गांधी के देश में हिंसा का तांडव!


five years of modi government

 

दामन पे कोई छींट न खंजर पर कोई दाग

तुम कत्ल करो हो कि कारामात करो हो

मशहूर शायर कलीम अजिज का यह शेर आज के माहौल पर बहुत ही सटीक बैठता है. असम के विश्वनाथ जिले में 68 साल के शौकत अली को बुरी तरह पीटा गया. किसी ने इल्जाम लगाया कि वो अपनी रेहड़ी पर खुलेआम बाजार में बीफ बेच रहा था.

जब वो घुटनों के बल बैठकर भीड़ से रहम की भीख मांगने लगा तो उसके मुंह में सुअर का मांस ठूंस दिया गया. इंसानियत दरिंदगी के स्तर से भी नीचे गिर चुकी थी जब तक भीड़ में से एक ने भी उसकी हालत पर तरस नहीं खाया.

पिछले पांच साल में हमारी सभ्यता, हमारी विरासत, हमारे संस्कार, हमारे धार्मिक सिद्धान्त किस तूफान में गुम हो गए हैं? ये तो तूफान है जो 2014 में उभरा और धीरे-धीरे हमारे देश को खा गया.

6 अप्रैल 2019 को लगभग 4,000 लोग जिसमें महिलाएं, पुरुष, नौजवान, बूढ़े, विद्यार्थी सभी शामिल थे. देश के विभिन्न राज्यों से जमा हुए ये सभी एक ही उद्देश्य के लिए जमा हुए थे.

जन सरोकार का नारा संविधान बचाने का संकल्प और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का जुनून दिल में लिए हुए, मैं स्टेज पर खड़ी हुई एक ऐसा दृश्य देख रही थी जिसके बारे में कभी कल्पना भी नहीं कर सकती. गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद, बादशाह खान के देश में ये दृश्य एक ऐतिहासिक लम्हा था. स्टेज पर सात परिवार मौजूद थे जिनको अगर मैं जिंदा लाश कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

सायरा खातून 15 साल के जुनैद की मां हैं. इनके बच्चे को ईद से दो दिन पहले बीफ के संदेह पर पीट-पीटकर बल्लभगढ़ के रेलवे स्टेशन पर मौत के घाट उतार दिया गया.

शमा परवीन जो 48 साल के जाहिद खान की पत्नी हैं. जाहिद को अगरतला (त्रिपुरा) में बीफ रखने के इल्जाम पर लिंच किया गया.

खुर्शीदन जिनके पति उमैर मुहम्मद को लक्ष्मणगढ़ (अलवर) में बीफ के इल्जाम पर लिंच किया गया. उमैर की आयु 35 साल थी. यामिन अहमद जिनको गाय और बछड़े मारने के इल्जाम में रोहतक जिले के एक गांव से बाहर फेंक दिया गया.

जिला गुरुग्राम में भोड़सी के मोहम्मद साजिद जिनको पीट-पीटकर हड्डियां तोड़ दी गई, इस कारण की उनके बच्चे होली के दिन घर के बाहर हॉकी खेल रहे थे.

सूरज एक दलित युवक है जो सोनीपत का रहने वाला है. उनके भाई और मां-बाप की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

सूरज के भाई प्रदीप का दोष सिर्फ ये था कि उन्होंने ऊंची जाति की लड़की से प्रेम विवाह किया था.

और अंत में फातिमा नफीस; वो बदनसीब मां जिनका जवान बेटा एबीवीपी के हाथों पीटा गया, उसके चार साल बाद भी जिंदा या मुर्दा उसका कोई पता नहीं है. ये सवाल एक नासूर की तरह उस मां के वजूद को खत्म कर रहा है.

पिछले पांच साल में देश के कमजोर और वलनरेबल वर्ग इस शासन के निशाने पर हैं. मुसलमान, दलित आदिवासी, महिलाएं, विद्यार्थी- हद तो ये है कि मासूम बच्चे भी इसी हिंसा के शिकार हैं. जहां एक तरफ तो हत्याएं चल रही हैं. वहीं दूसरी तरफ सरकार के बजट में उन क्षेत्रों में कटौती की जा रही है जहां सबसे ज्यादा संसाधनों की जरूरत है.

आज से 2019 का चुनाव शुरू हो रहा है. अब इसके फैसले की बागडोर जनता के हाथों में है. जनसरोकार 2019 के उस स्टेज पर मौजूद सब मांओ की आंखे हमसे विनती कर रही हैं कि बदल डालो उस सरकार को जिसने हमसे हमारे जीने का अधिकार छीन लिया.

इसी संदर्भ में स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में 1893 में दिए गए भाषणों की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, “सांप्रदायिकता, अंधविश्वास और उसके भयंकर दुष्परिणाम धर्मांधता ने लंबे समय से इस सुन्दर संसार को अपने चपेट में ले लिया है. जिसके परिणामस्वरुप ये धरती अक्सर हिंसा और खून से लाल हो जाती हैं. लेकिन अब समय आ गया है और मुझे पक्का विश्वास है कि ये कन्वेशन सभी तरह के धर्मांधता के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा.

डा. सैयदा हमीद, लेखिका और समृद्ध भारत फाउंडेशन की ट्रस्टी

रेयाज अहमद, फेलो, मुस्लिम वीमेंस फोरम


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