गेट्स फाउंडेशन, वैक्सीन इंडस्ट्रीज का कोलंबस!


Gates Foundation Vaccine Industries of Columbus!

 

जनस्वास्थ्य के बहाने निजी वैक्सीन निर्माता कंपनियों के लिए बाजार की तलाश जारी है. कभी किस्ट्रोफर कोलंबस भारत की खोज में निकले थे लेकिन गलती से उन्होंने अमरीका को खोज निकाला था. आज उसी अमरीका के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स अपने गेट्स फाउंडेशन के साथ भारत में निजी वैक्सीन कंपनियों के लिए बाजार की तलाश में आए हैं. इसके लिए सीधे तौर पर सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं की आड़ ली गई है. इसी कड़ी में बिल गेट्स भारत आए और सोमवार को उनके समक्ष गेट्स फाउंडेशन और भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच एक समझौता हुआ है.

इस मौके पर डॉक्टर हर्ष वर्धन ने कहा, ‘लंबे समय से गेट्स फाउंडेशन के साथ हमारा जुड़ाव काफी फलदायी रहा है. फिर चाहे वो पोलियो उन्मूलन के लिए रहा हो या फिर टीकाकरण अभियान का दायरा बढ़ाने से संबंधित रहा हो.’ डॉक्टर हर्ष वर्धन ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम देश में गुणवत्ता युक्त तथा प्रभावी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए मिलकर काम करें.

इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़े धनी अमरीकी उद्योगपति, माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक तथा गेट्स फाउंडेशन के ट्रस्टी एवं सह-चेयरमैन बिल गेट्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. प्रधानमंत्री के इस मुलाकात दौरान उनकी क्या बातचीत हुई इसकी जानकारी हालांकि नहीं मिल पाई है मगर इससे पहले उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सरकार के कार्यों की सराहना की.

दुनिया के सबसे रईस बिल गेट्स, उनके द्वारा दान में दी गई रकम से चलाई जाने वाली गेट्स फाउंडेशन, गावी, भारत में वैक्सीन की जरूरत और इन सब के नेपथ्य में क्या है उसे समझने के लिए हमें कई बिन्दुओं पर ध्यान देगा होगा. उसके बाद आप स्वंय ही फैसला कर सकते हैं कि इस नए कोलंबस की हमें कितनी जरूरत है या उसे हमारे बाजार की जरूरत है. मामला कुछ-कुछ बिल्ली द्वारा सौ चूहे खाकर हज पर जाने जैसा है लेकिन यहां पर तो हज के दौरान भी चूहों का शिकार बदस्तूर जारी है.

1. गेट्स फाउंडेशन-गावी-वैक्सीन कंपनियां का गठजोड़

साल 2000 में गेट्स फाउंडेशन की स्थापना की गई थी. इसके ट्रस्टी तथा सह-चेयरमैन बिल गेट्स और उनकी पत्नी मेलिंडा गेट्स हैं. इनके बाद इस फाउंडेशन के ट्रस्टी दुनिया के एक और रईस वरेन बफेट हैं. गेट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष पद पर ट्राईवोर मुंडेल पदस्थ हैं जो साल 2011 में अपनी तैनाती के पहले नोवार्टिस, पार्क डेविस तथा फाइजर जैसी महाकाय दवा कंपनियों में उच्च पद पर आसीन थे.

बिल और मेलिंडा गेट्स ने साल 1999 में 750 मिलियन डॉलर का दान देकर ‘गावी’ अर्थात् ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन इनिशियेटिव नाम के एक संस्था की शुरुआत कराई थी. आज भी गेट्स फाउंडेशन इस ‘गावी’ का पार्टनर है. यह ‘गावी’ दुनिया के गरीब देशों में वैक्सीन की जरूरत को पूरा करने का कार्य करती है. ‘गावी’ में गेट्स फाउंडेशन के अलावा विश्व-बैंक भी साझीदार है. खुद ‘गावी’ के द्वारा दिए गए बयान के अनुसार साल 2014 में इस संगठन ने जितने वैक्सीन की सप्लाई की उसमें से 60 फीसदी भारत में सप्लाई किए गए थे. हालांकि, अपने घोषित तथा अघोषित उद्देश्यों को अमलीजामा पहनाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा यूनिसेफ को भी साझीदार बनाया गया है. इसके बोर्ड में दो-तिहाई सदस्य वैक्सीन एलायंज पार्टनर इंस्टीट्यूट के होते हैं.

