झारखंड: शहरों में मोदी मोदी तो गांवों में दिशुम गुरु!


in villages of jharkhand still remains Dishum Guru shibu soren

 

झारखंड का संथाल परगना बदला-बदला सा है. झारखंड के पूर्वोत्तर में बिहार और पश्चिम बंगाल से सटे इस पिछड़े इलाके की फिजां में चुनाव का रंग घुला हुआ है. दो दिनों बाद ही यानी 19 मई को तीन संसदीय क्षेत्रों में बंटे इस इलाके में लोकसभा का चुनाव होना है. थोड़े से पढ़-लिख गए और सोशल मीडिया को आत्मसात कर चुके युवा मोदी मोदी कर रहे हैं. पर शहरों और कस्बों के छोटे से दायरे से निकाल कर गांवों में कदम रखते ही ‘दिशुम गुरु’ यानी शिबू सोरेन का जलवा है. संथाली भाषा में दिशुम का अर्थ है देश और दिशुम गुरु का मतलब देश का गुरु. पर संक्षेप में लोग उन्हें गुरु जी कहते हैं.

गांवों के बड़े-बुजुर्ग याद करते हैं कि गुरु जी ने सत्तर व अस्सी के दशक में आदिवासियों को जूझारू बनाकर उन्हें किस तरह सूदखोरों के चंगुल से निकाला था और महाजनी प्रथा का अंत कराया था. चुनावी कवरेज के लिए बाहर से गए पत्रकारों को बताते हैं कि उसी लड़ाई के गर्भ से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के रूप में राजनीतिक दल का उदय हुआ था, जिसके मुखिया शिबू सोरेन हैं. वे संथालों की जिंदगी में मसीहा बनकर आए थे. आज का युवा देश के बाकी हिस्सों के लोगों से कदमताल कर रहा है तो उसके पीछे गुरु जी का बड़ा योगदान है.

संथाल परगना में झारखंड के छह जिले गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ हैं. अनुमंडल मुख्यालय दुमका में है. मैं दुमका और गोड्डा संसदीय क्षेत्रों से होते हुए अद्भुत प्राकृतिक छंटा बिखेर रही पहाड़ियों से घिरे पाकुड़ जिले के हिरणपुर पहुंचा. पाकुड़ जिले के पश्चिमी हिस्से में अवस्थित यह प्रखंड मुख्यालय लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र और राजमहल संसदीय क्षेत्र में है. लगभग 567 मीटर की ऊँचाई तक उठती राजमहल की पहाड़ियों की अद्भुत और मनोहारी छंटा देखकर मानो खो सा गया हूं. तभी ढोल, नगाड़ों और मांदर की थाप के साथ ‘जय झारखंड’ और दिशुम गुरु जिंदाबाद के नारों से पूरा वातावरण गूंजायमान हो उठता है.

वह जुलूस है, जो हिरणपुर मैदान की ओर बढ़ रहा है. उसमें गांवों की आदिवासी महिलाएं और पुरुष लगभग बराबर-बराबर हैं. चौड़ी सड़क पर लगभग एक घंटे में मेरे सामने से जुलूस गुजरता है. ज्यादातर लोगों के हाथों में झंडों के अलावा तीर-धनुष हैं. जुलूस के पच्चीस फीसदी लोग लोग ढोल, नगाड़े और मांदर बजा रहे हैं. लोगों ने बताया कि राजमहल संसदीय क्षेत्र से जेएमएम के प्रत्याशी और निवर्तमान सांसद विजय कुमार हंसदक के चुनाव प्रचार के लिए शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सभा है.

पास ही सभा स्थल जाता हूं तो वहां पैर रखने की जगह नहीं है. दोपहर की चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते हुए सुदूर गांवों से आए लोग अपने नेता को सुनने के लिए बेचैन हैं. सभा दोपहर दो बजे से होनी थी. पर हेमंत का हेलीकॉप्टर लगभग चार बजे लैंड करता है. पूरा मैदान एक बार फिर जय झारखंड, शिबू सोरेन जिंदाबाद, हेमंत सोरेन जिंदाबाद, विजय हांसदा जिंदाबाद, साइमन मरांडी जिंदाबाद के नारों से गुजायमान है. मेरा अनुमान है कि मैदान में 35-40 हजार लोग होंगे. पर स्थानीय लोग कहते हैं कि इस मैदान का भर जाने का मतलब है कि पचास हजार से ज्यादा लोगों की उपस्थिति है. हेमंत संथाली और हिंदी में भाषण देकर चले जाते हैं. सभा में पहुंचे लोगों के हाव-भाव से जेएमएम के प्रति उनकी दीवानगी का पता चलता है.

