आर्थिक सर्वे में मनरेगा को लेकर किए गए झूठे दावे, योजना के लिए फंड बढ़ाने की मांग
नरेगा संघर्ष मोर्चा और पिपुल्स एक्शन ऑफ इम्पलॉय गारंटी(पेज) ने इकॉनोमिक सर्वे 2019 में मनरेगा के प्रदर्शन के विश्लेषण को राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया गया है जिनमें उन तमाम प्रयासों को छुपा लिया गया है जो साल 2015 से पहले किए गए थे. मोर्चा ने आरोप लगाया है कि अनुपयुक्त और फंड की कमी झेल रही तकनीक की वजह से मनरेगा कामगारों की हकमारी हो रही है.
मनरेगा योजना के लिए जारी 60,000 करोड़ रुपये के बजट को नाकाफी बताया गया है. यह पिछले वित्त वर्ष 2018-19 की तुलना में 1,089 रुपये कम है. मांग और महंगाई के आधार पर योजना के लिए 88,000 करोड़ रुपये की मांग की गई है.
मोर्चा की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि ऐसी परिस्थिति में जब देश के कई हिस्सों में सूखे की स्थिति बनी हुई है चालू वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपये नाकाफी हैं. पिछले साल के बकाया भुगतान के लिए इनमें से 4,000 करोड़ रुपये खर्च होना है. ऐसी स्थिति में केवल 56,000 करोड़ रुपये ही चालू वित्त वर्ष में खर्च करने के लिए बचेंगे.
मोर्चा ने आरोप लगाया है कि योजना के लिए अपर्याप्त फंड की वजह से केन्द्र सरकार नियमित रूप से फंड जारी नहीं कर पाती है, जिसकी वजह से मजदूरी के भुगतान में देरी होती रही है. इतना ही नहीं काम नहीं मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता सहित अन्य राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है.
आरोप है कि मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं हो पा रहा है. अपर्याप्त फंड के साथ-साथ अनुपयुक्त तकनीक ने मजदूरों की स्थिति को दयनीय बना दिया है.
प्रेस रिलीज में कहा गया है, “तकनीक के इस्तेमाल के फायदों की ईमानदारी के साथ जांच की बजाय सरकार लगातार इन तकनीकों को बढ़ावा दे रही है.”
मोर्चा ने आधार को मनरेगा से जोड़ने के बाद आई दिक्कतों का हवाला देते हुए नई तकनीकों का पुनरीक्षण करने की मांग की है.
मोर्चा ने इकॉनोमिक सर्वे में बताए गए मनरेगा में तकनीक के फायदों को वास्तविक स्थिति के उलट बताया है. आधार को मनरेगा के साथ जोड़ने के बाद आई तकनीकी दिक्कतों की वजह से बड़ी संख्या में मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाया है और कई तकनीकी खामियों के बारे में सरकार को भी पता नहीं है.
मजदूरों को कई बैंक एकाउंट खुलवाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. कभी-कभी तो मजदूरों को पता भी नहीं होता है कि उनका कौन-सा बैंक एकाउंट मनरेगा से जुड़ा हुआ है.
इकॉनोमिक सर्वे में दावा किया गया है कि आधार से जुड़े पेमेंट की वजह से भुगतान में होने वाली देरी में कमी आई है. मोर्चा की ओर से कहा गया है कि फंड ट्रांसफर ऑर्डर(एफटीओ) जेनरेट होने को ही भुगतान मान लिया गया है.
मोर्चा का दावा है कि आधार से जोड़ने से भुगतान में होने वाली देरी में कोई फर्क नहीं पड़ा है. दो साल पहले 90 लाख मजदूरों के साथ किए गए एक सर्वे के आधार पर दावा किया गया है कि एफटीओ के जेनरेट होने से लेकर मजदूरों को रुपये मिलने तक औसतन 50 दिनों की देरी हुई है. एफटीओ जेनरेट होने के बाद से भुगतान होने तक कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है जिसे सर्वे में उल्लेख करना जरूरी नहीं समझा गया है.
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि आधार की वजह से साल 2015 के बाद से सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में काम की मांग और आपूर्ति में वृद्धि हुई है. जबकि मोर्चा का कहना है कि सर्वे में साल 2015 में स्वराज अभियान की ओर से दायर जनहित याचिका का कहीं जिक्र नहीं किया गया है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत अभियान चलाने का आदेश दिया था और सरकार को इन क्षेत्रों में काम बढ़ाने और भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.