‘गावी’ खुद इस बात की खुलेआम घोषणा करता है कि उसके द्वारा सप्लाई किए गए आधे से ज्यादा वैक्सीन दुनिया के ‘उभरते हुए बाजारों’ में सप्लाई किए जाते हैं. इसके लिए बकायदा 16 देशों के 44 वैक्सीन कंपनियों का ‘डेवेलेपिंग कन्ट्रीज वैक्सीन मैनुफैक्चरर नेटवर्क’ का नामक एक संगठन बनाया गया है जो इस कार्य को अंजाम देता है. इस तरह से अपरोक्ष रूप से वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां ‘गावी’ में हस्तक्षेप करती और अंततः गेट्स फाउंडेशन भी इसकी जद में आ जाता है.

यह संगठन ‘डेवेलेपिंग कन्ट्रीज वैक्सीन मैनुफैक्चरर नेटवर्क’, 40 तरह के वैक्सीन की सप्लाई करता है. इसके सदस्यों में बायोलाजिक ई नामक दवा कंपनी है जो भारत सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम में सहयोग देती है. इसके अलावा इस गठजोड़ की सदस्य भारत बायोटेक इंटरनेशनल भी है जो भारत में वैक्सीन की सप्लाई करती है.

2. गेट्स फाउंडेशन के पुनीत कार्य

गेट्स फाउंडेशन के घोषित लक्ष्य को उनके ही शब्दों में पहले पढ़ ले जिसमें कहा गया है कि हम प्रभावशाली वैक्सीन, दवा तथा निदान के लिए अपने भागीदारों के साथ काम करते हैं और उन लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुचांने का प्रयास करते हैं जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. और हम संक्रामक रोगों से बचाव के लिए नए वैक्सीन को ईंजाद करने के लिए भारी मात्रा में निवेश करते हैं.

जाहिर है कि नवउदारवाद के युग से इस दानवीर कर्ण का अधिकांश दान नए-नए वैक्सीन के ईजाद में खर्च होता है. बता दें कि इस तरह के नए वैक्सीन का उपयोग भारत और अफ्रीका जैसे देशों विकासशील देशों के सरकार के कंधों पर बंदूक रखकर किया जाता है, पहले दान में वैक्सीन दी जाती है उसके बाद उन वैक्सीन को सरकारी कार्यक्रमों में शामिल करवा दिया जाता है. इन वैक्सीनों की सप्लाई दुनिया की महाकाय वैक्सीन उद्योग के जरिए की जाती है.

3. सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन

साल 2017 के दिसंबर माह में स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर सर्वत्र टीकाकरण कार्यक्रम में HPV नाम की इस वैक्सीन को इंट्रोड्यूस करने का विरोध किया गया था. क्योंकि पंजाब के दो जिलों और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इंट्रोड्यूस किया गया था.

बता दें कि HPV वैक्सीन का ट्रायल पहले विवादों में आ चुका था जब आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में टीकाकरण के बाद सात लड़कियों की मौत हो गई थी. स्वास्थ्य पर संसद की 72वीं स्थाई समिति ने इस तथ्य को हाईलाइट किया था.

गौरतलब है कि नवंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार से इससे जुड़े फाइलों को प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. आंध्रप्रदेश तथा गुजरात के आदिवासी इलाकों के 24 हजार लड़कियों को ‘observational study’ के नाम पर लगाया गया था. इस पुनीत काम को गेट्स फाउंडेशन से फंड लेने वाली संस्था PATH (Programme for Appropriate Technology in Health) ने अंजाम दिया था. वैक्सीन की सप्लाई विदेशी दवा कंपनी मर्क तथा ग्लैक्सो ने की थी. PATH के इस काम में Indian Council of Medical Research ने भी सहयोग दिया था. इससे हुई लड़कियों की मौत के बाद इसे रोक दिया गया था.

जन स्वास्थ्य अभियान नामक एनजीओ से जुड़े मनमोहन शर्मा का कहना है, वैक्सीन 9 और 14 साल उम्र की लड़कियों को दी गई जबकि अमूमन कैंसर 45 साल से ऊपर की महिलाओं को होता है, ऐसे में ये कैसे जाना जा सकता है कि वो कारगर है या नहीं.

जो हैरान करने वाली बात है वो ये है कि संसद की स्थाई कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी करते हुए इसे देश भर में उतारा जा रहा है. इस कमेटी ने अपनी 72वीं रिपोर्ट में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की भूमिका को लेकर चौंकाने वाले तथ्यों का हवाला दिया है. क्या ICMR बिना अनुमति मानव पर क्लिनिकल ट्रायल को बढ़ावा दे रहा है.

इस मामले के तूल पकड़ने पर जांच कमेटी का गठन किया गया. लेकिन स्थाई समिति ने पाया कि कमेटी में शामिल डॉक्टरों में से एक डॉक्टर उस कंपनी की मेहमाननवाजी का आनंद ले रहा था, जो ट्रायल करा रही है. कमेटी ने ये भी पाया कि ICMR ने अमरीकी एजेंसी, PATH, के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से फंड मिलता है. ये देश में वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए मंजूरी से मिलने से पहले ही हो गया था.

