क्या सरकार रोजगार पर अपने आंकड़ों को पलटने की तैयारी में है ?
सरकार रोजगार पर नया सर्वे कराने की तैयारी में है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के प्रमुख विवेक देबरॉय ने कहा है कि इस नए सर्वे में उल्लेखनीय रूप से रोजगार सृजन दिखाई देगा.
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के फेसबुक पेज पर डाले वीडियो क्लिप में देबरॉय ने कहा कि रोजगार, कारोबारी माहौल का एक बड़ा हिस्सा राज्यों के दायरे में आता है.
देबराय ने कहा,‘‘हम नेशनल सैंपल सर्वे(एनएसएस) का नया दौर शुरू करेंगे, जिसकी घोषणा जल्द की जाएगी. मुझे भरोसा है कि उस सर्वे में यह दिखाई देगा कि देश में बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन हुआ है.
इस वीडियो में उन्होंने कहा था कि भारत के पास 2011-12 के बाद रोजगार सृजन को लेकर कोई ठोस आंकड़ा नहीं है.
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. ऑफिस की पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी.
ऐसा बताया गया है कि एनएसएसओ के रोजगार सर्वे को पांच दिसंबर को कोलकाता में हुई बैठक में मंजूर किया गया था. इस सर्वे को सांख्यिकी और कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी किया जाना था. लेकिन यह अब तक नहीं किया गया है.
इसके बाद संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष पीसी मोहनन और संस्थान की गैर-सरकारी सदस्य जेवी मीनाक्षी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
इस विडियो में विवेक देबरॉय कह रहे है कि भारतीय श्रमबल अब भी अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में है. ‘‘उद्यम सर्वे भारत के रोजगार क्षेत्र में क्या हो रहा है उसके बारे में बहुत सही समझ पैदा नहीं करता है.’’
देबरॉय ने यह भी कहा है वास्तविक मुद्दा रोजगार की संख्या नहीं बल्कि रोजगार की गुणवत्ता तथा वेतन की दर है.
उन्होंने इस बात को भी नोट किया कि सरकार सीमित संख्या में ही रोजगार उपलब्ध कर सकती है. इसलिये बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन सरकार की नौकरियों से बाहर होना चाहिए. ‘‘मोदी सरकार स्व-रोजगार और उद्यमशीलता को बढ़ावा दे कर यही कर रही है.
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक, एनएसएसओ की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में साल 1972 के बाद से साल 2017-18 में बेरोगारी की दर सबसे ज्यादा रही.
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 फीसदी थी. इस दौरान सबसे ज्यादा संख्या में नौजवान बेरोजगार थे, जिनकी संख्या 13 से 27 फीसदी के बीच थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि, शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारों की संख्या ज्यादा थी, जो कि 7.8 फीसदी थी. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 5.3 फीसदी थी.
नवंबर 2016 में नोटबंदी के ऐलान के बाद एनएसएसओ का यह पहला वार्षिक घरेलू सर्वेक्षण है.
रिपोर्ट के मुताबिक, (एलएफपीआर) श्रम बल भागीदारी दर (जनसंख्या में कामगार आयु वर्ग का वो हिस्सा जो नौकरी करना चाहता है) में कमी आई है. एलएफपीआर साल 2004-05 के बीच 39.5 फीसदी था, जो घटकर 36.9 फीसदी रह गया.
गौर करने वाली बात यह है कि कुछ दिन पहले सरकार ने आंकड़ें जारी कर यह बताया कि सितंबर 2017 से नवम्बर 2018 के बीच देश के संगठित क्षेत्र में 1 करोड़ 80 लाख रोजगार पैदा हुए.
हालांकि बहुत सी रिपोर्टों और अध्ययनों में सरकार के इन दावों का खंडन किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, साल 2018 में भारत की बेरोजगारी दर 3.5 फीसदी रिकॉर्ड की गई है और साल 2019 में यह और बढ़ सकती है. संगठन का मानना है कि साल 2019 में भारत में लगभग 1 करोड़ 90 लाख लोग बेरोजगार रहेंगे.
वहीं, सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने कहा कि दिसंबर 2018 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.4 फीसदी हो गई है. सेंटर से जुड़े महेश व्यास बताते हैं कि यह बेरोजगारी दर पिछले 15 महीनों में सबसे ज्यादा है.