बीजेपी के पांच सालों के कार्यकाल में झारखंड के चार विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव हुए. उनमें राजमहल संसदीय क्षेत्र का लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है. बीजेपी को हर चुनाव में निराशा हाथ लगी थी. लिट्टीपाड़ा के मौजूदा विधायक और इस इलाके के कद्दावर नेता साइमन मरांडी से सभा के बाद उनके घर पर मिलता हूं. बीते साल ही विवाहित आदिवासियों के बीच चुंबन प्रतियोगिता आयोजित करवा कर विवादों में थे.

वे बताते हैं, “संथालों में गुरुजी का तिलस्म बरकरार है. लोग प्रत्याशी नहीं देखते, ‘तीर धनुष’ चुनाव चिह्न देखते हैं और जेएमएम को वोट देते हैं.”

तीर-धनुष आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक है. पुरानी मांग है कि आदिवासियों को सार्वजनिक रूप से तीर-धनुष रखने की मान्यता दी जाए. ठीक वैसे ही जैसे कि सिखों को कृपाण रखने की आजादी मिली हुई है. गांवों में घूमते हुए महसूस हुआ कि चुनाव चिह्न ‘तीर-धनुष’ होने के कारण चुनावों में जेएमएम को इसका बेजा लाभ मिल जाता है.

संथाल गांवों में चर्चा आम है कि 75 वर्षीय शिबू सोरेन अपने जीवन का आखिरी चुनाव लड़ और लड़वा रहे हैं. इससे संथालों में उनके प्रति गजब की सहानुभूति है. शिक्षक आनंद मुर्मू बातचीत से बीजेपी समर्थक लग रहे थे. पर उनका मानना था कि दुमका और राजमहल में जेएमएम के किलों को फतह करना बीजेपी के लिए बेहद मुश्किल काम है.

उन्होंने कहा, “दुमका और राजमहल में जेएमएम का पलड़ा भारी है. संथालों के बीच गुरूजी (शिबू सोरेन) के प्रति जबर्दस्त सहानुभूति है. पहले संथालों के दूसरे नंबर के नेता और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी या उनकी पार्टी के प्रत्याशी ही संथालों के वोट में थोड़ी बहुत सेंधमारी कर पाते थे. इस बार उनका साथ मिल जाने से दुमका और राजमहल में जेएमएम की ताकत बढ़ी हुई है.”

दुमका के पत्रकार अश्विनी मिश्रा मिले तो कहने लगे कि 2014 के मोदी लहर में भी दुमका और राजमहल में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. जबकि विपक्ष एकजुट नहीं था. इस बार तो विपक्षी गठबंधन के कारण चुनावी समीकरण ही बदल गया है.

जहां तक चुनावी मुद्दों का सवाल है तो जल जंगल और जमीन का मुद्दा बाकी सभी मुद्दों पर भारी है. संथालपरगना टेनेंसी एक्ट (एसटीपी) में संशोधन करने की कोशिशों से धारणा बनी है कि बीजेपी और उसकी सरकार आदिवासी विरोधी है. गांवों के लोगों का मानना था कि इस एक्ट में संशोधन करके कृषि योग्य जमीन को गैर कृषि जमीन में परिवर्तित करके उद्योगों की स्थापना की आड़ में पूंजीपतियों के हवाले कर देगी. इससे विस्थापन का दर्द झेलना होगा. कई लोग इस बात के पक्ष में गोड्डा के अदाणी थर्मल पावर प्लांट के लिए अधिग्रहित जमीन से उत्पन्न हालात का हवाला देते मिले.

उनका कहना था कि वहां लगभग 1400 एकड़ जमीन का अधिग्रहण भूस्वामियों को झांसे में रखकर किया गया था. इसलिए लोग आंदोलन कर रहे हैं. गोड्डा से जेवीएम के प्रत्याशी और पूर्व सांसद प्रदीप यादव ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया. इसलिए वहां उनके पक्ष में हवा है.

