दे दे प्यार दे: दो पीढ़ियों के उलझन भरे प्यार पर बनी सतही फिल्म


 

निर्देशक : अकिव अली

कलाकार : अजय देवगन, तब्बू, रकुल प्रीत सिंह, जिमी शेरगिल, इनायत सूद

लेखन : लज रंजन, तरुण जैन

‘ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन’ जगजीत सिंह की गाई इस गजल के शब्द काफी छूते हैं. उम्र की सीमा को तोड़कर होने वाला प्यार जब तक सिर्फ मन की परीधि में रहता है तब तक तो कोई दिक्कत नहीं. उलझने तब शुरू होती हैं, जब वो प्यार मन की सीमाओं को लांघ कर भौतिक जगत में अपनी जगह बनाना चाहता है. हम इशारा कर रहे हैं एज गैप लव यानी दो पीढ़ी के लोगों के बीच होने वाले प्यार के बारे में.

बॉलीवुड में एज गैप लव विषय पर कई फिल्में बन चुकी हैं, जैसे – ‘जॉगर्स पार्क’, ‘नि:शब्द’, ‘चीनी कम है’, ‘दिल चाहता है’. नई फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ भी इसी पुराने विषय पर बनी एक नई फिल्म है. फिल्म में इस विषय से जुड़े कुछ नए एंगल्स जरूर हैं, लेकिन फिर भी इस विषय पर बनी यह कोई मंझी हुई फिल्म कतई नहीं है.

फिल्म की कहानी लंदन में रहने वाले 50 साल के बिजनसमैन आशीष (अजय देवगन) की है. आशीष इंडिया में रहने वाली अपनी पत्नी मंजू (तब्बू) और बच्चों से कई साल पहले अलग हो चुका है. एक दिन उसकी लाइफ में उसकी बेटी की हमउम्र एक खूबसूरत लड़की आएशा (रकुल प्रीत सिंह) की एंट्री होती है. इस बेमेल जोड़ी को देखकर आशीष का डॉक्टर दोस्त राजेश (जावेद जाफरी) उसे समझाता है कि जवान लड़कियां अक्सर बूढ़े दौलतमंद लोगों की दौलत हड़पने के लिए ऐसे रिश्ते बनाती हैं.

लेकिन इस सलाह से बेपरवाह आशीष और आएशा एक-दूसरे के काफी करीब आ जाते हैं और शादी करना चाहते हैं. शादी से पहले आशीष एक बार आएशा को अपने बीवी-बच्चों से मिलवाने के लिए इंडिया लाता है. यहां आकर उसे पता लगता है कि खुद आशीष की बेटी की शादी की बात चल रही है. इसके बाद कहानी में कुछ और मजेदार टि्वस्ट आते हैं. आखिर में आएशा के साथ आशीष नई गृहस्थी बसाता है या फिर अपनी पुरानी गृहस्थी को फिर से अपना लेता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

निर्देशक ने पुराने विषय की फिल्म में कुछ नए जॉनर के रिलेशनशिप को एक्सप्लोर किया है. जिसमें एक पिता अपनी बेटी की उम्र की लड़की से शादी करना चाहता है, तो ऐसे में उसका अपना बेटा भी अपनी होने वाली (लगभग हमउम्र) मम्मी पर लाइन मारने लगता है. वहीं, उसकी असली पत्नी अपने पति की खुशी की खातिर उसका पूरा सपॉर्ट करती है. ये दोनों ही एंगल फिल्म में नए हैं, जिन्हें कुछ लोग पसंद कर सकते है और कुछ इस पर खीज सकते हैं.

फिल्म में अभिनय की बात करें तो तब्बू की एक्टिंग में आज भी वो आब है कि वे अपने सामने स्क्रीन पर बाकियों को फीका कर दें. वे हमेशा से ही एक्टिंग की पॉवर हॉउस रही हैं और इस फिल्म में उनके इमोशनल सीन्स बेहतरीन रहे हैं. रकुल प्रीत सिंह ने महफिल लूटने की काफी सार्थक कोशिश की है. आयशा के चुलबुले, बिंदास और समझदार किरदार में उन्होंने अच्छा अभिनय किया है. रकुल प्रीत सिंह का अपीयरेंस इम्प्रेसिव है और वे ताजगी से भरी लगती हैं. उनकी शोखियां और उनका चुलबुलापन हम ‘यारियां’ और ‘अय्यारी’ आदि फिल्मों में देख चुके हैं. लेकिन ‘दे दे प्यार दे’ उनको एक बेहतर अभिनेत्री के तौर पर सामने आने का मौका देती है.

