पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने RTI संशोधन विधेयक के खिलाफ खोला मोर्चा
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने आरटीआई संशोधन विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. गांधी ऑनलाइन अभियान चला रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को संशोधन के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं.
26 जुलाई को इंटरनेट पर जारी की गई गांधी की याचिका का मकसद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सहमत करना है कि वो इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद में वापस लौटा दें. वो इस याचिका पर ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहमति लेने की कोशिश कर रहे हैं.
गांधी उस स्थायी समिति के सदस्य थे, जिसने इस आरटीआई कानून के संबंध में अहम सुझाव दिए थे.
अपनी याचिका में गांधी ने राष्ट्रपति को याद दिलाया कि इस स्थायी समिति ने सुझाव दिया था कि केंद्रीय सूचना आयोग को चुनाव आयोग के समान दर्जा दिया जाए.
संशोधन विधेयक केंद्र को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेलेरी के संबंध में फैसला करने का अधिकार दे देगा. फिलहाल कानून के मुताबिक सेलेरी और कार्यकाल होता है. याचिका में कार्यकाल, ताकतों और कार्य के संबंध में विधेयक में प्रस्तावित बदलावों को गलत ठहराया गया है.
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“इन बदलावों को मंजूरी देना आरटीआई कानून की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ करने जैसा है इसलिए यह सुनिश्चत करना जरूरी है कि आयोग अपना कार्य पूरी स्वतंत्रता और स्वयत्तता से करे. ऐसे में सीआईसी को चुनाव आयोग के समान दर्जा दिया जाना जरूरी है.”
यूपीए सरकार ने स्थायी समिति के सुझावों को स्वीकार किया था. हालांकि सरकार ने शुरुआत में आयोग को केंद्रीय सरकार सचिवों के अंतर्गत रखने की पहल की थी.
गांधी ने अपनी याचिका में सूचना आयुक्तों के सशक्तिकरण का सुझाव देते हुए कहा, “जनता द्वारा मांगी गई जानकारी जब सरकारें देने से मना कर देती हैं उस समय लोग सूचना आयोग के पास जाते हैं. आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वो लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करे, जहां अंतिम अपीलीय प्राधिकारी सूचना आयोग है. पारदर्शी रूप से काम करने के लिए आयोग के लिए जरूरी है कि वो सरकार के अंतर्गत ना आकर स्वतंत्र रूप से काम करे.”
संशोधन विधेयक के विरोध में आरटीआई कार्यकर्ता और पारदर्शिता का मांग करने वाले वकील ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मुद्दे पर एक जुट करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि राषट्रपति द्वारा विधेयक को मंजूरी ना दी जाए. करीबन 60 लाख से अधिक लोगों ने राज्य और केंद्र सरकारों से जानकारी लेने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया है.
एक अन्य पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त दीपक संधू ने भी संशोधन का विरोध किया.
आरटीआई कानून की जड़े साल 1996 में राजस्थान के बेवार में न्यूनतम आय के लिए 40 दिनों तक हुए धरना-प्रदर्शन में है. इन्हीं धरना-प्रदर्शनों के बाद यूपीए सरकार से कई सालों पहले राजस्थान और तमिलनाडु सराकरों ने पहली बार आरटीआई कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था.