निजीकरण की राह पर सरकारी बैंक


FIR lodged in withdrawal of the customer account in sbi account

 

सरकार सार्वजनिक बैंकों में अपने शेयर को निजी हाथों में देना चाहती है. इसके लिए वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक बैंकों से कहा है कि बैंक सरकार की हिस्सेदारी को धीरे-धीरे कम करके 52 फ़ीसदी तक लाए. इसके पीछे मंत्रालय ऐसा मान रहा है कि बैंकिंग सेक्टर को बेहतर तरीके से चलाया जा सकेगा.

अभी कई सार्वजनिक बैंकों में सरकार की 75 फ़ीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है जो कम हो कर 52 फ़ीसदी तक लाने की योजना है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि आगे यह बैंक पर निर्भर करेगा कि वह कितना शेयर बाजार में बेचना चाहती है. बैंकों को इसकी अनुमति होगी.

सरकार बैंकों के निजीकरण की इस प्रक्रिया के पीछे सेबी के नियमों को लागू करने की बात कह रही है. सेबी के नियमों के मुताबिक, शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों को कम से कम 25 फ़ीसदी शेयर बाजार में रखना होता है.

बैंकों को इस तरह निजीकरण की राह पर ले जाने के लिए यह भी कहा जा रहा कि सरकार की हिस्सेदारी कम होने से कर्ज से जुड़े नियमों का पालन करने में आसानी होगी.

मोदी कैबिनेट की तरफ से बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक, देना बैंक के विलय को मंजूरी दी जा चुकी है. इसके बाद सरकार ग्रामीण बैंकों का विलय करने जा रही है.

हाल ही में पंजाब ग्रामीण बैंक, मालवा ग्रामीण बैंक और सतलज ग्रामीण बैंक का विलय किया जा चुका है जो एक जनवरी से प्रभावी भी है. इसके अलावा पंजाब ग्रामीण बैंक, उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक(यूको बैंक) और मध्य बिहार ग्रामीण बैंक का विलय किया जा चुका है.

अभी केंद्र सरकार की ग्रामीण बैकों (आरआरबी) में 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, जबकि 35 फ़ीसदी हिस्सेदारी मूल बैंकों और 15 फ़ीसदी हिस्सेदारी राज्य सरकारों की हैं.

सरकार की तरफ से निर्देश मिलने के बाद से बैंक निजीकरण की राह में बढ़ भी चुकी हैं. स्टेट बैंक ने इस प्रक्रिया में पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) के तहत 20,000 करोड़ रुपये की शेयर बिक्री शुरू की है.

क्यूआईपी के बाद सरकार की हिस्सेदारी कम हो जाएगी. मौजूदा समय में एसबीआई में सरकार की 58.53 फ़ीसदी हिस्सेदारी है.


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