स्कूली बच्चों के नाम से लिया गया पैसा उनके लिए खर्च नहीं हो रहा


government did not spend cess taken on education

 

बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के रास्ते में फंड बाधा ना बने इसके लिए सेस के रूप में अलग से धन का प्रावधान किया गया है. इस वास्ते हर टैक्स प्रदाता अपनी तरफ से 2 फीसद का योगदान करता है. लेकिन क्या आपको पता है, आपके इस पैसे का इस्तेमाल इसका मकसद पूरा करने में नहीं हो रहा है.

द टेलीग्राफ, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के हवाले से लिखता है कि सेस से प्राप्त धन का एक बड़ा हिस्सा अभी तक प्रारंभिक शिक्षा कोष में जमा ही नहीं किया गया है. दरअसल इस मद में इकट्ठा धन को प्रारंभिक शिक्षा कोष में जमा किया जाना होता है.

ये कोष स्कूली शिक्षा और शिक्षा विभाग नियंत्रित करता है. ये विभाग एमएचआरडी के अंतर्गत आता है. यह हाल तब है, जब देश में प्राथमिक शिक्षा का स्तर संतोषजनक नहीं है. मिड डे मील जैसी योजनाओं में खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं.

इस मामले में शिक्षाविद् जेएस राजपूत अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, “देश के लोग बेहतर शिक्षा के लिए अपने खर्चों में कटौती करते हैं. लेकिन अगर ये पैसा कोष में नहीं डाला जाता तो ये अनैतिक है.” राजपूत नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर एजुकेशन के संस्थापक हैं.

क्या है सेस ?

सेस एक तरह से टैक्स के ऊपर टैक्स है. यह किसी विशेष उद्देश्य के लिए लगाया जाता है. साथ ही यह एक निश्चित समय के लिए लगाया जाता है. वांछित उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद इसे हटा लिया जाता है. इसे इनकम टैक्स या निगम कर के ऊपर लगाया जाता है.

सेस की सबसे खास बात यह है कि इसे सिर्फ उसी मद में खर्च किया जा सकता है जिसके लिए यह वसूला जाता है.

शिक्षा पर सेस सबसे पहले यूपीए सरकार ने 2004-05 में शुरू किया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि तब से अब तक 2 लाख करोड़ से भी ज्यादा रुपये इकट्ठा हो चुके हैं. इसमें से सिर्फ 13 हजार तीन सौ 25 करोड़ कोष में जमा किए गए हैं. जो कुल धन का केवल 6 दशमलव 25 फीसद है.

खैर सेस लगाने के पहले दो सालों में पैसा ट्रांसफर ना होने की वजह समझ आती है. उस समय इस पैसे के लिए समर्पित कोष था ही नहीं. प्रारंभिक शिक्षा कोष 2006 में बनाया गया. इसे ‘नॉन लैप्सेबल फंड’ के रूप में स्थापित किया गया.

‘नॉन लैप्सेबल फंड’ ऐसे फंड होते हैं जो वित्त वर्ष के खत्म होने पर अपने आप खत्म नहीं होते. इस कोष को सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा और मिड डे मील योजना के संचालन में खर्च किया जाना था.

इन योजनाओं के लिए शिक्षा के लिए निर्धारित बजट से भी धन मिलता है. नियमानुसार प्रारंभिक शिक्षा कोष का फंड तभी खर्च किया जायेगा जब बजट का धन पर्याप्त ना हो. सरकारी लापरवाही का आलम यह है कि शुरुआत के पहले दो सालों में इकट्ठा किया धन आज तक कोष में नहीं भेजा गया.

इसके बाद के सालों में भी भेजा गया धन अनियमित रहा, इसी वजह से आज 2 लाख करोड़ से भी ज्यादा धन बेकार पड़ा है.

बीते साल एक संसदीय समिति ने कहा था कि शिक्षा महकमा ये सुनिश्चित करे कि धन शिक्षा पर खर्च किया जाए. इसके बाद बीते 20 सितंबर को एचआरडी मंत्रालय के संयुक्त सचिव आरसी मीणा ने वित्त विभाग के संयुक्त सचिव को लिखा था, “आप से आग्रह है कि फंड को अतिशीघ्र ट्रांसफर करने की व्यवस्था की जाये, मामले को प्राथमिकता में रखा जाए साथ ही सभी जरूरी कदम उठाए जायें.”

इसके बाद 16 अक्तूबर को वित्त विभाग के सचिव अमित बंसल के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन में पूरा फंड ना ट्रांसफर करने की बात कही गई थी. इसके लिए उन्हीं कोष के नियमों का हवाला दिया गया था कि पहले से उपलब्ध पैसा खर्च किए बिना ये पैसा ट्रांसफर नहीं किया जा सकता.

अब यह जानना महत्वपूर्ण है कि समस्या कहां है. सबसे बड़ी समस्या इस कोष की नियमावली में ही है. जैसा कि हमने ऊपर भी जिक्र किया है, इस कोष से फंड तभी खर्च किया जायेगा जब बजट से योजनाओं का खर्च पूरा ना हो पाये.

दूसरे शब्दों में कहें तो बजट का फंड खत्म होने के बाद ही इस कोष का उपयोग किया जायेगा. कायदे से होना ये चाहिए कि कोष का धन खत्म होने के बाद ही बजट का धन उपयोग में लाया जाए. इससे सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि खाते में बेकार धन बचा नहीं रहेगा.

उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2004-05 और 2005-06 में क्रमश: लगभग 4 हजार करोड़ और 7 हजार करोड़ रुपये सेस से आए. इन्हीं सालों के दौरान जारी बजट क्रमश: 7 हजार करोड और 12 हजार करोड़ रहा. इसका सीधा मतलब है कि इस दौरान सरकार ने सेस से ज्यादा बजट आवंटन किया.

ऐसे में नियमों के मुताबिक सेस का प्रयोग नहीं किया जा सका.

राजपूत इस नियम को गलत बताते हैं. वे कहते हैं, “शिक्षा में निवेश सब तरह के निवेशों में बेहतर है. अगर सरकार ने बीते सालों में सेस से ज्यादा बजट खर्च किया है तो कोई बड़ा काम नहीं किया है. सेस का धन बजट से अलग शिक्षा मद में खर्च किया जाना चाहिए.”


Big News