संथालों में नोटबंदी भी मुद्दा है. दो कारणों से. पहला तो पलायन करके जीवन-यापन करने वाले संथाल आदिवासियों को बेरोजगार होना पड़ा है. दूसरा यह कि नोटबंदी के दौरान सुदूर गांवों के बैंकों में भी शहरी धनवानों के रुपये बदलने में ही वक्त निकल गया. गावों के आदिवासियों के पुराने हजार-पांच सौ रुपये उनके पास ही रह गए, जो अब महज कागज के टुकड़े हैं. शायद यही वजह है कि हिरणपुर की सभा में हेमंत सोरेन हर हाथ को काम की बात करते हुए पुराने नोटों की चर्चा करना न भूले. उन्होंने भरोसा दिलाया कि मोदी की सरकार गई तो वे पुराने नोटों को बदलवाने की व्यवस्था करेंगे. इसलिए आदिवासी भाई उन नोटों को संभाल कर रखें.

शहरों और कस्बों युवा मोदी मैजिक से चमकृत दिखे और राष्ट्रवाद व विकास योजनाओं की चर्चा करते हुए मिलते हैं. मैं संथालपरगना में जामताड़ा जिले के रास्ते गया था. पहला बड़ा कस्बा फतेहपुर था, जो दुमका संसदीय क्षेत्र में है. किराने की दुकान चलाने वाले युवा से बात हुई तो मैंने पूछा, आप मोदी से इतने चमत्कृत क्यों हैं?

उसने कहा, “देखिए, जीतेंगे तो गुरुजी ही. पर मोदी जी ने काम बहुत किया है. पहले साल में तीन-चार गैस सिलेंडर भी मुश्किल से मिल पाता था. अब हर महीने आसानी से गैस सिलेंडर मिल जाता है, सब्सिडी भी मिलती है. गरीबों की झोंपड़ी की जगह पक्के का मकान है. घर-घर में शौचालय है. राशन समय से मिल जाता है. इलाज के लिए बीमा कार्ड बन रहा है. मोदी जी बहुत मेहनती हैं. अगली बार प्रधानमंत्री बने तो युवाओं को नौकरियां भी मिलेंगी.”

मैंने सवाल किया कि इस इलाके में किसी भी दल के झंडे बैनर इक्के दुक्के ही हैं, क्यों? तभी दुकान पर सामान खरीदने पहुंचे एक युवा बोल उठा, “मोदी जी की आंधी है. उसी में सारे झंडे बैनर उखड़ चुके हैं.”

संथाल के शहरों में मैंने दो दर्जन से ज्यादा युवाओं से बात की. सबकी बातें लगभग एक जैसी थीं. उनका कहना था कि गुरू जी आऊटडेटेड हो चुके हैं, अब आगे बढ़ना है तो मोदी को लाना होगा.

पर बीजेपी को इतने से बात बनती नहीं दिख रही है. उसे गांवों की अस्सी फीसदी जनता के मिजाज का अंदाज है. इसलिए केंद्र में सरकार बनाने के लिए एक-एक सीट के गुणा भाग में जुटी बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. मुख्यमंत्री रघुवर दास संथालपरगना में कैंप कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी चुनाव से महज चार दिन पहले संथालपरगना का दौरा कर चुके हैं. चुनाव के दौरान यह उनका चौथा दौरा था.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित दर्जन भर स्टार प्रचारकों का दौरा हो चुका है. सभी आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करते दिखे. सबने शिबू सोरेन को संथालों का शोषक और मोदी को संथालों का मसीहा साबित करने की कोशिश की. मुख्यमंत्री लगातार सोरेन पर निजी हमले कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री रघुवर दास सवाल करते हैं, “रामगढ़ जिले के गोला का निवासी शिबू सोरेन परिवार दुमका में करोड़ों की जमीन का मालिक कैसे बन गया?”

वे खुद ही इसका उत्तर भी देते हैं. कहते हैं, “सच तो यह है कि संथाली भाषा और संस्कृति के लिए जिन संथाल वीरों ने कुर्बानी दी, उनकी रक्षा के लिए भी गुरुजी और हेमंत सोरेन ने कुछ नहीं किया. वे आदिवासियों को लूटने में लगे रहे. यह परिवार संथालों के विकास में बाधक है. जेएमएम हम दो हमारे दो यानी पति, पत्नी, बेटा और बहू की पार्टी है. कोयला घोटाले के गुनाहगार शिबू सोरेन को जनता जबाव देगी. 23 मई के बाद जेएमएम का शटर गिर जाएगा.”

चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा दौर चल रहा है कि तमाम मर्यादाएं भी लांघी जा चुकी हैं. रघुवर दास शिबू सोरेन का नाम लिए बिना कटाक्ष करते हैं, “जेएमएम बूढ़ा मोर्चा, न चल सकता है, न बोल सकता है.”

