शिक्षित नहीं होंगे लोग तो जनसंख्या नियंत्रित कैसे होगी?


no profit and no loss theory in education will be disastrous for nation

 

केंद्र सरकार ने एक प्रमुख साक्षरता कार्यक्रम के लिए दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी है. इससे शिक्षाविद और स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं. उन्होंने माना है कि साक्षरता कार्यक्रम से लोगों को निजी और सामाजिक लाभ पहुंचता है, जिसमें कम बच्चे पैदा करना भी शामिल है.

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री ने जनसंख्या विस्फोट के खतरों के बारे में बात की थी. इससे एक साल पहले बिना किसी खास वजह के सरकार ने ‘साक्षर भारत’ जैसे साक्षरता कार्यक्रम को मिलने वाली आर्थिक मदद रोक दी थी. इस कार्यक्रम के तहत 15 वर्ष से ज्यादा आयु वाले लोगों को शिक्षित करने की योजना थी.

भारत के रजिस्ट्रार जनरल के अंतर्गत आने वाला सैंपल पंजीकरण प्रणाली से प्राप्त डेटा के मुताबिक माता-पिता की शिक्षा और कुल प्रजनन दर (टीएफआर) के बीच उल्टा संबंध देखने को मिला है.

कुल प्रजनन दर का मतलब होता है कि एक महिला औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र के पूर्व निदेशक टी सुंदरारमण ने कहा, “साक्षरता और शिक्षा दंपत्ति के प्रजनन व्यवहार पर प्रभावी था और इसलिए जनसंख्या के जांचने में भी काम कर रहा था.” उन्होंने कहा, “महिलाओं के बीच साक्षरता बढ़ने से कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है. इस तरह के नाजुक मोड़ पर साक्षरता कार्यक्रमों को नहीं रुकना चाहिए.”

एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग के पूर्व अध्यक्ष एनके अंबस्त ने भी कहा है कि साक्षर भारत कार्यक्रम को चलते रहना चाहिए. उन्होंने इससे होने वाले कई लाभों के बारे में बताया जिसका असर सीधे तौर पर स्वास्थ्य, पारिवारिक जीवन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर होता है.

15 अगस्त को नरेंद्र मोदी ने कहा था, “मैं आज लाल किले से देश में होने वाले जनसंख्या विस्फोट के मुद्दे पर प्रकाश डालना चाहूंगा. तेजी से बढ़ रही जनसंख्या से हमारे और हमारे आने वाली पीढ़ियों के सामने नई चुनौतियां पेश करती है.”

सुंदरारमण और राजपूत ने बताया कि प्रधानमंत्री ने उन लोगों की देशभक्त होने के रूप में तारीफ की जो दंपत्ति बच्चे पैदा करने से पैहले यह सोच समझकर फैसला करते हैं कि वे अपने बच्चे की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा कर पाएंगे या नहीं. साक्षरता से बिल्कुल इसी तरह के फैसले लेने में लोगों को मदद मिलती है.

टीएफआर 2.1 को टीएफआर का बदलाव स्तर माना जाता है. इसके तहत एक जनसंख्या बिना प्रवास किए खुद को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बदल लेती है. इसलिए इसे आदर्श माना जाता है. भारत में 2017 में टीआरएफ में 2.2 की गिरावट हुई थी जो इसके पिछले चार सालों में 2.3 था. सुंदरारमण ने कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश को छोड़कर भारत के कई राज्यों में टीआरएफ बदलाव स्तर से नीचे है.

अधिकारियों के मुताबिक साक्षर भारत कार्यक्रम 11वीं पंच वर्षीय योजना के तहत शुरू की गई थी जो 12वीं पंच वर्षीय योजना तक के लिए कर दिया गया था. 12वीं पंच वर्षीय योजना वर्ष 2017 में समाप्त हुआ था.
इस कार्यक्रम के तहत गांव स्तर पर 1.65 लाख प्रेरक अनपढ़ गांव वालों को स्वेच्छा से पढ़ने-लिखने के लिए अनौपचारिक केंद्रों पर आने के लिए प्रेरित करते थे. जहां उन्हें स्वैच्छिक शिक्षक मूल पढ़ना, लिखना और गणित बनाना सिखाते थे.

