20 से कम और 50 से ज्यादा उम्र के लोग ‘फेक न्यूज’ की गिरफ्त में


around 86 percent internet users were duped by fake news says a survey

 

इंटरनेट के बढ़ते प्रसार के बीच दुनिया भर में फेक न्यूज एक विकट समस्या बन गई है. भारत के संदर्भ में अक्सर इसका इस्तेमाल समाज का ताना-बाना बिगाड़ने और राजनीतिक लाभ के लिए हो रहा है.

फेक न्यूज के बढ़ते शोर-शराबे और इसका शिकार होती आबादी पर फैक्टली और इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने सर्वे किया है. सर्वे में चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि फेक न्यूज के सबसे ज्यादा शिकार 20 साल से कम और 50 साल से ज्यादा उम्र के लोग होते हैं.

फेक न्यूज की चपेट में खतरनाक तरीके से सबसे ज्यादा वे लोग भी आते है जो टेक्नोलॉजी, इंटरनेट, और स्मार्टफोन से कम वाकिफ हैं. फेक न्यूज के प्रचार-प्रसार में इन उपकरणों का सबसे बड़ा हाथ होता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना क्रांति के इस विस्फोट में लोग अपने पूर्वाग्रह की वजह से भी फेक न्यूज के शिकार होते हैं. कई दफा इस तरह की सूचना उनकी आस्था से जुड़ी होती है और वे इस प्रचार-तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं. इंटरनेट की दुनिया में आसान पहुंच और इससे आर्थिक लाभ उठाने की लालसा भी इसकी वजह है.

अध्ययन में शामिल 21-30, 31-40 और 41-50 वर्ष आयु वर्ग के 75 फीसदी से ज्यादा लोगों में सूचना की सही-गलत परख करने की क्षमता थी. वहीं 20 से कम उम्र के लोगों में यह क्षमता घटकर  66.6 फीसदी और 50 से अधिक के लोगों में यह 66.7 फीसदी ही रह गई.

रिपोर्ट की माने तो आज भी अखबार सूचना का सबसे अधिक भरोसेमंद माध्यम है. हालांकि 15 से 20 की उम्र के सिर्फ 22.2 फीसदी लोग ही अखबार पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं. 50 से अधिक उम्र के करीब 50 फीसदी लोग अब भी किसी और माध्यम की तुलना में अखबार को तरजीह देते हैं.

रिपोर्ट ने किसी भी राजनीतिक पार्टी का नाम लिए बगैर यह भी बताया है कि पार्टियां डिजिटल कंटेंट के जरिए कैंपेन और प्रोपेगंडा करने के लिए ऐसी सूचनाएं के प्रवाह में लगी है जो गलत तथ्यों पर भी आधारित होती हैं.

सूचना समाज के इस युग में फेक न्यूज की वजह से तथ्यपरक जानकारी पर संकट मंडरा रहा है. दुनिया भर में सोशल मीडिया के जरिए फेक नयूज फैलने की वजह से हिंसा भड़की है. यह वक्त इस पर सख्ती से लगाम लगाने का है.


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