कृषि संकट पर जीएसटी की दोहरी मार


modi's plan to double farmers income to be scrutinised by other World Trade Organization members

 

आर्थिक संकट में फंसे किसानों पर जीएसटी की वजह से दोहरी मार पड़ रही है. कृषि उपकरणों और अन्य जरूरत की सामग्री के लिए(इनपुट) किसान 18 फीसदी तक जीएसटी चुकाते हैं. लेकिन उन्हें अन्य पेशे की तरह आईटीसी यानी इनपुट टैक्स क्रेडिट की कोई सुविधा नहीं है.

कृषि उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखने की वजह से किसान आईटीसी के तहत जीएसटी रिटर्न का दावा नहीं कर सकते हैं. जबकि दूसरे कारोबार में ‘बीच का कारोबार’ आईटीसी के तहत आता है. आईटीसी का फायदा तभी मिलता है जब कोई प्रोडक्ट जीएसटी के तहत आता है.

उदाहरण के लिए ऑर्गेनिक तरीके से कीटों को पकड़ने वाले उपकरणों पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है. इतना ही नहीं बहुप्रचारित हैपी सीडर पर सरकार 12 फीसदी की दर से जीएसटी वसूलती है. इसके इस्तेमाल से खेतों में धान की ठूंठ को जलाना नहीं पड़ता है.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले एग्रो केमिकल या पेस्टिसाइड और सुरक्षा उपकरणों जैसे कि चश्मा, मास्क और दस्तानों पर भी 18 फीसदी जीएसटी लगता है. फसलों को हल्के संक्रमण से बचाने के लिए इस्तेमाल होने वाले ऑर्गेनिक कीटनाशकों पर पांच से 12 फीसदी के बीच जीएसटी लगता है.

साउथ एशिया बायोटेक्नॉलोजी सेंटर के भागीरथ चौधरी ने कहा, ” जब मैंने 50 टैप और इतनी ही फेरोमॉन्स(कीट पकड़ने के लिए उपकरण) खरीदा तो इसका बिल 2,540 रुपये आया. लेकिन जब मैंने इनवॉयस को गौर से देखा तो इसमें 387.46 रुपये सिर्फ जीएसटी के लिए लिया गया था. मैंने पाया कि करीब-करीब सभी खेती के इनपुट पर जीएसटी लगता है. इनमें पशु और पॉल्ट्री का चारा भी शामिल है. इतना ही नहीं सरकार की ओर से अनुदान पर मिलने वाली खाद पर पांच फीसदी की दर से जीएसटी लगता है.”

उन्होंने कहा कि एग्रो केमिकल और ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियों को जीएसटी देने में कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि वह क्रेडिट के लिए दावा(पार्ट और पैकेजिंग आदि कारोबारियों से) कर सकती हैं.  लेकिन किसान को ही टैक्स का पूरा भार क्यों वहन करना चाहिए.

खेती में लगने वाले सभी इनपुट(जरूरतों)  जैसे कि उर्वरक, पेस्टिसाइड, फेरोमॉन ट्रैप, ट्रैक्टर, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई और अन्य उपकरण जीएसटी के तहत आता है.

जानकार किसानों को राहत देने और जीएसटी की विसंगतियों को दूर करने के लिए दो सुझाव देते हैं. पहला कि कृषि उत्पाद को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाय ताकि किसान जीएसटी रिटर्न के लिए दावा कर सकें. दूसरा कि खेती के इनपुट को पूरी तरह से जीएसटी मुक्त कर दिया जाए.

हालांकि जीएसटी रिटर्न के लिए किसानों को अतिरिक्त कागजी कार्रवाई से गुजरना होगा और ज्यादातर किसान इसके लिए सक्षम नहीं है.

चौधरी के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 में केवल पेस्टिसाइड का बाजार 16,628 करोड़ रुपये का था जिसके लिए किसानों से 18 फीसदी जीएसटी वसूले गए. इसके साथ ही 2018-19 में 75,000 करोड़ रुपये की खाद की बिक्री हुई. जिसपर पांच फीसदी की दर से जीएसटी के हिसाब से 3,750 करोड़ रुपये किसानों से कर के रूप में वसूली की गई.

भारत में ट्रैक्टर का बाजार 42,000 करोड़ रुपये का है जिसपर 12 फीसदी जीएसटी लगता है. यह 4,500 करोड़ रुपये होता है.

चौधरी कहते हैं कि अगर सभी इनपुट जैसे कि बिजली, डीजल पंप और अन्य सभी उपकरणों पर लगने वाले जीएसटी को जोड़ा जाए तो यह 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का हो सकता है, जिसपर किसान आईटीसी के तहत दावा नहीं कर सकते हैं.


Big News