पुरानी बीवी और नई गर्लफ्रेंड के बीच एक आदमी की हालत और हालात दोनों को अजय ने ठीक-ठाक निभाया है. हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि अजय इस फिल्म में कुछ मिसफिट से लगते हैं, खास तौर से इमोशनल सीन्स में. हां, उन पर लगी ‘सिंघम’ की मुहर उनका कभी पीछा नहीं छोड़ेगी, ये इस फिल्म के एक सीन में भी साबित होता है. फिल्म में अजय देवगन की बेटी के रूप में इनायत सूद ने भी अच्छी परफॉर्मेंस दी है. जिमी शेरगिल कम समय में भी स्क्रीन पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करते हैं. आलोक नाथ और कुमुद मिश्रा भी फिल्म में सही लगे हैं.

सुधीर चौधरी की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है और फिल्म की लोकेशंस शानदार हैं. अमाल मलिक और रोचक कोहली के संगीत निर्देशन में फिल्म के दो-तीन गाने कैची बन गए हैं. खासकर ‘हॉली हॉली’ गाना काफी पसंद किया जा रहा है. रेडियो मिर्ची टॉप चार्ट में भी यह गाना 10वें नंबर पर पहुंच गया है. अरिजीत सिंह के दोनों गाने ‘तू मिला तो है ना’ और ‘दिल रोई जाए’ गाने भी श्रोता पसंद कर रहे हैं.

फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको हंसाता गुदगुदाता है तो सेकेंड हाफ में स्टोरी में कई टि्वस्ट आते हैं. कॉमेडी वाले कई सीन्स में पंच अच्छे हैं. कुछ जगहों पर हंसने की सिचुएशन बनती तो है, लेकिन उस वक्त फिल्म फूहड़पने की तरफ जाती हुई दिखती है. फिल्म का क्लाईमेक्स भी दर्शकों के लिए ज्यादा देर तक जिज्ञासा नहीं जगा पाता और आपको पहले ही आइडिया लग जाता है.

असल जिन्दगी में रिश्ते बेहद उलझन से भरे होते हैं लेकिन ये फिल्म उन्हें बेहद सतही तरीके से दिखाती है. खासतौर से कुछेक सीन्स तो बेहद अजीब लगते हैं. जैसे – पूर्व पत्नी द्वारा पति को राखी बांधने का सीन. कौन सी पत्नी अपने पति को राखी बांधती है और भाई बनाकर पेश करती है? और भी चीजें काफी खटकती हैं जैसे जो ‘रकुल’ वन नाईट स्टैंड को लेकर कम्फर्टेबल है, वही अंत में अपने मिजाज से ऐन उलट व्यवहार करती है. ऐसी कई चीजें फिल्म की स्क्रिप्ट के लचर होने का पुख्ता सबूत देती हैं.

फिल्म के एक लेखक ‘लव रंजन’ ने इससे पहले भी ‘प्यार का पंचनामा’, ‘प्यार का पंचनामा 2’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ आदि फिल्मों में उन्होंने युवाओं का दिल जीता है.

फिल्म के डायरेक्टर अकिव अली जाने-माने एडिटर रह चुके हैं. लेकिन अपनी ही निर्देशित पहली फिल्म की उन्होंने बेहद बुरी एडिटिंग की. यदि आधे घंटे की फिल्म को काट भी दिया जाता तो भी फिल्म की कहानी उतनी ही रहती. बल्कि कसी हुई एडिटिंग से फिल्म कुछ असरदार ही बन पड़ती. अगर आप दो पीढ़ियों के नए टाइप के लव रिलेशनशिप से पैदा होने वाली संभावित उलझनों को देखना चाहते हैं तो फिल्म एक बार देखी जा सकती है.


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