समतामूलक समाज और सुशासन के वाहक थे गुरू नानक देव
सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव की 550 वीं जयंती के उपलक्ष में दिल्ली के भाई वीर सिंह साहित्य सदन में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ. ‘द सोशल इथोस एंड एथिक्स ऑफ गुरू नानक’ शीर्षक से आयोजित यह कार्यक्रम गुरू नानक देव के सामाजिक संदेश पर केंद्रित रहा.
गुरू नानक देव की 550 वीं जयंती के उपलक्ष में इस कार्यक्रम में नौवीं लेक्चर सीरीज आयोजित की गई. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब को आमंत्रित किया गया. वहीं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हरीश खरे सभापति के रूप में मौजूद रहे. कार्यक्रम में प्रोफेसर मोहिंदर सिंह और डॉ. हरबीर सिंह ने भी शिरकत की.
कार्यक्रम की शुरुआत प्रोफेसर मोहिंदर सिंह ने लेक्चर सीरीज के बारे में बताते हुए की. उन्होंने कहा कि गुरू नानक देव ने किस तरह अपनी शिक्षाओं का अनुशीलन किया, इस लेक्चर सीरीज में इस पक्ष पर ही ध्यान दिया जाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि गुरू नानक देव एक असाधारण व्यक्ति थे और प्रत्येक व्यक्ति को उनके बारे में जानना चाहिए, वे सिर्फ सिखों के धर्म गुरू ना होकर संपूर्ण जगत के गुरू थे.
प्रोफेसर इरफान हबीब ने गुरू नानक देव के सामाजिक संदेश पर महत्वपूर्ण बातें रखीं. उन्होंने कहा कि गुरू नानक देव के सामाजिक संदेश को समझने के लिए जरूरी है कि एक इतिहासकार केवल साधारण मनुष्य होकर ही उनके संदेश को समझे.
उन्होंने कहा कि गुरू नानक देव के सामाजिक संदेश को समझने के लिए जरूरी है कि हम उनके समय के पंजाब को समझें, उस समय के सामाजिक संबंधों और अंतरविरोधों को समझें.
प्रोफेसर इरफान हबीब ने उस समय के पंजाब पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उस समय के पंजाबी समाज में विभिन्न वर्गों और जातियों के लोगों के बीच तरह-तरह के अंतरविरोध थे.
प्रोफेसर हबीब ने बताया कि उस समय के पंजाब में किसानों और उनकी जमीन के ऊपर काम करने वाले श्रमिकों के हितों में टकराव था. किसानों के पास जमीन का आंशिक मालिकाना हक था, जबकि श्रमिकों के पास नहीं था. श्रमिक खेत पर काम करते थे और उन्हें कर भी देना पड़ता था.
प्रोफेसर हबीब ने बताया कि इसी तरह का अंतरविरोध जमीदारों और किसानों के बीच भी था. जमीदार अर्थात् भूमिया किसानों अर्थात् मुजायरों से मनमाना कर वसूलते थे. उन्हें यह कर इकट्ठा करके गांव के मुखिया को देना पड़ता था, जो यह कर राजसत्ता को देता था.
उन्होंने बताया कि एक अंतरविरोध जमीदारों और राजसत्ता के बीच भी था. कभी-कभी अत्यधिक कर के चलते किसान भाग जाते थे, ऐसे में जमीदारों के सामने कर इकट्ठा करने की मुश्किल खड़ी हो जाती थी.
उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर एक बड़ा अंतरविरोध राजसत्ता और किसानों-मजदूरों के बीच था. इस अंतरविरोध में किसानों-मजदूरों को खून के आंसू रोना पड़ता था और गुरू नानक देव ने इन्हीं मजलूमों को ध्यान में रखते हुए अपनी शिक्षाएं दीं.
प्रोफेसर हबीब ने आगे बताया कि ठीक इसी प्रकार का अंतरविरोध उस समय के पंजाब के व्यापारी वर्ग के बीच भी था. बड़े व्यापारी (शाहू) छोटे व्यापारियों (बंजारे) को दबाते रहते थे.
उन्होंने कहा कि गुरू नानक देव ने इन सब अंतरविरोधों के बारे में गुरू ग्रंथ साहिब में लिखा, इस प्रकार गुरू ग्रंथ साहिब केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ ही नहीं है, बल्कि उस समय के पंजाब की कड़वी सामाजिक सच्चाई का भी दस्तावेज है.
प्रोफेसर हबीब ने बताया कि गुरू नानक देव ने जटों की भाषा में अपना संदेश दिया. जट उस समय के पंजाबी समाज में किसान और मजदूर थे और हिंदू उन्हें नीची जाति का मानते थे. इस हिसाब से गुरू नानक देव का संदेश उन दबे-कुचले लोगों के लिए था, जिन्हें समाज में महत्वपूर्ण नहीं माना जाता था.
उन्होंने आगे बताया कि गुरू नानक देव ने अपने संदेश से इन दबे-कुचले लोगों में आत्मसम्मान पैदा किया. उन्होंने आगे बताया उस समय जाति व्यवस्था बहुत अधिक कठोर थी और ऐसे में जटों के पास इससे बचने के लिए केवल दो विकल्प थे. पहला, वे जाति व्यवस्था के सांस्कृतिककरण में शामिल होकर उसमें ऊपर जाने का प्रयास करें. दूसरा, वे पूरी तरह से जाति व्यवस्था का परित्याग करें.
प्रोफेसर हबीब ने बताया कि यह गुरू नानक देव के समतामूलक संदेश का ही परिणाम था कि जटों ने जाति व्यवस्था का परित्याग कर दिया.
प्रोफेसर हबीब ने बताया कि केवल जट ही गुरू नानक देव के अनुयायी नहीं बने, बल्कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग भी उनके मुरीद हुए. इस तरह से गुरू नानक देव ने हिंदू और मुसलमानों के बीच एक पुल का भी काम किया.
अंत में प्रोफेसर हबीब ने कहा कि गुरू नानक देव के संदेश ने उस समय के पंजाब के समाज को एक बड़े स्तर पर बदला, खासकर जाति व्यवस्था को.
प्रोफेसर इरफान हबीब के बाद सभापति डॉ. हरीश खरे ने अपनी बात रखी.
उन्होंने कहा कि उनके हिसाब से गुरू नानक देव पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सुशासन की बात की.
उन्होंने कहा कि गुरू नानक देव ने बताया कि राजसत्ता को जनता की भलाई और सच्चाई की भावना से भरा होना चाहिए और आम लोगों को अपने बराबर समझना चाहिए.
उन्होंने कहा कि उनके मत में गुरू नानक देव ने एक धर्मनिरपेक्ष और समतामूलक समाज की परिकल्पना की और इसी के अनुसार अपना संदेश गढ़ा.