गिरते जॉब मार्केट में महिलाओं की स्थिति सबसे खराब: ऑक्सफैम


gender pay gap, caste discrimination in indian job market: oxfam report

 

भारत ना सिर्फ रोजगार की कमी से बुरी तरह जूझ रहा है, बल्कि श्रम बाजार में मौजूदा नौकरियों की  गुणवत्ता भी बहुत खराब है. इसके साथ ही लिंग आधारित भेदभाव भी बदस्तूर जारी है. ये बातें ऑक्सफैम इंडिया की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आई हैं.

अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक ऑक्सफैम इंडिया ने ये रिपोर्ट ‘माइंड दि गैपस्टेट ऑफ इंप्लॉयमेंट इन इंडिया’ नाम से जारी की है. ग्रामीण क्षेत्र में गिरते रोजगार के बारे में इशारा करते हुए रिपोर्ट कहती है कि पिछड़ेपन को बढ़ावा देने वाले सामाजिक नियम जारी हैं. इसके चलते नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक, एक समान कौशल और योग्यता रखने वाले पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को 34 फीसदी कम वेतन मिलता है. यही नहीं जॉब मार्केट में वेतन का हाल भी बहुत बुरा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2015 में 92 फीसदी महिलाएं और 82 फीसदी पुरुषों को मात्र 10,000 रुपये महीने के वेतन में गुजारा करना पड़ा.

ऑक्सफैम इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर कहते हैं, “नौकरियों का सृजन और लिंग आधारित न्याय को सुनिश्चित करना तो अलग बात है, जमीनी सच्चाई हैरान करने वाली है. रिपोर्ट महिलाओं की ओर ध्यान दिला रही है, जहां साफ दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था विकास में महिलाओं को पीछे छोड़ दिया गया है. ये सब गलत नीतियों का चयन, सामाजिक सुरक्षा में निवेश की कमी का परिणाम है.”

रिपोर्ट भारत के विकास आंकड़ों की तरफ इशारा करते हुए कह रही है कि यहां नौकरियों के सृजन में कोई बढ़त नहीं दिख रही है. इसके मुताबिक सबसे ज्यादा नौकरियां असंगठित क्षेत्र में पैदा हुई हैं.

नोटबंदी के बाद नौकरियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा, इससे सबसे ज्यादा महिलाओं ने अपनी नौकरी खोई. इस दौरान नौकरियों में खासी कमी आई जिससे महिलाओं को पुरुषों के लिए रास्ता खाली करना पड़ा. सिकुड़ते जॉब मार्केट में महिलाओं की नौकरियां पुरुषों को दे दी गईं.

नोटबंदी के बाद परिवार स्तर पर भी नौकरियों का संकट खड़ा हो गया. आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 के जनवरी से लेकर अक्तूबर तक दो या अधिक सदस्यों वाले परिवारों की नौकरी में भागीदारी 34.8 फीसदी थी, नोटबंदी के बाद इसमें 31.8 फीसदी की गिरावट आई. इस दौरान महिलाएं बेरोजगारी का आसान शिकार हो गईं.

इस रिपोर्ट में नौकरियों में जाति और वर्ग के आधार पर भी प्रकाश डाला गया है. इसमें हमारे सामाजिक ताने-बाने की एक झलक नजर आती है. रिपोर्ट के मुताबिक नौकरियों में जाति और वर्ग का भेदभाव लगातार जारी है. ये खासकर साफ-सफाई और चमड़ा उद्योग में साफ तौर पर दिखता है.

रिपोर्ट कहती है कि गांवों में अभी भी जाति आधारित पारंपरिक रोजगार चल रहे हैं. जहां एक ओर दलित जाति से होने वाली महिलाएं धाई जैसे काम करती हैं वहीं बनिया जाति के लोग दुकानें खोलते हैं.

ये भेदभाव बाजार में भी साफ दिखता है. उदाहरण के लिए अगर कोई दलित दूध उत्पादन करता है तो उसे बाजार में कथित ऊपरी जातियों से कम मूल्य मिलता है.

ऑक्सफैम की ये रिपोर्ट सुझाव देती है कि नीतिगत पैमाने पर सुधार से आर्थिक कारकों में सुधार हो सकता है. रिपोर्ट कहती है कि विकास कार्यों में श्रम आधारित क्षेत्र पर ध्यान देने से नौकरियों के सृजन में सुधार होगा. और काम के लिए बेहतर माहौल बनाने से नौकरियां समावेशी भी होंगी. मतलब नौकरियों में जेंडर गैप कम होगा.

रिपोर्ट कहती है कि स्वास्थ्य और शिक्षा में अधिक निवेश की जरूरत है, इससे उत्पादन क्षमता में सुधार होगा.


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