300 दिनों की प्रशिक्षण के बाद प्रत्येक प्रतिभागी को एक परीक्षा देनी होती थी. परीक्षा में सफल लोगों को योजना के तहत 12वीं कक्षा तक ओपेन स्कूल में पढ़ने का मौका दिया जाता था. हर राज्य में अनपढ़ छात्रों के लिए किताब तैयार करने के लिए संसाधन केंद्र बना था.

अधिकारी के मुताबिक 2017 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुरोध पर कैबिनेट ने इस योजना को अतिरिक्त एक साल के लिए बढ़ा दिया था. तब मंत्रालय ने इस योजना को ‘पढ़ना लिखना’ अभियान के रूप में पेश किया था. जिसका उद्देश्य सिर्फ साक्षरता पर था ना कि पढ़ाई जारी रखवाना.

मंत्रालय ने संसाधन केंद्र को रद्द करने का भी प्रस्ताव पेश किया था. और किताब लिखने का काम एनसीईआरटी और राज्य स्तर के निकायों को सौंप दिया गया था. अप्रैल 2018 से साक्षर भारत अभियान का वित्तपोषण सरकार ने बंद कर दिया था.

एक अधिकारी ने कहा, “कैबिनेट ने नई योजना को अभी तक स्वीकृति नहीं दी है और पूरानी योजना अब किसी काम की नहीं है.”

साक्षर भारत की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई थी. पिछले साल तक इस योजना के तहत 7.6 करोड़ लोगों को शिक्षित किया गया है. वर्ष 2011 के जनगणना के मुताबिक देश में 15 साल से अधिक वर्ष वाले 24 करोड़ लोग अनपढ़ थे. देश में अब यह संख्या घट कर 16 करोड़ होनी चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र के शिक्षा भाग युनेस्को ने भी अपनी 2006 के एजुकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट में साक्षरता और प्रजनन क्षमता के बीच नकारात्मक सहसंबंध को रेखांकित किया है.

बच्चों की स्कूली शिक्षा के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है, “10 फीसदी प्राथमिक स्कूल सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) से कुल प्रजनन दर 0.1 बच्चे से कम होता है. इसके साथ ही 10 फीसदी माध्यमिक जीईआर से 0.2 बच्चों में बढ़ोत्तरी होती है.”

राजपूत ने कहा, “एक पढ़े-लिखे दंपत्ति अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेजते हैं. साथ ही वे अपने बच्चों के अध्यन के परिणाम को भी मॉनिटर करते हैं.”

युनेस्को के रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा से महिलाएं को स्वायत्ता मिलने से प्रजनन दर में गिरावट हुई है. इससे महिलाओं की शादी की उम्र, रोजगार, और एक बच्चे को पढ़ाने से जुड़ी खर्चों के बारे में जागरुकता मिलती है.

राजपूत ने कहा कि साक्षरता से कई गुणा लाभ होता है. इससे सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक लाभ होता है. इससे एक व्यक्ति के निजी स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है. इससे लोग देश के लोकतांत्रिक प्रक्रिया और सामुदायिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाते हैं. राजपूत ने साक्षरता योजना के लिए अध्यन सामग्री एनसीईआरटी से तैयार करवाने के विचार का बहिष्कार किया है. उन्होंने कहा कि इससे उनकी अन्य जिम्मेदारियों से काम पर प्रभाव पड़ेगा.

अंबस्त ने कहा कि साक्षरता से लोग अधिक उत्पादक होते हैं. उन्होंने कहा कि साक्षर भारत को दोबारा शुरू किया जाना चाहिए. इसके अलावा कुछ नई चीजें जोड़नी चाहिए. प्रतिभागियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने की जरूरत है.

युनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रजनन दर कम होने के अलावा साक्षरता से लोगों का आत्मविश्वास, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है. साक्षरता से लोगों के बीच जागरुकता बढ़ती है. लोग अपने अधिकार और कल्याणकारी योजनाएं और उनके लाभों को कैसे सुरक्षित किया जाए इस संबंध में जान पाते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि साक्षरता से महिलाओं में पुरुषों को चुनौति देने की क्षमता बढ़ती है. इससे महिलाएं पुरुष आधिकारिक क्षेत्रों में भी खुद के लिए जगह बनाने में कामयाब होती हैं.


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