जुड़े हैं जो अपने आसपास के साफ सफाई को बनाए रखने का खास ख्याल रखते हैं. इनमें से कुछ लड़को ने अपने घर की माताओं और बहनों को भी इसकी जानकारी दी है.

माहवारी के दिनों का सबसे बड़ा मुद्दा साफ-सफाई को बनाए रखना है क्योंकि सबसे ज्यादा बीमारी इसी से फैलती है. साथ ही उपयोग किए गए सैनिटरी नेपकिन या कपड़ो को इधर-उधर फेंक देने से गंदगी भी फैलती है और पर्यायवरण भी दूषित होता है.

‘सजग और आत्मविश्वास से भरे समाजिक माहौल में माहवारी प्रबंधन को मजबूत किया जाना चाहिए.’ की थीम पर आयोजित नुक्कड़ नाटक के साथ कार्यक्रम का अंत हुआ. संस्था की सरकार से अपील है कि सुरक्षित, सस्ते और आसानी से मिलने वाले सैनिटरी नेपकिन उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल कर सकें.

साथ ही सबने मिलकर शपथ ली कि यह मेरी नहीं अकेली, माहवारी हर लड़की की सहेली है. संस्था का मांगपत्र कहता है कि माहवारी एक जैविक प्रक्रिया है जो लड़की की गरिमा, सम्मान, सशक्तिकरण और मानव अधिकार से जुड़ी हैं.


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