RBI से मिले धन का इस्तेमाल पूंजी निवेश के लिए करेगी सरकार?


retail inflation rate increased to 3.99 percent

 

वित्त मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा है कि सरकार बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की योजना बना रही है. उन्होंने बताया कि इस योजना के लिए सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से प्राप्त अतिरिक्त धन का इस्तेमाल करने जा रही है.

अधिकारी के मुताबिक आरबीआई से प्राप्त अतिरिक्त धन का इस्तेमाल राजस्व खाते में करने के बजाय सरकार इसे अर्थव्यवस्था में पूंजीगत निवेश के रूप में करना चाहती है.

अर्थव्यवस्था में आई मंदी से निपटने के लिए केंद्र नए सिरे से खर्च करना चाहती है. इससे पहले केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए 70 हजार करोड़ रुपये के पूंजीगत निवेश का एलान किया था.

अधिकारी ने बताया, “अगले कुछ महीनों में हम एक बड़ी निवेश वाली कार्यक्रम की योजना बना रहे हैं. आरबीआई से प्राप्त धन का इस्तेमाल हम उसी योजना में करेंगे. इस योजना के बाद अर्थव्यवस्था में बदलाव आएगा.”

इस समय अतिरिक्त खर्च करना सही माना जा रहा है. खासकर तब जब निवेश करने के लिए लोग उत्साहित नहीं हैं और निजी उपभोग वृद्धि दर भी कम हो रही है.

सरकार के खर्च करने से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा. जिससे सुस्त पड़े निवेश, खपत और निर्यात को भी गति मिलेगी.

सरकार के खर्च करने की योजनाओं को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं. सरकार के पिछले अनुभवों को देखा जाए तो विनिवेश आय का उपयोग और विभिन्न चीजों पर उपकर को बढ़ाने के बाद माना जा रहा है कि क्या केंद्र इस धन का इस्तेमाल सही से करने में सक्षम है भी या नहीं.

केंद्रीय बजट 2019-20 में घोषणा की गई थी कि आरबीआई 90 करोड़ रुपये का अधिशेष सरकार को हस्तांतरण करेगी. इसके अलावा सरकार को अतिरिक्त 58 हजार करोड़ रुपये चालू वित्तीय वर्ष में खर्च करने के लिए मिलेंगे.

पिछले साल आरबीआई ने सरकार को अंतरिम लाभांश (डिविडेंड) के रूप में 28 हजार करोड़ रुपये दे दिया था. चालू वित्त वर्ष में अब सरकार को 1.76 लाख करोड़ में से 1.48 लाख करोड़ रुपये देने हैं. यह योजना तब अधिक कारगर साबित होगी यदि सरकार करों और गैर-कर प्राप्तियों से अपने राजस्व लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम होगी.

केंद्र की आय में अगर कमी आती है तो सरकार का अतिरिक्त खर्च करने की योजना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. सरकार ने बजट में राजकोषीय घाटे से निपटने के रोडमैप का पालन करने की बात कही थी.
इस साल के शुरुआत में प्रत्यक्ष कर राजस्व में कमी के कारण सरकार के खर्च करने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार ने धन का इस्तेमाल ठीक से किया तो इससे अर्थव्यवस्था में रफ्तार आएगी.

सरकार के इस कदम से सरकारी खर्चे में आई सुस्ती को भी राहत मिलेगी. केंद्र ने साल 2019-20 के वित्त वर्ष की शुरुआत शुरू के तीन महीनों में कम खर्च से की थी. सरकार ने वित्तीय राजकोषीय घाटे का 61.4 फीसदी ही इस्तेमाल किया है. यह इससे पिछले वर्ष की तुलनात्मक लक्ष्य से 7.3 फीसदी प्वाइंट कम है. इसका कारण राजस्व घटने से पूंजीगत व्यय का कम होना है.

निवेश गतिविधियों में लगातार कमी होने से जून 2019 के तिमाही में सरकार के पूंजीगत व्यय में करीब 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.

कर राजस्व वृद्धि भी आवश्यक दर की तुलना में काफी कम है. इससे साफ जाहिर है कि अर्थव्यवस्था में खपत में भी कमी आई है.

सरकार की प्रत्यक्ष कर से प्राप्त होने वाली शुद्ध राजस्व वृद्धि में भी तेजी से गिरावट हुई है. इस साल यह 1 अप्रैल से 15 अगस्त के बीच 4.7 फीसदी था, जो सालाना वृद्धि दर 17.3 फीसदी की तुलना में कम है. यह अर्थव्यवस्था में आई मंदी के मद्देनजर कम उछाल को दर्शाता है.

राजस्व वृद्धि में तेजी से गिरावट होने से ऐसा माना जा रहा है कि लगातार दूसरे साल सरकार प्रत्यक्ष कर के लक्ष्य को प्राप्त करने में असक्षम है.

सरकार की ओर से अतिरिक्त निधि मुहैया होने से यह सरकार को ही अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित करेगा.

एडलवाइस समूह के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रशेष शाह ने कहा, “बैंक को पूंजीगत सहायता करने और पूंजीगत व्यय करने के अलावा सरकार को वस्तु एवं सेवा कर में छूट देने के बारे में सोचना चाहिए. इससे सरकार उपभोकता मांग बढ़ाने में कामयाब हो सकती है.”

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह बेहद महत्वपूर्ण होगा कि वृद्धि चक्र को पटरी पर लाने के लिए निधि का इस्तेमाल निवेश और उपभोकता मांग को बढ़ावा देन के लिए किया जाएगा.”

उन्होंने यह चेतावनी दी कि धन का उपयोग सरकार के राजस्व व्यय या अनुत्पादक ऋण को चुकाने के लिए नहीं करना चाहिए.


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