मध्य प्रदेश डायरी: संघ की राय को कितनी तवज्जो देगी बीजेपी
लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों में उम्मीदवारों के नामों को लेकर मंथन हो रहा है. मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाले हुए हैं. प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 26 पर काबिज बीजेपी यह आंकड़ा बनाए रखने की फिक्र में है और उम्मीदवार चयन की कवायद में जुटी है.
खबर है कि बीजेपी के उम्मीदवारों को लेकर मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी सर्वे रिपोर्ट प्रदेश बीजेपी संगठन को भेज चुका है. संघ ने कहा है कि कई मौजूदा सांसदों के टिकट नहीं काटे गए तो पार्टी को खामियाजा उठाना होगा. विधानसभा चुनाव के समय भी संघ ने मंत्रियों सहित अधिकांश विधायकों की जीत पर संदेह जताते हुए नेगेटिव फीडबैक दिया था, मगर बीजेपी संगठन ने उसकी एक न सुनी और नतीजा यह हुआ कि कद्दावर मंत्री हार गए.
अब संघ ने फिर बीजेपी को चेताया है. बीजेपी संगठन पसोपेश में है कि वह संघ की बात माने या न माने. माने तो मौजूदा सांसदों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और न माने तो हार का डर बना रहेगा.
बीजेपी सह संगठन मंत्री की संघ में वापसी के अर्थ
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने स्वयंसेवकों को बीजेपी सहित अन्य अनुषांगिक संगठनों में बतौर प्रतिनिधि भेजता है और समय-समय पर उन्हें वापस भी बुलाता है, मगर मप्र बीजेपी के सह संगठन महामंत्री अतुल राय की बीजेपी से राष्ट्रीय स्वयं संघ में वापसी पर सवाल उठ रहे हैं.
अतुल राय को विधानसभा चुनाव के पूर्व अहम भूमिका निभाने के लिए लाया गया था, मगर जिस महाकौशल क्षेत्र में उनसे करिश्मे की उम्मीद थी वैसा हुआ नहीं. विधानसभा चुनाव में महाकौशल क्षेत्र में उम्मीद के विपरीत मिली हार के बाद उनकी कार्यप्रणाली पर संदेह किए जा रहे थे. विरोध बढ़ता देख उन्होंने संगठन से मुक्त होने की मंशा जताई थी और 8 मार्च से ग्वालियर में होने वाली संघ की राष्ट्रीय प्रतिनिधि की सभा के ठीक पहले उन्हें संघ में बुला लिया गया है.
असल में, राय ने प्रदेश बीजेपी में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की शैली की राजनीति की है. जबलपुर में बना पार्टी का भव्य कार्यालय उनकी इसी शैली का प्रतीक है. वे विपक्ष को तोड़ने के पैतरों की राजनीति करते दिखाई दिए. यही कारण है कि बीजेपी में उन्होंने दबंगता से काम किया और खूब दुश्मन पैदा किए. तभी तो जब चुनावों में विफलता पाई तो इस शैली के कारण संगठन के निशाने पर आ गए. राय की विदाई उनकी शैली की राजनीति को किनारे करने की बीजेपी की रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है.
सपा-बसपा अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे
लोकसभा चुनाव में सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी ही गुणा-भाग नहीं कर रहे, बल्कि बसपा और सपा भी गठबंधन कर मजबूती से लड़ाई लड़ने के लिए तैयारियों में जुटी हैं. तय समझौते के अनुसार प्रदेश की कुल 29 सीटों में तीन सीटें सपा के खाते में गई है, जबकि शेष 26 सीटों पर बसपा अपने उम्मीदवार उतारेगी.
बसपा ने दो सीट मुरैना और सतना पर अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं और शेष 24 साटों के लिए उम्मीदवारों की तलाश जारी है. लोकसभा चुनाव के लिए इन 24 सीटों पर टिकट के दावेदारों को पार्टी ने 10 मार्च को भोपाल बुलाया है. भोपाल में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम प्रत्याशियों से सीधी चर्चा करेंगे. बालाघाट, खजुराहो और टीकमगढ़ सीट पर सपा अपने उम्मीदवार उतारेगी. यूं तो सपा और बसपा समग्र रूप से प्रदेश में कम ताकत रखती हैं, मगर तय है कि वे कुछ सीटों पर कांग्रेस का वोट काटने का काम करेंगी.