मलाल: जिसे न देखने का आपको कोई मलाल नहीं होगा


film malaal movie review

 

निर्देशक: मंगेश हडावले

कलाकार: शर्मिन सहगल, मीज़ान जाफरी, समीर धर्माधिकारी, अंकुश बिष्ट

भारतीय समाज में सच्चा, सहयोगी, टिकाऊ, निभाऊ प्यार भले ही देखने को न मिलता हो, लेकिन बॉलीवुड की 90 प्रतिशत फिल्में फिर भी प्रेम के इर्द-गिर्द ही बनती हैं. साहित्य की तरह फिल्में भी समाज का दर्पण होती हैं. यथार्थवादी मुद्दों, सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों के बारे में यह राय सही है कि उनमें समाज में हो रहे परिवर्तन का हूबहू अक्स दिखता है. हालांकि समय के साथ-साथ फिल्मों और सीरियलों ने इस सामाजिक अक्स को अपनी सुविधा, सोच, दर्शकों और बाजार के विश्लेषण के कारण ऐसे चटख रंगों में रंग दिया है जो हकीकत से जरा भी मेल नहीं खाते. इस कारण बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्मी प्रेम कहानियां भी अच्छी जरूर लग सकती हैं, लेकिन सच्ची नहीं लगती! ऐसी ही फिल्मों की श्रृंख्ला में एक नया नाम है ‘मलाल’.

‘मलाल’ भी प्रेम में ही पगी फिल्म है. फिल्म के निर्माता संजय लीला भंसाली रोमांस के शहंशाह माने जाते हैं. इस कारण उनके जैसे फिल्मकार से रोमांटिक और इंटेंस फिल्म की अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है. लेकिन ‘मलाल’ कहीं से भी आपको ‘भंसाली छाप’ लव स्टोरी नहीं लगती! न तो इस फिल्म में भंसाली की भव्यता है और न ही प्यार का वह तीव्र, गहरा और कॉम्प्लेक्स्ड रंग जिसके लिए वह जाने जाते हैं. यह फिल्म 2004 की तमिल फिल्म ‘7जी रेनबो कॉलोनी’ का रीमेक है. हालांकि दोनों फिल्मों की पृष्ठभूमि काफी अलग है.

इस फिल्म से एक्टर जावेद जाफरी के बेटे ‘मीज़ान जाफरी’ और संजय लीला भंसाली की बहन की बेटी ‘शर्मिन सेगल’ ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की है. ‘मलाल’ एक रोमांटिक ड्रामा है. फिल्म की कहानी चॉल में रहनेवाले टपोरी और बदमाश किस्म के लड़के शिवा (मीज़ान जाफरी) और वहां रहने आई उत्तर भारतीय लड़की आस्था त्रिपाठी (शर्मिन सहगल) के प्यार के बीच फलती-फूलती है. शिवा चॉल में पला-बढ़ा गुंडई करने वाला लड़का है जिसे शिव सेना के लोग अपने काम के लिए इस्तेमाल करते हैं. आस्था का ताल्लुक स्टॉक मार्केट के एक ऐसे परिवार से है, जो कभी बहुत अमीर था. मगर मार्केट में घाटा होने के बाद उन्हें इस चॉल में रहने को मजबूर होना पड़ा.

शुरूआत में शिवा, आस्था को जरा भी पसंद नहीं करता, मगर फिर धीरे-धीरे उसे आस्था की मासूमियत और दूसरों की मदद करनेवाला स्वभाव भा जाता है. आस्था के घरवाले उसकी मंगनी विदेश से लौटे अमीर लड़के से कर चुके हैं. इस बीच शिवा आस्था को टूटकर चाहने लगता है. वह उसके लिए अपनी सभी बुरी आदतें छोड़ने को तैयार है. शिवा आस्था के प्यार में अपनी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों ही बदल देता है, मगर तभी उन दोनों के बीच प्यार का एक ऐसा नया दुश्मन पैदा हो जाता है, जिसके आगे दोनों बेबस हो जाते हैं. क्या शिवा और आस्था का प्यार परवान चढ़ेगा? इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

अभिनय की बात करें तो फिल्म के मेन लीड मीज़ान और शारमिन फिल्म की जान हैं. मीज़ान ने अपने डेब्यू में मराठी मुलगे को दिल से साकार किया है. वह एक्शन, इमोशन, डांस और रोमांस में अव्वल रहे हैं. अक्खड़ होने के बावजूद स्क्रीन पर वे कंफर्टेबल और एक्सप्रेसिव लगते हैं. शर्मिन की शक्ल बहुत इनोसेंट है. वे स्क्रीन पर अखरती तो नहीं हैं लेकिन वो अपनी फीलिंग और एक्सप्रेशन को ज्यादा मैच नहीं कर पाती हैं. हालांकि मीज़ान और शर्मिन जब एक साथ होते हैं, तो इनका काम बेहतर दिखता है. इनकी केमिस्ट्री फिल्म की सबसे अच्छी बात है.

