आईएमए ने मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ के कश्मीर पर लिखे संपादकीय पर उठाए सवाल


IMA condemns medical journal lancet for editorial on kashmir

 

इंडियन मेडिकल एसोसियशन (आईएमए) ने मशहूर मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में कश्मीर पर छपे संपादकीय को लेकर तल्ख टिप्पणी की है. आईएमए ने कहा है कि इस संपादकीय की वजह से लैंसेट ने आईएमए की नजर में अपनी प्रतिष्ठा खो दी है.

लैंसेट ने अपने संपादकीय में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के भारत सरकार के फैसले पर चिंता जाहिर की है. जर्नल ने लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि उनके इस फैसले से कश्मीर संपन्नता और समृद्धी आएगी लेकिन पहली जरूरत तो यह है कि कश्मीर के लोगों के दशकों पुराने जख्म को भरा जाए ना कि उन्हें हिंसा और अलगाव के नए दौर में धकेल दिया जाए.

जर्नल ने संपादकीय के शुरुआत में लिखा है कि भारत सरकार के इस विवादास्पद फैसले की वजह से कश्मीर में बड़े पैमाने पर सेना को तैनात किया गया है. कम से कम भारतीय सुरक्षा बल के 28000 जवान वहां तैनात किए गए हैं. इसके साथ ही इंटरनेट और फोन लाइन जैसे संपर्क साधने के सारे साधन काट दिए गए हैं. सख्त कर्फ्यू लगा दिया गया है. भारत के इस फैसले से पाकिस्तान के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं. पाकिस्तान पिछले सात दशकों से इस क्षेत्र पर अपना दावा करता रहा है.

जर्नल ने आगे लिखा है कि कश्मीर में पहले से ही चरमपंथ की मौजूदगी की वजह से वहां के लोगों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और आजादी को लेकर गंभीर सवाल कायम रहे हैं. 1989 में घाटी में विद्रोह शुरू होने के साथ ही दोनों ही तरफ के संघर्षों में अब तक 50000 लोगों की जान जा चुकी है. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद की पिछले महीने छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़े पैमाने पर कश्मीर में मानव अधिकारों का हनन हुआ है. रिपोर्ट में कश्मीर के लोगों पर भारतीय सेना की ओर से ज्यादती करने की बात पर जोर दिया गया है. इसमें पेलेट गन से लोगों पर हमला करने का जिक्र किया गया है जिसकी वजह से 2016 से लेकर 2018 तक 1253 लोग अंधे हो चुके हैं.

दशकों के इन ज्यादतियों के बावजूद जर्नल के संपादकीय में इस बात का उल्लेख किया गया है कि विकास के सूचकांक पर भारत के दूसरे हिस्सों की तुलना में कश्मीर की हालत बेहतर है.

इसके मुताबिक 2016 में कश्मीर में मर्दों की औसत आयु 68.3 और महिलाओं की औसत आयु 71.8 थी, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. हालांकि लंबे समय से हिंसा के माहौल में रहने की वजह से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है.

मेडिसिन सैंस फ्रंटियर्स के दो जिलों में किए अध्ययन के मुताबिक करीब आधे कश्मीरी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते. इस अध्ययन में कहा गया है कि जिन्होंने संघर्ष में अपने परिवारवालों को खोया है, उनमें से पांच में से एक ने अपनों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा है. इसलिए इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि कश्मीर के लोगों में चिंता, उदासीनता और तनाव बहुत बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है.


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