सिर्फ पांच साल मांगने वाले मोदी एक बार फिर पलटे अपने बयान से


number of indicator signals to spreading slowdown in economy

 

लोकसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी जी-जान से लगे हैं. इस क्रम में वे लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं.

इसी क्रम में उन्होंने बिहार के जमुई में जनता को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें देश का विकास करने के लिए पांच साल का वक्त और दिया जाए. प्रधानमंत्री ने कहा, “जो काम कांग्रेस 70 साल में नहीं कर पाई वो हम 5 साल में कैसे कर पाते, हमें काम करने के लिए पांच साल और चाहिए.”

प्रधानमंत्री का यह बयान विरोधाभासी है. वो इसलिए कि वे जब 2014 में चुनाव प्रचार के लिए जाते थे तो जनता से कहते थे कि कांग्रेस को आपने 70 साल दिए हैं, मुझे बस 60 महीने मतलब पांच साल दीजिए और मैं देश का कायाकल्प कर दूंगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह अकेला बयान नहीं है, जिससे उन्होंने पलटी मारी हो. उनके ऐसे अनेक बयान मौजूद हैं, जो उनकी खुद की बात को काटते हैं. प्रधानमंत्री मोदी को अगर एक निपुण वक्ता के रूप में देखा जाता है तो उन्हें बार-बार अपने ही बयानों से पलट जाने वाले नेता के तौर पर भी जाना जाता है.

ज्यादा पुरानी बात नहीं है. यह 8 नवंबर 2016 का दिन था. प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि उन्हें बस 50 दिन का समय दिया जाए और वे देश से काले धन को हमेशा के लिए समाप्त कर देंगे.

फिर दिन आया 31 दिसंबर 2016. प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया. इस संबोधन में वे भूल गए कि जो नोटबंदी उन्होंने की थी, उसका लक्ष्य देश से काले धन को समाप्त करना था. मतलब प्रधानमंत्री ने काले धन का नाम ही नहीं लिया. काले धन को समाप्त करने की जगह नोटबंदी का लक्ष्य अब कैशलेश इंडिया बनाना हो गया. प्रधानमंत्री मात्र 50 दिन पहले दिए गए अपने बयान से पलट गए.

ठीक ऐसा ही प्रधानमंत्री ने ‘आधार’ के साथ किया. 2016 में जब आधार एक्ट पास हुआ तो नरेंद्र मोदी ने कहा कि आधार एक्ट ने यह संभव बनाया है कि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से लेकर तमाम दूसरी सुविधाएं अब गरीबों के पास आसानी से पहुंच पाएंगी. वहीं 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे तब आधार को लेकर उनके विचार एकदम विपरीत थे. तब उन्होंने कांग्रेस की सरकार से पूछा थी कि सरकार को यह साफ करना चाहिए कि आखिर उसने आधार पर लोगों के करोड़ों रुपये क्यों बर्बाद किए!

नोटबंदी और आधार के साथ जीएसटी पर भी प्रधानमंत्री ने पलटी मारी. 2013 में जो जीएसटी मोदी के विचार में कभी सफल नहीं होने जा रही थी वो अचानक से बाद में को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म की मिसाल बन गई और मोदी जी के शब्दों में कहें तो साथ मिलकर चलने का साहस देने लगी. इसके साथ ही कभी भी सफल ना होने वाली जीएसटी अचानक से प्रधानमंत्री मोदी के लिए कर ढांचे में सुधार का परिचायक हो गई.

यही हाल एफडीआई का भी हुआ. जब कांग्रेस की सरकार थी तो एफडीआई मोदी जी के लिए देशद्रोह के बराबर थी. मोदी जी के अनुसार कांग्रेस ने रिटेल में एफडीआई को लागू करके छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी थी. लेकिन मोदी जी जैसे ही प्रधानमंत्री बने वैसे ही कांग्रेस वाली वही एफडीआई अच्छी हो गई. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि देश के विकास के लिए भारी मात्रा में विदेशी पूंजी की जरूरत है.


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