फिल्म में कई मराठी एक्टर्स ने काम किया है, जिनके नाम शायद हमने नहीं सुने. और वो सारे लोग अपने रोल में परफेक्ट हैं. शिवा के आई-बाबा का रोल करने वाले दोनों ही एक्टर्स का काम वाकई काफी अच्छा है. उनके काम में कोई एफर्ट नहीं दिखाई देता है. कुल मिलाकर फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट कहानी को मजबूती प्रदान करती है.

फिल्म में संचित बल्हारा का बैकग्राउंड म्यूजिक काफी सॉफ्ट और दमदार है. फिल्म का म्यूजिक सुनकर समझ आ जाता है की फिल्म महाराष्ट्र के बैकग्राउंड की है. मसाला आइटम नंबर से लेकर होली-दीवाली में बजाए जा सकने वाले ‘उढ़ल हो’ और ‘नाद खुला’ तक अधिकतर गानों के हुकलाइन मराठी भाषा में हैं. हालांकि टच हिंदी म्यूजिक वाला है. संगीतकार के रूप में संजय लीला भंसाली, श्रेयश पुराणिक और शैल हाडा के संगीत में ‘आइला रे’, ‘नाद खुला’ जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं. इस फिल्म का म्यूजिक थोड़ा-थोड़ा ‘काय पो चे’ फिल्म से मिलता सा लगता है. फिल्म का गाना ‘एक मलाल’ टूटे दिल आशिकों के लिए एक नई सौगात है. इस गाने का संगीत सुनने में काफी मधुर और दिल को छूने वाला है.

तकनीकी रूप से भी फिल्म औसत ही कही जा सकती है. कहानी चूंकि मुंबई में ही चलती रहती है लिहाजा सिनेमैटोग्राफर रागुल के पास ज्यादा कुछ करने को था नहीं. राजेश पांडे ने इसके बावजूद एडिटिंग के जरिए फिल्म को चुस्त रखने की कोशिश की है. निर्देशक मंगेश हडावले ने कहानी का बैकड्रॉप 90 का रखा है, जहां बैकग्राउंड में ‘टाइटैनिक’ और ‘हम दिल दे चुके सनम’ के पोस्टर देखने को मिलते हैं. उस दौर के हिसाब से चॉल की यह कहानी भली सी लगती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी रोचक है, जहां निर्देशक ने महाराष्ट्र में आनेवाले उत्तर भारतीयों के मुद्दे को भी छुआ है, मगर सेकंड हाफ में कहानी डल और स्लो हो जाती है.

फिल्म का एक कमजोर पक्ष यह है कि जिस मुद्दे को फिल्म के फर्स्ट हाफ में उठाया जाता है, अंत तक जाते-जाते वह मुद्दा ही फिल्म से गायब हो जाता है. फिल्म की शुरुआत में शिव सेना द्वारानॉर्थ इंडियन लोगों को महाराष्ट्र से खदेड़ने का राजनीतिक विषय उठाया जाता है. लगता है कि आगे कहानी में यह मुद्दा एक इंपॉर्टेंट रोल प्ले करेगा, क्योंकि लड़का मराठी था और लड़की नॉर्थ से. उम्मीद रहती है कि लव स्टोरी में इस मुद्दे को उठाकर फिल्म अपनी प्रासंगिकता बनाए रखेगी. लेकिन आगे इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं आता.

फिल्म का क्लाइमैक्स काफी शॉकिंग होने के बावजूद धीरे से लगता है. फिल्म से अगर सोसाइटी की दखलअंदाजी और पॉलिटिक्स वगैरह को निकाल दें, तो ये एक ठीक-ठाक क्वालिटी की खालिस लव स्टोरी है. जो आपको बोर तो नहीं करती है, पर अपना प्रभाव छोड़ने में भी नाकाम ही रहती है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा, की ‘मलाल’ फिल्म न देख पाने का आपको कोई मलाल नहीं होगा !


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