पुण्य तिथि विशेष: ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले चित्रकार एमएफ हुसैन


 Hussain, who is forced to leave the country because of controversial paintings

 

नौ जून का दिन देश की चित्रकला के इतिहास में कला के एक चितेरे के निधन के दिन के तौर पर दर्ज है. भारत में आधुनिक चित्रकला के पर्याय मकबूल फिदा हुसैन (एमएफ हुसैन) ने आज ही के दिन दुनिया को अलविदा कहा था.

एमएफ हुसैन को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान 1940 के दशक के आखिर में मिली. युवा चित्रकार के रूप में एमएफ हुसैन बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट्स की राष्ट्रवादी परंपरा को तोड़कर कुछ नया करना चाहते थे. वर्ष 1952 में उनकी पेंटिग्स की प्रदर्शनी ज़्यूरिख में लगी. उसके बाद तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पेंटिग्स की ज़ोर-शोर से चर्चा शुरू हो गई.

एमएफ हुसैन को साल 1973 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें साल 1986 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया. भारत सरकार ने साल 1991 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया.

‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले एमएफ हुसैन देश के सबसे महान और सर्वाधिक विवादित चित्रकारों में एक है.

अपनी विवादित चित्रकारी की वजह से वह हिन्दू कट्टरपंथियों और राष्ट्रवादियों के निशाने पर रहे. भारत में हो रहे लगातार हमलों के बाद उन्होंने देश छोड़ दिया था. जिसके बाद वह कभी भारत नहीं लौट पाए. नौ जून 2011 को लंदन में उनका निधन हुआ.

हुसैन को फिल्मों का शौक था. वह अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के दीवाने थे. साल 1994 में माधुरी अभिनित ‘हम आपके हैं कौन’ उन्होंने 67 बार देखी थी. हुसैन ने एक पेंटिंग की पूरी श्रृंखला बनाई जिसके केन्द्र में माधुरी दीक्षित थी. उन्होंने माधुरी के साथ साल 2000 में ‘गजगामिनी’ बनाई. 

‘एम एफ हुसैन की कहानी अपनी जुबानी’ में राशदा सद्दिकी ने एमएफ हुसैन की आत्मकथा लिखने कि प्रक्रिया के बारे में लिखती हैं, “हुसैन ने अपनी कहानी अपनी जुबानी लिखनी शुरू की तो वह जहां कहीं भी बैठे हों बस लिखते रहते. हुसैन की आत्मकथा लिखी गई थी, पेपर नैपकीन पर, चिट्ठी के पीछे की खाली सतह पर टेबल मैट पर लिफाफा खोल कर बनाए गए पर्चे पर और जो अच्छे कागजों पर लिखे जाते वह पुलिंदा बनकर जेब से निकलती.”

एमएफ हुसैन की पेंटिंग पर साल 1982 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था.

1988-1989 में बनी एमएफ हुसैन की ‘मदर टेरेसा’ पेंटिंग में उनकी वर्षों की प्रतिभा झलकती है. पेंटिंग में ब्लू रंग की बॉर्डर की सफेद साड़ी में बिना चेहरे की आकृति है. ऐसी ही साड़ी मदर टेरेसा पहना करती थीं. चित्र में एक बूढ़ा आदमी की आकृति उनकी गोद में है. यह मदर टेरेसा की ममतामयी छवि को दिखाता है.

एमएफ हुसैन राजनेताओं के भी करीब रहे. उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक विषयों को भी अपनी पेंटिंग में जगह दी. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ एमएफ हुसैन की एक तस्वीर.

राम मनोहर लोहिया के कहने पर वह रामायण पर दस सालों तक पेंटिंग बनाते रहे. उन्होंने इसके लिए कोई मेहनाताना नहीं लिया. एक बार लोहियाजी ने हुसैन की पीठ थपकी और विषय बदलते हुए पूछा, “यह जो तुम बिरला जी और टाटा के ड्राइंगरुम में लटकने वाली तस्वीरों में घिरे हो, जरा बाहर निकलो. रामायण को पेंट करो इस देश की सदियों पुरानी दिलचस्प कहानी है.”

लोहिया की मौत के फौरन बाद उनकी याद में हुसैन ने रंग भरे और कलम लेकर बदरीविशाल के मोती महल को तकरीबन डेढ़ सौ पेंटिग से भर दिया. दस साल लगे कोई दाम नही मांगा सिर्फ लोहिया की जबान से निकले शब्दो का मान रखा.

गीतकार, निर्देशक और अभिनेता गुलजार के साथ एमएफ हुसैन की एक यादगार तस्वीर.

एमएफ हुसैन की एक पेंटिंग में महात्मा गांधी और बुद्ध एक ही कैनवास पर उकेरे गए हैं.


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