4. भारत में वैक्सीन की जरूरत

आइये अब उन वैक्सीन्स की पड़ताल कर ले जिन्हें भारत जैसे विकासशील देशों में बच्चों को दिया (पढ़े-घोंपा) जाता है. ‘गावी’ के सहयोग से भारत में पेंटावेलेंट वैक्सीन, हेपेटाइटिस बी वैक्सीन, हेमोपेलस इंफुलेएंजा की वैक्सीन जैसे वैक्सीन को बढ़ावा दिया गया है.

दरअसल, भारत का टीकाकरण बाजार लंबे समय से सुप्तावस्था में था. जिसे ‘गावी’ और गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से जगाया गया है. अर्थात नए-नए टीके भारतीयों को ठोंके जा रहे हैं, भले ही भारतीय परिस्थियों के अनुसार ये अनावश्यक हैं.

हेपेटाइटिस-बी का हौव्वा खड़ा कर इसके टीके को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करवा दिया गया है. यह हेपेटाइटिस बी नाम का पीलिया फैलता है संक्रमित रक्तदान, शल्य क्रिया के संक्रमित औजारों या सुई से. कुछ हद तक यौन संबंधों से. आप सब को ज्ञात होगा कि रक्तदान से पहले उसका परीक्षण कराया जाता है कि उस व्यक्ति को पीलिया, मलेरिया, एड्स या यौन रोग न हो. चिकित्सा तथा शल्यक्रिया के सभी औजारों को उपयोग के पहले संक्रमण रहित बनाया जाता है. वरन् चिकित्सा सेवा में रत चिकित्सकों तथा कर्मचारियों को मरीजों से पीलिया से पीड़ित होने का डर रहता है. इसीलिए हेपाटाइटिस-बी का टीका चिकित्सा कर्मचारियों के लिए जो मरीज के संपर्क में रहते हैं, उसके लिए आवश्यक है.

धन्य हो ‘गावी’ का जिसने भारत की अधिकांश जनता को यह टीका लगवा दिया है. अब तो राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल होने के कारण सभी बच्चों को यह टीका लगाया जा रहा है.

दूसरा टीका जिसे लेकर खूब हो हल्ला मचाया जा रहा है वह है ‘हिब’ अर्थात हिमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप-बी. खुद अमरीकी सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार यह संक्रमण, संक्रमित व्यक्ति के नाक एवं गले के श्लेष्मा या बलगम से फैलता है. इसमें मेननजाइटिस, निमोनिया तथा वात रोग होता है.

तीसरा टीका जिसे लेकर दवा कंपनियां सीधे तौर पर प्रचार कर रही हैं वह है रोटा-वाइरस का टीका. रोटा वाइरस से डायरिया होता है, जो आम तौर पर पश्चिमी देशों में होता है. फिर यह महंगा टीका भारतीय बच्चों को क्यों लगाया जा रहा है. यदि कुछ बच्चों को इस वायरस से डायरिया या अतिसार होता है तो उसे ओआरएस पाउडर पानी में घोल कर देना चाहिए. यह डायरिया तीन से आठ दिनों तक रहता है. प्रत्येक 70 संक्रमित बच्चों में से केवल एक बच्चे को अस्पताल में दाखिल करना पड़ता है. रोटा वाइरस के टीके के मुकाबले इसका उपचार ज्यादा सस्ता पड़ता है.

‘गावी’ के चलते रूबेला तथा यलो फीवर का टीका भी लगाने की तैयारी सरकार कर रही है.

5. बिल गेट्स का फाउंडेशन किसके हित में

इस तरह से बिल गेट्स द्वारा दान में दी रकम अंततः विकाशील देशों में वैक्सीन को बढ़ावा देने का काम करती है. यह दिगर बात है कि इन वैक्सीन की भारत जैसे देशों को कितनी जरूरत है. हां, इससे वैक्सीन उद्योग के वारे न्यारे हो रहे हैं यह सच है. इस तरह से बिल गेट्स महोदय के दान से विकासशील देशों की जनता को लाभ हो रहा है या नहीं परन्तु वैक्सीन उद्योग तो अपने चरम पर है.

विदेशी दवा कंपनियों के सामने एक और कारण है जिसके लिए वे भारतीय टीका बाजार में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं. वह यह है कि अब उनकी अरबों-खरबों डॉलर की दवाओं का पेटेंट अधिकार खत्म होता जा रहा है. बिक्री तथा मुनाफे को बनाए रखने के लिए वे अब टीकाकरण के पुनीत अभियान में उतर आए हैं.


Big News