मध्य प्रदेश डायरी: सांसदों के टिकट काट कर भी मुसीबत में बीजेपी


everything is not well in bjp after candidates denied ticket for lok sabha election

 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सरकार खोने की वजहों में एक यह भी गिनाई गई कि पार्टी ने तमाम सर्वे और फीडबैक को खारिज करते हुए खराब प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों और विधायकों के टिकट नहीं काटे. इस अनुभव से सबक लेते हुए पार्टी ने 18 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करते हुए 7 मौजूदा सांसदों के टिकट काटे दिए.

इस पर भी कार्यकर्ता खुश नहीं हुए. जहां टिकट नहीं काटा गया, वहां तो मौजूदा सांसद का विरोध हुआ ही, जहां टिकट काटे गए वहां भी विरोध उबल पड़ा. बीजेपी ने राजगढ़, मंदसौर और खंडवा में रोडमल नागर, सुधीर गुप्ता और नन्दकुमार सिंह चौहान के टिकट नहीं काटे. मौजूदा सांसदों के क्षेत्र में कार्यकर्ताओं ने बगावत कर दी. इसके साथ ही जहां टिकट काटे गए वहां कार्यकर्ता नए नामों से संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे. मुरैना, भिंड, टीकमगढ़, सीधी, बालाघाट, राजगढ़, मंदसौर, खंडवा और शहडोल में तीखा विरोध शुरू हो गया. विरोध करने वालों में टिकट के दावेदार तो हैं ही, इसके साथ स्थानीय कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

बीजेपी से कांग्रेस में आईं, हिमाद्री सिंह को शहडोल से टिकट दिए जाने के बाद नाराज वर्तमान सांसद ज्ञान सिंह ने आरोप लगा दिया कि बीजेपी ने शहडोल लोकसभा का टिकट करोड़ों रुपए में बेचा है. उन्होंने कहा कि मैं करोड़ों रुपए नहीं दे सकता था, इसलिए मुझे टिकट नहीं दिया गया. वे यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ने पर अडिग हैं. बालाघाट से पूर्व मंत्री ढाल सिंह बिसेन को टिकट मिला तो शिवराज सरकार में कृषि मंत्री रहे गौरी शंकर बिसेन की बेटी और टिकट दावेदार मौसम बिसेन का दर्द सोशल मीडिया पर छलक आया.

बाकी 11 सीटों पर टिकट की घोषणा होने के पहले ही विवादास्पद बयान सामने आ रहे हैं. भोपाल से पार्टी ने प्रत्याशी तय नहीं किया है, मगर मौजूदा सांसद आलोक संजर को संकेत दे दिए गए हैं कि उन्हें मैदान में नहीं उतारा जाएगा.

संजर ने भी सोशल मीडिया पर एक पोस्टर पोस्ट किया जिसमें लिखा था जीवन भी कितना अजीब है, जो टेढ़े हैं उन्हें छोड़ दिया जाता है और जो सीधे हैं उन्हें ठोक दिया जाता है. उनकी कसक को समझा जा सकता है.जब इस पर विवाद हुआ तो संजय स्पष्टीकरण दिया कि एक सामान्य संदेश था जिसे लोगों ने चुनाव से जोड़ दिया. पार्टी इन बगावती स्वरों से परेशान है और प्रदेश के बड़े नेताओं को इस विरोध से निपटने का जिम्मा दिया गया है.

मुख्यालय के बाहर 8 घंटे इंतजार से खफा बीजेपी नेता

ऐसा नहीं है कि बीजेपी में टिकट को लेकर ही नाराजगी है. संगठन में सुनवाई न होने से भी नेता नाराज हैं. मुरैना के पूर्व महापौर बीजेपी नेता अशोक अर्गल ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. अर्गल का कहना है कि 20 मार्च को दिल्ली के दीनदयाल मार्ग पर बीजेपी हेड क्वार्टर के बाहर वे 20 घंटे तक खड़े रहे और यहां शीर्ष नेताओं से मुलाकात करने की कोशिश की लेकिन किसी पदाधिकारी ने समय तक नहीं दिया.

अर्गल का कहना है कि जिस पार्टी के लिए मैंने सब कुछ किया, वह मेरी बात सुनने तक को तैयार नहीं है. बीजेपी मुख्यालय के बाहर निजी कंपनियों की गार्ड तैनात थे. वे न किसी नेता को पहचानते हैं और न किसी को अंदर नहीं जाने देते हैं. अर्गल कह चुके हैं कि अब वे स्वतंत्र हैं और कुछ भी फैसला ले सकते हैं. अर्गल की इस नाराजगी ने मुरैना से बीजेपी प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. यदि अर्गल कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरते हैं तो तोमर की राह आसान नहीं होगी.

महाजन का मोदी मजाक, अंतस की पीड़ा

लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद लोकसभा सीट के लिए प्रधानमंत्री के नाम का जिक्र छेड़ा तो दूसरे नेता चौंक गए. बैठक खत्म होने के बाद महाजन ने कहा कि इंदौर सीट बीजेपी की परंपरागत सीट है. यहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लड़ें तो कैसा रहेगा?’ इस पर बीजेपी नगर अध्यक्ष गोपी नेमा ने हामी भरते हुए कहा कि यदि ऐसा हुआ तो अच्छा हो जाएगा. हालांकि, बाद में ताई ने मीडिया से कहा कि उन्होंने तो मजाक किया था मगर इस बात के कई राजनीतिक मायने निकाले गए. माना गया कि यह टिकट कटने कि ताई की पीड़ा थी और इसी कसक में उन्होंने यह जाहिर कर दिया कि पार्टी में उनके कद के अनुसार विकल्प मोदी ही हो सकते हैं, कोई और नहीं.

कांग्रेस में ये कौन आया?

लोकसभा चुनाव के दौरान असन्तुष्ट नेताओं का इस दल से उस दल में आना-जाना जारी है. इसी क्रम में कांग्रेस में विनोद शुक्ला शामिल हुए. इनका परिचय यह है कि ये पेशे से कॉन्ट्रेक्टर हैं और शिवराज सरकार में कद्दावर मंत्री रहे राजेंद्र शुक्ल के भाई हैं. राजेंद्र शुक्ल ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी और विनोद शुक्ल भी सत्ताधारी दल के साथ ही रहे. अब कांग्रेस सत्ता में है तो वे इधर आ गए. यह तर्क दे रहे कांग्रेस नेताओं को साथियों ने यह कहते हुए चुप करवाया कि ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति वाले विंध्य क्षेत्र में कोई ब्राह्मण पार्टी से जुड़ रहा है, यही महत्वपूर्ण है. उसके कद पर न जाओ. कम से कम यह प्रचार तो मिला कि बीजेपी से कांग्रेस में कोई आया है.


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