उधर हेमंत सोरन ने “23 मई भाजपा गई” हैशटैग से ट्वीटर वार चला रखा है. वे कहते हैं कि जिस मुख्यमंत्री ने घोषणा कर रखी थी कि दिसंबर 2018 तक हर घर को बिजली नहीं मिली तो वोट नहीं मागूंगा. पर यह उपलब्धि हासिल नहीं हुई. फिर यह आदमी किस मुंह से वोट मांग रहा है? वह बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि उनकी राजनीति झूठ पर टिकी हुई है. पूरा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है. जनता त्राहित्राहि कर रही है.

हेमंत अपनी सभाओं में रघुवर सरकार के घोटाले गिनाते हैं तो जनता से पूछ भी लेते हैं, “मोदी का वायदा पूरा हुआ, खातें में 15 लाख रुपये आए?” फिर जबाव भी देते हैं, “नहीं आएंगे वे रुपये. उन्हीं रुपयों से संथालपरगना में अडानी फल-फूल रहा है और झारखंडियों को चूसकर बंग्लादेश के साथ व्यापार करने वाला है.”

प्रधानमंत्री के भाषणों से साफ हुआ कि बीजेपी को आदिवासियों के ‘जल जंगल और जमीन’ का मुद्दा सता रही है. तभी उन्हें झारखंड की धरती पर कहना पड़ा कि वह जल जंगल और जमीन पर किसी को पंजा नहीं मारने देंगे. पर ऐसा लगा कि उनकी यह बात ग्रामीणों को पच नहीं पाई.

झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने सवाल किया, “प्रधानमंत्री किस पंजे से जल जंगल जमीन को बचाना चाहते हैं? पंजा तो उन्हीं का उस तरफ है. झारखंड की जनता तानाशाह सरकार से जल जंगल जमीन की लूट का हिसाब मांग रही है.”

उधर बाबूलाल मरांडी अपनी हर सभा में कहते हैं कि बीजेपी की सरकार ने अडानी के लिए संथालों की जमीन छीन ली थी. अब उस पर निर्माणाधीन विद्युत संयंत्र की बिजली से बंग्लादेश रौशन होगा. यह झारखंड की जनता के साथ अन्याय है. ऐसा किसी हालत में नहीं होने दिया जाएगा.

बीजेपी में जहां स्टार प्रचारकों की कमी नहीं है. वहीं चुनावी फिजां से साफ है कि उसके प्रत्याशी धन खर्च करने में भी कंजूसी नहीं कर रहे हैं. इधर, विपक्षी गठबंधन में धनबल के साथ ही स्टार प्रचारकों का भी टोटा है. शिबू सोरेन, जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, जेवीएम के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, कांग्रेस के अध्यक्ष डा. अजय कुमार, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय आदि दौरे कर रहे हैं. पर संथालों को शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की बातें ज्यादा समझ आ रही हैं.

दिशुम गुरु शिबू सोरेन नौवीं बार लोकसभा जाने के लिए दुमका से चुनावी दंगल में हैं. बीजेपी ने उनसे मुकाबले के लिए एक बार विधायक रह चुके सुनील सोरेन को फिर से मैदान में उतारा है. दोनों प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला है. राजमहल में जेएमएम के निवर्तमान सांसद विजय कुमार हंसदक का सीधा मुकाबला बीजेपी के हेमलाल मुर्मू के साथ है. मुर्मू 2004 में जेएमएम से ही सांसद रह चुके हैं. गोड्डा में निवर्तमान सांसद और बीजेपी के प्रत्याशी निशिकांत दूबे तीसरी बार मैदान में हैं. उनका सीधा मुकाबला विपक्षी गठबंधन से जेवीएम के प्रत्याशी व पूर्व सांसद प्रदीप यादव से है.

मैंने संथाल परगना के जिन इलाकों का दौरा किया, वहां के मिजाज से लगा कि ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ का नारा परवान नहीं चढ़ पाया है. बीजेपी लाख कोशिशों के बावजूद संथाल आदिवासियों को अपने पाले मे करने में नाकाम है. विपक्षी दलों के महागठबंधन की घेराबंदी के बाद स्थिति ऐसी बनी है कि बीजेपी के लिए संथालपरगना की अपनी एकमात्र सीट गोड्डा को बचाए रखने की चुनौती है.


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