भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों की सुनवाई ना करें जस्टिस अरुण मिश्रा: किसान संगठन


supreme court rejects all review petition in ayodhya verdict

 

अखिल भारतीय किसान संगठन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र लिखकर अपील की है कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों पर जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता में बनाई गई नई बेंच को सुनवाई नहीं करनी चाहिए.

संगठन ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण एक्ट को लेकर जस्टिस अरुण मिश्रा 2018 में ही अपने विचार रख चुके हैं. संगठन ने कहा कि जस्टिस अरुण मिश्रा भूमि अधिग्रहण से जुड़े 2014 के फैसले को 2018 में गलत ठहरा चुके हैं.

संगठन ने कहा कि 2018 में जिस मामले में जस्टिस मिश्रा ने 2014 के फैसले को गलत ठहराया, वो फैसला देने वाले जस्टिस मदन लोकुर 2018 में जस्टिस मिश्रा की बेंच शामिल थे और वे इससे सहमत नहीं थे.

12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े पांच मामलों की सुनवाई के लिए जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व में पांच जजों की नई संवैधानिक पीठ का गठन होगा. इस पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और रविंद्र भट्ट शामिल होंगे. यह बेंच 15 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगी.

भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े मामले में 2014 में जस्टिस मदन लोकुर, आरएम लोढ़ा और कुरियन जोसेफ ने फैसला सुनाया था कि केवल हर्जाने की राशि को सरकारी खजाने में जमा करने का मतलब यह नहीं होगा कि जमीन के मालिक ने हर्जाने को स्वीकार कर लिया है. यदि जमीन का मालिक हर्जाना लेने से मना कर देता है तो रकम भूमि अधिग्रहण एक्ट के सेक्शन 31 के तहत कोर्ट में जमा कराई जानी चाहिए.

इसी फैसले को 2018 में जस्टिस अरुण मिश्रा ने पलट दिया था. नए फैसले के तहत कहा गया था कि अगर रकम को सरकारी खजाने में जमा कराया जा चुका है तो इसे जमीन के मालिक द्वारा हर्जाने के रूप में स्वीकार माना जाएगा.


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