प्रोजेक्ट मोड में फेल पीएम मोदी, विदेशी निवेशकों का हुआ मोह भंग
पीएम मोदी के शासनकाल में विदेशी निवेशकों का मोह भंग हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए उम्मीद थी कि वह बड़ी जिम्मेदारी बेहतर तरीके से पूरी करेंगे. मोदी करीब 12 साल तक एक समृद्ध राज्य के मुखिया रहे.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया(आरबीआई) के साथ केन्द्र सरकार की तल्खी और उर्जित पटेल की विदाई मोदी सरकार के लिए बड़ी दुर्घटना की तरह है. हालांकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शेयर बाजार स्थिर बना रहा है.
द इकोनोमिस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी निवेशक भारत से अपना पैर समेट रहे हैं. बावजूद शेयर बाजार के हालात बेहतर हैं. क्योंकि घरेलू निवेशक सोना और प्रोपर्टी बेचकर शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक नरेन्द्र मोदी से भारत में चमत्कारी परिवर्तन की उम्मीद पूरी नहीं हो पाई है.
गुजरात में नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में बड़ी प्रोजेक्ट ईमानदार माने जाने वाले अधिकारियों के हाथों में थी. इसका असर जमीन पर भी दिखा. गुजरात की वित्तीय राजधानी अहमदाबाद के आसपास चकाचक सड़कें इसकी एक उदाहरण भर हैं. उनके शासनकाल में राज्य को भरपूर पानी मिला और गुजरात के 18,000 गांवों तक बिजली पहुंची.
राज्य में कारोबार स्थापित करने में लालफीताशाही की वजह से पड़ने वाली अड़चन को भी नरेन्द्र मोदी ने दूर करने का भरसक प्रयास किया. उन्होंने निर्देशों के कई स्तर को कम किया. थिंक टैंक आईडीएफसी इन्स्टिटूशन के रेबेन अब्राहम कहते हैं कि वह प्रोजेक्ट मोड में काम करने में सफल रहे हैं.
भारत में तेजी से आबादी बढ़ रही है. ऐसे हालात में 6-7 फ़ीसदी की जीडीपी बेस लाइन है. हालांकि इसे खराब स्थिति भी नहीं कही जा सकती है. ऐसे में सरकार के लिए प्रोजेक्ट मोड में चलना आसान नहीं है. रीबेन अब्राहम कहते हैं कि ऐसे हालात में बड़े और सांस्थानिक बदलाव और स्पष्ट रणनीति बनाने की जरूरत होती है. नरेन्द्र मोदी यहीं मात खा जाते हैं. वह आदेश देने और नियंत्रण करने में विश्वास रखते हैं.
नरेन्द्र मोदी सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर नोटबंदी को छोड़कर कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है. इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ा है. हालांकि जीएसटी से देश के अंदर टैक्स के मोर्चे पर कारोबार करने में आसानी हुई है. लेकिन इसकी रणनीति बनाने के लिए यूपीए सरकार को क्रेडिट जाता है.
केन्द्र सरकार आरबीआई पर सार्वजनिक बैंको के लिए ‘रिजर्व कैश’ में ढील देने के लिए दबाव बनाती रही है. ताकि बैंक डूब चुके कर्ज के घाटे से उबर सकें. गौरतलब है कि अगले साल 2019 में आम चुनाव भी है.
सन लाइफ इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के डेक मुल्लारकी कहते हैं कि निवेशक भारत से पहले ही दूर जा चुके हैं. चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का फायदा लेने से भारत चूक गया है. अमेरिका के निवेश पैटर्न में बदलाव आ रहा है. उसने चीन को टक्कर देने के लिए इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपीन्स की ओर रुख किया है.
भारत में श्रम कानूनों की व्यूहरचना और व्यापारिक ज़मीन की कमी भारत के मैन्युफैक्चरिंग(विनिर्माण) हब बनने के रास्ते में बड़ी बाधाएं हैं. अगर जीएसटी को छोड़ दें तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसका उल्लेख किया जाए.